वित्त विधेयक को लेकर उठते ‘गम्भीर प्रश्न’

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2019 03:50 AM

serious question  about rising finance bill

संसद के सदन में बोलने के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत होती है जहां विपक्षी बैंच खाली हों। ठीक ऐसा ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई 2019 को राज्यसभा में किया। उन्होंने अपना पहला वित्त विधेयक राज्यसभा (विपक्षरहित) में पेश किया, जिसने ‘विधेयक पर...

संसद के सदन में बोलने के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत होती है जहां विपक्षी बैंच खाली हों। ठीक ऐसा ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई 2019 को राज्यसभा में किया। उन्होंने अपना पहला वित्त विधेयक राज्यसभा (विपक्षरहित) में पेश किया, जिसने ‘विधेयक पर विचार करके लौटा दिया’ और भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ सब कुछ ठीक है। बधाई हो वित्त मंत्री जी। जैसे कि बजट के बारे में कुछ गम्भीर प्रश्र थे, वित्त विधेयक के बारे में भी गम्भीर प्रश्र हैं। 

खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन 
पहले तो विधेयक की संवैधानिकता संदिग्ध है। कानून के उल्लंघन के मामले में सरकार की बेशर्मी सामने आ गई है। जस्टिस पुत्तास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि धन विधेयक संविधान की धारा 110 में निर्धारित की गई शर्तों के ही अनुरूप होना चाहिए। ऐसे विधेयक में केवल ऐसे प्रावधान होने चाहिएं जो कंसोलिडेटिड फंड आफ इंडिया (सी.एफ.आई.) अथवा पब्लिक अकाऊंट आफ इंडिया को अथवा से करों तथा भुगतानों से निपटते हों। फिर भी सरकार ने वित्त (नं. 2) विधेयक 2019 में ऐसी धाराएं शामिल कीं जो संविधान की धारा 110 के अंतर्गत अनुचित हैं। 

विधेयक का चैप्टर 6, जिसका शीर्षक ‘फुटकर’ है, में ऐसी धाराएं हैं जो रिजर्व बैंक आफ इंडिया एक्ट, इंश्योरैंस एक्ट, सिक्योरिटीज कंट्रैक्ट्स (रैगुलेशन) आदि जैसे कई कानूनों में संशोधन करती हैं। मैंने कम से कम 10 ऐसे कानून गिने, जिनमें संशोधन किया गया। न तो संबंधित कानूनों और न ही उनमें किए गए संशोधनों का धारा 110 में उल्लेखित उद्देश्यों से कोई लेना-देना है। कोई न कोई निश्चित तौर पर वित्त (नं. 2) विधेयक 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देगा। मैं हैरान हूं कि केवल कुछ गैर वित्तीय कानूनों में प्रश्र सूचक संशोधनों पर चर्चा से बचने के लिए सरकार वित्त तथा अर्थव्यवस्था पर अपने सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधेयक पर जोखिम उठाना चाहती है। 

दुलकी चाल से चौकड़ी तक 
दूसरे, किसी ने भी मेरे लेख (पंजाब केसरी, 21 जुलाई 2019) में 5, 10, 20 खरब डालर अर्थव्यवस्था के तौर पर इस्तेमाल किए गए आंकड़ों में कोई खामी नहीं पाई। सरकार ने महत्वाकांक्षी, या यूं कहें आक्रामक राजस्व लक्ष्य निर्धारित किए हैं। 2018-19 में हासिल की गई वास्तविक वृद्धि दरें तथा नए वर्ष के लिए अनुमानित वृद्धि दरें (2018-19 की वास्तव पर 2019-20 के लिए अनुमानित) ऐसे हैं: 

कैसे सरकार इन उच्च राजस्व लक्ष्यों को प्राप्त करना प्रस्तावित कर सकती है? विशेषकर, जब आई.एम.एफ., ए.डी.बी. तथा आर.बी.आई. ने भारत की जी.डी.पी. वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 7.0 प्रतिशत और वैश्विक वृद्धि दर को 3.2 प्रतिशत कर दिया है। प्रत्येक अर्थशास्त्री, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी है (नवीनतम हैं डाक्टर कौशिक बसु), ने इसमें और अधिक मंदी आने की चेतावनी दी है, जो 2018-19 की चार तिमाहियों में देखे गए रुझान (8.0, 7.0, 6.6 तथा 5.8 प्रतिशत) का विस्तार है। सरकार कैसे आशा कर सकती है कि 2018-19 में एक अंक की दुलकी चाल के बाद राजस्व संग्रह दोहरे अंकों की उच्च दर पर चौकड़ी भरेगा? 

मुझे संदेह है कि सरकार वर्तमान करदाताओं को निचोड़ेगी। सरकार ने पहले ही आयकर, जी.एस.टी. तथा अन्य कर अधिकारियों को आसामान्य शक्तियां दे दी हैं। अधिक नोटिस दिए जाएंगे, निजी तौर पर पेश होने के लिए अधिक सम्मन जारी होंगे, अधिक गिरफ्तारियां होंगी, अधिक  मुकद्दमे चलेंगे, जुर्मानों के अधिक आदेश जारी होंगे, सख्त मूल्यांकन के अधिक आदेश जारी होंगे, अपीलों को तुरंत तौर पर अधिक खारिज किया जाएगा-संक्षेप में करदाताओं को और अधिक उत्पीडऩ झेलना पड़ेगा। 

राज्यों के हिस्से से इंकार 
तीसरे, क्या राज्यों को करों का उनका हिस्सा मिल रहा है? 14वें वित्त आयोग (एफ.एफ.सी.) ने केन्द्र सरकार के सकल कर राजस्व (जी.टी.आर.) का 42 प्रतिशत राज्यों को देने का निर्णय सुनाया था। एफ.एफ.सी. रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था। 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों का संवैधानिक अधिकार बन गया और केन्द्र सरकार की एक संवैधानिक बाध्यता। एफ.एफ.सी. का निर्णय 2015-16 से 2019-20 के समयकाल दौरान लागू किया गया है। निर्णय के बावजूद राज्यों को वास्तव में जो दिया गया वह काफी कम था, जैसा कि निम्न तालिका में देखा जा सकता है: 

42 प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त न करने का कारण उपकरों की उदार उग्राही तथा करों पर अधिशुल्क हैं। एफ.एफ.सी. का निर्णय उपकरों तथा अधिशुल्कों पर लागू नहीं होता तथा उन्हें राज्यों के साथ सांझा नहीं किया जाता। यह एक बाधा है। दोहरी बाधा तब आती है जब केन्द्र सरकार का कर संग्रह इसके बजटीय अथवा संशोधित अनुमानों से कम होता है। 2018-19 में जी.टी.आर. पर बजट अनुमान 22,71,242 करोड़ रुपए का था और संशोधित अनुमान 22,48,175 करोड़ रुपए का था लेकिन वास्तविक संग्रह केवल 20,80,203 करोड़ रुपए का था। जब टुकड़ा छोटा हो तो राज्यों को भी आशान्वित हिस्सेदारी से कम मिलेगा। कृपया वित्त मंत्री के उत्तर को देखें अथवा प्रतिलिपि पर नजर डालें। क्या वित्त मंत्री ने किसी भी उस मुद्दे का समाधान किया है जो मैंने इस लेख में उठाए हैं या उठाऊंगा, यदि राज्यसभा में एक उचित चर्चा हो।- पी. चिदम्बरम

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