ग्रामीण महिलाओं को अभी भी कपड़ों सहित खुले में नहाना पड़ता है

Edited By ,Updated: 10 Sep, 2019 03:26 AM

rural women still have to bathe in the open with clothes

जब शोधकत्र्ता वैष्णवी पवार ग्रामीण भारत में काम करने के लिए निकलीं तो उन्हें उन दिनों की शर्म की याद आ गई जब वह महाराष्ट्र के अपने मूल गांव जाती थीं और उन्हें अन्य महिलाओं के साथ एक खुले तालाब में नहाने के लिए मजबूर किया जाता था। बाद में उनके पिता...

जब शोधकत्र्ता वैष्णवी पवार ग्रामीण भारत में काम करने के लिए निकलीं तो उन्हें उन दिनों की शर्म की याद आ गई जब वह महाराष्ट्र के अपने मूल गांव जाती थीं और उन्हें अन्य महिलाओं के साथ एक खुले तालाब में नहाने के लिए मजबूर किया जाता था। बाद में उनके पिता ने जोर देकर घर में परिवार के लिए शौचालय बनवाए लेकिन देशभर में अधिकतर महिलाओं के लिए नहाने का निजी स्थान अभी भी एक लग्जरी बना हुआ है। 

जहां शौचालय अचानक स्वच्छ भारत के लिए एक शुभांकर बन गया है, वहीं जनगणना के आंकड़े दर्शाते हैं कि ग्रामीण भारत में 55 प्रतिशत से अधिक घरों की नहाने के ढके हुए स्थान तक पहुंच नहीं है। एक ऐसे देश में जहां शर्म का लिंग से कोई लेना-देना नहीं है, यह मुद्दा अधिकतर पुरुषों को प्रभावित करता है। विकास अण्वेश फाऊंडेशन द्वारा तैयार तथा टाटा ट्रस्ट्स द्वारा समर्थित एक रिपोर्ट के अनुसार पांच राज्यों-ओडिशा, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के 44 गांवों में महिलाओं से साक्षात्कार में पाया गया कि उनमें से लगभग सभी अभी भी निरंतर खुले तालाबों में समूह बनाकर कपड़े पहनकर नहाती हैं। 

पवार ने कहा कि यह विडम्बना है कि समाज कथित तौर पर महिलाओं की लज्जा की सुरक्षा के लिए कपड़े पहनने के तरीकों तथा व्यवहार करने बारे निर्देश देता है लेकिन निजी तौर पर नहाने के लिए सुविधाएं प्रदान करने की परवाह नहीं करता। उन्होंने कहा कि इन महिलाओं को सभी तरह की स्वास्थ्य तथा स्त्री रोग संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें पूरे कपड़े पहनकर नहाने को मजबूर किया जाता है और इसलिए वे खुद को अच्छी तरह से साफ नहीं कर पातीं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के अंतर्गत स्वच्छता बनाए रखने के लिए दिशा-निर्देश हैं लेकिन इसके लिए कोई आधारभूत ढांचा नहीं है। यह समय की मांग है कि महिलाओं को नहाने के लिए एकांत स्थान दिया जाए। 

सार्वजनिक तालाबों में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें जोंकों से लेकर अनजान पुरुष शामिल हैं। इनके परिणामस्वरूप महिलाओं को आमतौर पर सामाजिक रूप से बड़ी भद्दी स्थिति का सामना करना पड़ता है। उन पर भद्दी टिप्पणियां की जाती हैं और यहां तक कि उनका शारीरिक उत्पीडऩ भी किया जाता है। जब वे नहा रही होती हैं या नहा कर गीले कपड़ों में घर वापस लौट रही होती हैं तो सबकी नजरों में होती हैं। पहले तालाब तथा नदियां आबादी से सुरक्षित दूरी पर होते थे लेकिन अब तो कुछ गांवों में उच्च मार्ग तथा सड़कें हैं जो उनके बिल्कुल पास से होकर गुजरती हैं। 

ओडिशा के झाटियापाड़ा गांव की एक महिला ने बताया कि आत्मसम्मान उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण चीज है। यदि वह इसे नहीं बनाए रख सकतीं तो किसी अन्य चीज का क्या लाभ? उसने कहा कि अन्य गांवों के अनजान व्यक्तियों के सामने खुले में नहाना उनकी अपनी मर्जी से नहीं होता। जिन महिलाओं के घर में या घर के आसपास स्नानगृह है उन्हें तब तक इंतजार करना पड़ता है जब तक परिवार का कोई सदस्य आसपास न हो, जो बड़े भारतीय परिवारों के मामले में लगभग नहीं होता। उन्हें अपना नहाने का समय पुरुषों के अनुसार तय करना पड़ता है। यहां तक कि सॢदयों में उन्हें ठंड का सामना करते हुए पुरुषों के जागने से पहले नहाने को मजबूर होना पड़ता है। 

जब महिलाओं से यह पूछा गया कि उनके लिए स्नानगृह क्यों नहीं है तो उनके कई उत्तरों में से एक व्यावहारिक समस्या पानी का कनैक्शन न होने की थी। यह देश भर में नवनिर्मित बहुत से शौचालयों के इस्तेमाल न होने का भी एक कारण है। अधिकतर महिलाओं ने कहा कि भोजन, कपड़ों, सिर छुपाने की जगह तथा शिक्षा की तुलना में यह एक कम प्राथमिकता वाला मामला है। कुछ महिलाओं ने कहा कि यदि उन्होंने यह मामला अपने परिवार में उठाया तो उन्हें बिगड़ी हुई या मुंहफट समझा गया और शीघ्र ही उन्हें वह करना पड़ा जो करने में भारतीय विशेषज्ञ हैं-एडजस्ट करना। एक महिला सरपंच ने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान शौचालय की बात करता है लेकिन कोई भी नहाने के स्थान की बात नहीं करता। 

2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण भारत के 25.4 प्रतिशत घरों में स्नानगृह थे तथा 19.7 प्रतिशत घरों में बिना छत की चारदीवारी थी। इस तरह से 55 प्रतिशत भारत निजी स्नान स्थलों के बिना काम चला रहा था, एक ऐसा आंकड़ा जो भारत के स्वच्छ होने के साथ नहीं बदला। सुविधाहीन लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाने वाले संगठन विकास अण्वेश फाऊंडेशन के संजीव फांसालकर कहते हैं कि इस विषय के साथ समस्या यह है कि कोई इस बारे में बात नहीं करता। लगभग 30 वर्ष पूर्व इस समस्या को एक डाक्टर ने किसी समाचार पत्र में उठाते हुए निजी स्नानगृहों के न होने से स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला दिया था। उसके बाद इस बारे में कहीं सुनने को नहीं आया।-एन. देवीदयाल

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