रूस-यूक्रेन युद्ध : न कोई जीता न कोई हारा

Edited By ,Updated: 26 Feb, 2023 05:41 AM

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यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का एक साल पूरा हो गया है।

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का एक साल पूरा हो गया है। यू.एस. ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने नवम्बर 2022 में कहा था कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के परिणामस्वरूप मारे गए लड़ाकों की संख्या 2 लाख की सीमा में हो सकती है। 40 हजार से अधिक यूक्रेनी नागरिक या इससे भी अधिक संख्या में लोग मारे गए थे। आक्रमणकारियों द्वारा स्पष्ट रूप से बलात्कार, यातना और अन्य अत्याचार एक और भयानक तथ्य हैं जो सत्य को स्थापित करने और अपराधियों पर मुकद्दमा चलाने के लिए निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक जांच चलाई जाएगी।

लगभग 5 लाख या शायद इससे भी अधिक संख्या में लोगों ने रूस को छोड़ दिया है। ऐसा उन्होंने या तो आक्रामकता के विरोध के कारण या लामबद्ध होने से बचने के लिए किया है। लोगों को युद्ध लडऩे के लिए भेजा गया था जिसमें वे विश्वास नहीं करते थे। यह याद रखना शिक्षाप्रद होगा कि  यूक्रेन कभी 30 दिसम्बर 1922 से 24 अगस्त 1991 तक तत्कालीन सोवियत संघ का हिस्सा था जब सोवियत गणराज्य का विघटन शुरू हुआ था।

यूक्रेन की स्वतंत्रता दुर्भाग्य से सोवियत संघ के उत्तराधिकारी देश रूस के लिए पहले दिन से ही समस्या बन गई थी। सबसे पहले 1994 में बुडापेस्ट मैमोरंडम द्वारा इसका खंडन किया गया था, जब इसके परमाणु शस्त्रागार को छीन लिया गया था। विडम्बना यह है कि जब यूक्रेन की परमाणु अप्रसार संधि को स्वीकार किया गया तो इसकी क्षेत्रीय सम्प्रभुता के गारंटर में से एक रूस था। बुडापेस्ट मैमोरंडम के तहत यूक्रेन के परिग्रहण के संबंध में नियमानुसार कहा गया है :

‘संयुक्त राज्य अमरीका, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड सी.एस.सी.ई. (यूरोप में सुरक्षा व सहयोग पर आयोग) अंतिम अधिनियम के सिद्धांतों के अनुसार सम्मान के लिए यूक्रेन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं।’ दूसरा सत्यनिष्ठा से यह भी कहा गया, ‘‘संयुक्त राज्य अमरीका, रूसी संघ, ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड  यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ खतरे या बल के उपयोग से बचने के अपने दायित्व की पुष्टि करते हैं।

उनके किसी भी हथियार का इस्तेमाल कभी भी यूक्रेन के खिलाफ नहीं किया जाएगा सिवाय आत्मरक्षा के या अन्यथा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार।’’ दुर्भाग्य से यूक्रेन की सम्प्रभुता पर आघात 2014 के बाद से लगातार लग रहा है जिसकी शुरूआत दोनेत्स्क, लुहांस्क और क्रीमिया पर अवैध कब्जे के साथ हुई थी। 2014 और 2015 में मिंस्क प्रोटोकोल और मिंस्क-2 के रूप में जाने जाने वाले समझौते के एक और सैट पर रूसी समर्थित अलगाववादी समूहों के बीच लड़ाई को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे।

मिंस्क-2 समझौते की प्रमुख शर्तों में से एक पूरे संघर्ष क्षेत्र में यूक्रेन की सरकार द्वारा यूक्रेन की राज्य सीमा पर पूर्ण नियंत्रण की बहाली थी। फरवरी-मार्च 2014 में क्रीमिया पर जबरन विलय के लिए रूस द्वारा कोई स्पष्टीकरण भी पेश नहीं किया गया था जिसे अंतर्राष्ट्रीय न्याय शास्त्र या सार्वजनिक राय की अदालत में किसी भी तरह की वैधता के साथ देखा जा सकता है। वर्तमान स्थिति पर वापस आते हुए आक्रामकता ने वास्तव में रूस के खिलाफ शक्ति संतुलन को झुका दिया है।

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) पहले की तरह समेकित हो गया है। नाटो सदस्यों से अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बार-बार मांग करने और उनके बकाया का भुगतान करने की मांग के बाद जो गहरी खाई उभरी थी वह यूक्रेन पर रूसी कार्रवाई से भर गई है। नाटो देशों से हथियार, वित्त, रसद समर्थन और अन्य आपूर्ति स्वतंत्र रूप से खुले तौर पर यूक्रेन में प्रवाहित हो रही है।

बुखारेस्ट-9 नौ देशों का एक समूह है जो नाटो के पूर्वी भाग का निर्माण करता है जिसमें रोमानिया, पोलैंड, बुल्गारिया, चैक गणराज्य, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, मोंटेनेग्रो, उत्तरी मैसेडोनिया, स्लोवाकिया, शामिल हैं, सबसे अधिक प्रभावित हैं। यह देश यूक्रेन के आक्रमण के बारे में असुरक्षित हैं। नाटो सैनिकों की तैनाती और हथियार प्रणाली के उन्नयन के साथ वहां की सुरक्षा को मजबूत और समेकित किया जा रहा है। फिनलैंड और स्वीडन जो शीत युद्ध के दौरान तटस्थ थे, स्वीडन की स्पष्ट तटस्थता द्वितीय विश्व युद्ध तक और भी आगे बढ़ रही थी। दोनों ने नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया है।

वस्तुत: पूरे शीत युद्ध के दौरान फिनलैंड की विदेश नीति मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता वाली रही है। सोवियत संघ के विघटन के बाद कम हुई स्थिति के बावजूद फिनलैंड अभी भी रूस की चिंताओं के प्रति सचेत था। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की कीव की नवीनतम यात्रा और यहां तक कि अन्य यूरोपीय नेताओं के साथ यूक्रेन के पीछे दृढ़ता से खड़े होने से ऐसा नहीं लगता कि यूरोपियन एकता जल्द ही टूट जाएगी।  इस युद्ध में अभी तक न कोई जीत पाया है और न ही हारा है। -मनीष तिवारी

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