शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्य, लाल बहादुर शास्त्री की स्वाभाविक मृत्यु

Edited By Updated: 11 Jan, 2016 06:16 PM

shastri death the mystery of the natural death of lal bahadur shastri

पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में जून 1964 में संभालने वाले लाल बहादुरशास्त्री की पचासवीं पुण्य तिथि 11 जनवरी को है।

(कैप्टन प्रवीण डावर ) पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में जून 1964 में संभालने वाले लाल बहादुरशास्त्री की पचासवीं पुण्य तिथि 11 जनवरी को है। शास्त्री जी की मृत्यु सोवियत प्रधानमंत्री अलैक्सी कोसीगीन की मध्यस्तता में पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के साथ हुए ताशकंद समझौते के तुरंत बाद हो गई थी। 

 कुछ माह पहले 26 सितंबर 2015 को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा लाल बहादुर शास्त्री के बेटे श्री अनिल शास्त्री ने अपने पिता की मृत्यु की जांच की मांग की थी। इससे पहले उनके भाई सुनिल शास्त्री ने केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिख कर अपने पिता की मृत्यु से संबंधित दस्तावेजों को आम करने की मांग की थी। साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों ने भी उनकी विवादास्पद मृत्यु से संबंधित विवाद को भी उठाया है। परंतु नेताजी की मृत्यु से संबंधित फाइलों को आम करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई है।
 
 शास्त्रीजी की अप्राकृतिक मृत्यु का संदेह उतना ही बेहुदा है जितना कि नेताजी की विमान दुर्घटना का न होना । शास्त्री जी के परिजनों की विमान दुर्घटना का न होना। शास्त्रीजी के परिजनों को शास्त्रीजी के साथ गए सहयोगी के ताशकंद समझौते के विवरणात्मक लेखक सी.पी.श्रीवास्तव, शास्त्रीजी के सूचना सहायक कुलदीप नैयर, इंद्र मल्होत्रा, एवं प्रेम भाटिया जोकि जाने माने पत्रकार हैं, आदि के द्वारा ताशकंद समझौते का बिंदुवार विवरण दिया गया है।
 
 लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु 11 जनवरी 1966 को शास्त्री 1:32 बजे हुई (भारतीय समयानुसार 2:02 रात्रि) श्रीवास्तव जी के अनुसार 10 जनवरी तक तात्कालिक घटनाक्रम से संतुष्ट नजर आ रहे थे। सांय 4 बजे उन्होंने पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए। श्रीवास्तव जी रात्रि 10:30 बजे शास्त्री जी के पास से प्रेस कॉंफ्रेंस में शामिल होने के लिए गए। 
 
प्रेस कॉंफ्रेंस के पश्चात उन्हें शास्त्री जी के व्यक्तिगत सहायक जगन्नाथ द्वारा यह सूचना मिली कि शास्त्री जी गंभीर रूप से बीमार हैं परंतु जब तक वह वंहा पहुचें, शास्त्रीजी की मृत्यु हो चुकी थी।
 
पूरे घटनाक्रम की प्रथम दृष्टया जानकारी हेतु श्रीवास्तव जी ने रात्रि 10:30 से रात्रि 1:32 तक के बीच पूर्ण घटनाक्रम के बारे में उनके सहायक जगन्नाथ सहाय, एम.एम.एन.शर्मा तथा उनके व्यक्तिगत स्टाफ सदस्यों से विस्तृत जानकारी ली। श्रीवास्तव जी के विवरणानुसार, जगन्नाथ सहाय ने शास्त्री जी का कमरा रात्रि 11:30 बजे छोड़ा,तत्पश्चात उनके सेवक रामनाथ ने उन्हें पीने के लिए दूध दिया। 
 
रामनाथ को शास्त्रीजी ने जा कर सोने के लिए कहा तब लगभग रात्रि 12:30 बजे रामनाथ,शास्त्री जी के कमरे से निकला। वह और शर्मा जब सोने ही वाले थेकि अचानक रात्रि 1:20 पर शास्त्री जी उनके दरवाजे पर आए और पूछा कि डॉक्टर कंहा हैं। जगन्नाथ सहाय ने जवाब किया कि बाबुजी वह यहीं पर सो रहे हैं। आप अपने कमरे में चलिए, मैं वहीं उन्हें ले कर आता हॅूं। शास्त्री जी स्वयं ही अपने कमरे तक चले गए और वहां जाकर लगातार जोर-जोर  से खांसने लगे। श्री शर्मा एवं कपूर ने उन्हें लेटने के लिए कहा और वे लेट गए।
 
श्री सहाय तथा डॉ. चुध अपने दवाई के बक्से के साथ दौड़े-दौड़े आए एवं शास्त्री जी की नब्ज परीक्षा कर उन्हें इंजेक्शन दिया। परंतु साथ ही डा़. ने हताशा के स्वर में कहा कि बाबूजी आपने मुझे मौका नहीं दिया, डॉ. चुध उनकी छाती पर मालिश करते रहे एवं उन्हें कृत्रिम सांस देने की कोशिश करते रहे पंरतु सब व्यर्थ रहा। प्रधानमंत्री जी रात्रि 1:32 पर सदगति को प्राप्त हुए।
 
चलिए अब हम कुलदीप नैयर की जुबानी सच्चाई सुनते है। स्वागत कार्यक्रम में 10 जनवरी 1996 को कुलदीप नैयर अंतिम बार शास्त्री जी से मिले। शास्त्री जी ने उन्हें बताया कि वापसी की यात्रा पर आमंत्रित किया गया है।
 
कुलदीप नैयर अपनी जीवनी में लिखते है," शास्त्री जी ने मुझसे ताशकंद समझौते पर भारतीय प्रैस की प्रतिक्रिया जानने को कहा था। मैंने उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें देखीं। इनमें से कुछ को समझा जा सकता था क्योंकि भारतीय पत्रकारों की प्रैस-वार्ता में कुछ पत्रकारों के सवाल कुछ ज्यादा ही चुभने वाले थे। उन्होंने रूखें अंदाज में पूछा कि उन्होंने हाजीपीर और तिथवाल क्षेत्र पाकिस्तान को वापिस क्यों सौंप दिेेए। प्रैस-वार्ता के घटनाक्रम ने उन पर ज्यादा ही दवाब पैदा कर दिया था। भारत में भी राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी तथा आचार्य कृपालानी जैसे विपक्ष के कददावर नेताओं ने भी ताशकंद समझौते का भत्र्सना की थी।"
 
कुलदीप नैयर फिर कहते है कि जगन्नाथ सहाय ने शास्त्री जी से उनके घर पर बात कराने के लिए पूछा क्योंकि उन्होंने पिछले दो दिनों से घर पर संपर्क नहीं किया था। शास्त्री जी ने पहले तो मना किय़ा लेकिन फिर उनका विचार बदल गया। उस समय करीब 11 बजे का समय होगा। पहले उनके दामाद वी.एन.सिह ने बात की परंतु वे कुछ ज्यादा नहीं बोले। फिर शास्त्री जी ने पूछा " तुम को कैसा लगा " कुसुम ने उतर दिया "बाबू जी हमें अच्छा नहीं लगा" फिर उन्होंने अम्मा के बारे में पूछा क्योंकि घर में श्रीमति ललिता शास्त्री को इसी नाम से संबोधित किया जाता था। "उन्हें भी अच्छा नहीं लगा" कुसुम का उत्तर था। शास्त्री जी बोले अगर घर वालों को अच्छा नहीं लगा तो बाहर वाले क्या कहेंगे। 
 
जगन्नाथ के अनुसार टेलीफोन की बातचीत ने शास्त्री जी को व्यथित कर दिया था। भारतीय प्रैस भी उन पर आक्रमक थी। वह बेचैनी से कमरे में इधर-उधर टहलने लगे। यह आसामान्य नहीं था। क्योंकि वह नई दिल्ली में अपने आवास पर आए आगंतुको से बातचीत भी टहलकदमी करते हुए ही करते थे। शास्त्री जी को दो बार पहले भी दिल का दौरा पड़ चुका था। इसलिए शायद टेलीफोन पर हुई बातचीत, पत्रकारों का रवैया और थकान ने शायद उन पर ज्यादा ही दवाब ड़ाल दिया ।
 
इसके पश्चात नैयर बताते है कि जैसे-जैसे दिन बीतते गए, शास्त्री जी के परिवार का संदेह बढ़ता गया कि उन्हें जहर दिया गया था। शास्त्री जी के जन्मदिवस 2 अक्तूबर पर 1970 में श्रीमति ललिता शास्त्री ने अपने पति की मृत्यु का जांच का मांग की। समाचार पत्रों की खबरों के आधार पर कांग्रेस पार्टी ने भी शास्त्री जी की मृत्यु की जांच की मांग का समर्थन किया था। नैयर ने 1970 के अंत में मोरारजी देसाई से पूछा कि क्या वास्तव में वे ऐसा समझते है कि शास्त्री जी की मृत्यु स्वाभावित अथवा प्राकृतिक थी।
 
उन्होंने कहा कि " यह सब केवल राजनीति है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि कहीं भी कुछ संदेहजनक नहीं था। शास्त्री जी की मृत्यु दिल के दौरे के कारण हुई है। मैंने स्वंय उनका इलाज करने वाले डाक्टर एंव उमके सचिव श्रीवास्तव से जानकारी ली थी और वे लोग उनके ताशकंद दौरे पर उनके साथ थे। इस महीने जबकि हम 1965 के युद्ध की पचासवीं वर्षगांठ मना रहें है, पूरा देश युद्द के दौरान शास्त्री जी के नेतृत्व एंव उनके दिए नारे ' जय जवान जय किसान' को दिल से याद कर रहा है और शायद सबसे उपयुक्त समय है जब हमें सारे विवादों को दफन कर देना चाहिए। यही उस सच्चे गांधीवादी को सच्ची श्रद्धांजली होगी जिसने कभी किसी के बारे में बुरा नहीं सोचा। वह हम में से किसी को भी बुरा नहीं सोचने देते और उनकी इसी विरासत को उनके परिवार को संभाल कर रखना चाहिए।
 
 
                                                                            

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