Edited By Parveen Kumar,Updated: 19 Dec, 2025 01:59 AM

राजस्थान की पहचान और पर्यावरण की रीढ़ मानी जाने वाली अरावली पर्वतमाला आज अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने को मजबूर है। जिन अरावली पहाड़ों ने सदियों से गंगा-यमुना के मैदानी इलाकों को रेगिस्तान बनने से रोका, वही अब कानूनी परिभाषा के फेर में संकट...
नेशनल डेस्क: राजस्थान की पहचान और पर्यावरण की रीढ़ मानी जाने वाली अरावली पर्वतमाला आज अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने को मजबूर है। जिन अरावली पहाड़ों ने सदियों से गंगा-यमुना के मैदानी इलाकों को रेगिस्तान बनने से रोका, वही अब कानूनी परिभाषा के फेर में संकट में आ गए हैं। तमिलनाडु के टी.एन. गोवर्धन की एक पुरानी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने पूरे देश में पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। अरावली पहाड़ अगर बड़े पैमाने पर हटाए या नष्ट किए जाते हैं, तो राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली पर इसके असर बेहद गहरे, दीर्घकालिक और खतरनाक होंगे। इसे सिर्फ पर्यावरण नहीं, बल्कि जीवन, पानी, मौसम और अर्थव्यवस्था से जुड़ा संकट समझना चाहिए।
अरावली पहाड़ियों की बदली परिभाषा
सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने अपने फैसले में अरावली हिल्स (Aravalli Hills) की नई परिभाषा को मंजूरी दी है। इसके अनुसार अब केवल वही भू-आकृतियां “अरावली पहाड़” मानी जाएंगी, जिनकी स्थानीय धरातल से ऊंचाई कम से कम 100 मीटर या उससे अधिक होगी। इस फैसले का सीधा असर यह हुआ है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले अरावली के 90 प्रतिशत से अधिक हिस्से अब कानूनी संरक्षण से बाहर माने जाएंगे। इसका मतलब यह है कि इन क्षेत्रों में अब खनन, निर्माण और विकास गतिविधियों के रास्ते खुल सकते हैं, जो अब तक संरक्षित थे।
2010 की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता
2010 की एक आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक अरावली क्षेत्र में कुल 12,081 पहाड़ियां दर्ज थीं। नई परिभाषा के बाद इनमें से केवल 1,048 पहाड़ियां ही 100 मीटर की ऊंचाई के मानक पर खरी उतरेंगी। यानी लगभग 90% अरावली क्षेत्र अब अरावली का हिस्सा ही नहीं माना जाएगा।पर्यावरणविदों का कहना है कि यह फैसला उस पर्वत श्रृंखला के लिए बेहद खतरनाक है, जो मानव सभ्यता के जन्म से भी पहले अस्तित्व में थी, लेकिन आज इंसानी परिभाषाओं में बंधकर सिमटती जा रही है।
नीलगिरी से जुड़ी याचिका, असर अरावली पर
गौर करने वाली बात यह है कि यह याचिका अरावली से जुड़ी ही नहीं थी। साल 1995 में तमिलनाडु के जमींदार टी.एन. गोवर्धन ने यह याचिका नीलगिरी के जंगलों में हो रही अंधाधुंध कटाई को लेकर दायर की थी। उनका तर्क था कि वनों की अवैध कटाई और लकड़ी का गलत इस्तेमाल हो रहा है। करीब 30 साल पुरानी इस याचिका के फैसले का असर अब राजस्थान की अरावली पहाड़ियों पर पड़ गया है, जिससे यहां के पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है।

राजस्थान की लाइफलाइन है अरावली पर्वतमाला
- अरावली की कुल लंबाई: 692 किलोमीटर
- राजस्थान में विस्तार: करीब 550 किलोमीटर (80%)
- सबसे ऊंची चोटी: गुरु शिखर (माउंट आबू)
- ऊंचाई: 1,727 मीटर
क्या बढ़ेगा राजस्थान में रेगिस्तान?
पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई थी, जिसमें यह माना गया कि अरावली का बड़ा हिस्सा अब केवल भूभाग मात्र रह गया है। नई परिभाषा के बाद इन इलाकों में खनन की संभावनाएं बढ़ गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खनन शुरू हुआ तो-
- थार रेगिस्तान का विस्तार तेज हो सकता है
- मानसून प्रणाली कमजोर पड़ सकती है
- बारिश में भारी कमी आ सकती है
- भूजल स्तर और नीचे जा सकता है
- इससे राजस्थान का बड़ा इलाका रेगिस्तान में तब्दील होने की ओर बढ़ सकता है।

इन राज्यों में मचेगी तबाही
1. राजस्थान पर असर: रेगिस्तान का तेज़ी से फैलाव
- अरावली पर्वतमाला थार रेगिस्तान को रोकने वाली प्राकृतिक दीवार है। इसके कमजोर होने या हटने से
- रेगिस्तान पूर्वी राजस्थान की ओर तेज़ी से बढ़ेगा
- जयपुर, अलवर, सीकर, दौसा जैसे इलाके अधिक शुष्क होंगे
- भूजल स्तर और नीचे जाएगा, पहले से जल-संकट झेल रहे इलाकों में पीने का पानी दुर्लभ होगा
- खेती पर सीधा असर पड़ेगा, फसलें घटेंगी और किसान पलायन को मजबूर होंगे
2. हरियाणा पर असर: खेती और पानी दोनों खतरे में
- हरियाणा के दक्षिणी जिले (गुरुग्राम, नूंह, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़) अरावली से सीधे जुड़े हैं।
- अरावली हटने से रेत भरी हवाएं इन इलाकों तक पहुंचेंगी
- मिट्टी की नमी खत्म होगी, जिससे खेती की उत्पादकता गिरेगी
- भूजल रिचार्ज रुक जाएगा, ट्यूबवेल सूखेंगे
- गर्मी की तीव्रता बढ़ेगी, हीटवेव आम होंगी
3. दिल्ली पर असर: प्रदूषण और गर्मी का विस्फोट
- दिल्ली के लिए अरावली एक नेचुरल एयर फिल्टर की तरह काम करती है।
- अरावली हटने से राजस्थान की धूल सीधे दिल्ली पहुंचेगी
- वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ेगा
- गर्मियों में तापमान 2–3 डिग्री तक और बढ़ सकता है
- सांस, हृदय और आंखों से जुड़ी बीमारियों में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी
4. बारिश और मौसम चक्र पर असर
- अरावली मानसून की नमी को रोककर बारिश में मदद करती है।
- इसके कमजोर होने से अनियमित बारिश होगी
- कभी बाढ़ तो कभी सूखा जैसी स्थिति बनेगी
- छोटे नदी-नाले और झीलें सूख जाएंगी
- पूरा उत्तर भारत जल असंतुलन का शिकार होगा
अरावली क्यों है इतनी अहम?
अरावली को भारत की ग्रीन वॉल (Green Wall) कहा जाता है, क्योंकि-
- यह थार रेगिस्तान को फैलने से रोकती है
- दिल्ली-NCR को धूल और रेत के तूफानों से बचाती है
- मानसून की नमी को रोककर बारिश में मदद करती है
- भूजल रिचार्ज का बड़ा स्रोत है
- वन्यजीवों और जैव विविधता का संरक्षण करती है
- तापमान संतुलन बनाए रखती है