सिंगापुर तथा भारत स्वच्छ भविष्य के लिए एक सांझी परिकल्पना

Edited By Pardeep,Updated: 02 Oct, 2018 04:45 AM

singapore and india a comprehensive hypothesis for clean future

आज से चार वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी ने 2019 तक ‘स्वच्छ भारत’ की अपनी परिकल्पना को साकार करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की थी। यह भी संयोग है कि 2 अक्तूबर, 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है, जिन्होंने स्वच्छता को...

आज से चार वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी ने 2019 तक ‘स्वच्छ भारत’ की अपनी परिकल्पना को साकार करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की थी। यह भी संयोग है कि 2 अक्तूबर, 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है, जिन्होंने स्वच्छता को राष्ट्रीय प्राथमिकता की संज्ञा दी। पिछले चार वर्षों में भारत ने 8 करोड़ 60 लाख घरों में शौचालयों का निर्माण कर और करीब 5 लाख गांवों (चार लाख सत्तर हजार गांव) को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर इस दिशा में काफी प्रगति की है। 

सिंगापुर भी इस रास्ते पर चल चुका है। स्वतंत्रता के बाद से ही हमने अपनी जनता के लिए एक स्वच्छ और हरित वातावरण के निर्माण हेतु कठोर परिश्रम किया है। शुरूआती दिनों में बहुत से घरों में मल-निकास की व्यवस्था नहीं थी। मल को बाल्टियों में एकत्रित किया जाता था और इसे ऐसे ट्रकों के जरिए मल-शोधन संयंत्रों तक ले जाया जाता था जो असहनीय दुर्गंध फैलाते थे। मानव मल को प्राय: पास की नहरों एवं नदियों में भी प्रवाहित कर दिया जाता था जो जल को प्रदूषित तथा विषाक्त बनाता था। साफ-सफाई के अभाव वाली जीवन-स्थितियां कई जन स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती थीं जिनमें अशुद्ध पानी की वजह से हमेशा फैलने वाली बीमारियों का प्रकोप भी शामिल था। 

हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने निर्णायक ढंग से काम करने का संकल्प लिया था। उन्होंने ‘सिंगापुर को स्वच्छ रखें’ नाम से एक राष्ट्रीय अभियान चलाया। हमने प्रत्येक घर में मल-निकास की व्यवस्था बनाई, अपनी नदियों को साफ किया और सिंगापुर को एक स्वच्छ और हरित शहर बना दिया। विशेष तौर पर हमने सिंगापुर नदी को साफ किया। इस प्रक्रिया में हमें हजारों अतिक्रमणकारियों, घर के अहाते में चलने वाले उद्योगों, सूअर पालने वाले कांजीघरों और प्रदूषण के कई स्रोतों को नदी के तराई वाले हिस्सों से हटाना पड़ा। आज एक स्वच्छ सिंगापुर नदी शहर के बीच से बहकर मरीना जलाशय में समाप्त होती है जोकि हमारी राष्ट्रीय जलापूर्ति प्रणाली को जल की आपूॢत करता है। 

आकार के हिसाब से भारत सिंगापुर से बेहद बड़ा है। गंगा नदी, सिंगापुर नदी से लगभग हजार गुना बड़ी है। इसके बावजूद सिंगापुर और भारत के लिए स्वच्छता के अभियान में कई समानताएं हैं। सबसे पहली, दोनों ही देशों का अनुभव संकल्पना और नेतृत्व के महत्व को दर्शाता है। दिवंगत प्रधानमंत्री स्वर्गीय ली कुआन यू और प्रधानमंत्री मोदी, दोनों ने ही देश को स्वच्छ और हरित बनाए रखने को प्राथमिकता दी। दोनों ने ही जन-सामान्य को जोडऩे और जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर जन-आंदोलन का नेतृत्व किया। दोनों नेताओं ने खुद झाड़ू उठाया और सड़कों को साफ करने के लिए जनता के साथ जुट गए। प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि श्री ली उनके लिए एक ‘‘व्यक्तिगत प्रेरणा’’ थे और उन्होंने श्री ली के इस विचार से सीखा है कि ‘‘किसी भी राष्ट्र का समग्र बदलाव-हम कैसे हैं...यहां से आरंभ होता है। वास्तव में स्वच्छ भारत अभियान केवल भारत के वातावरण को स्वच्छ करने का अभियान भर नहीं है, अपितु ‘‘हम किस तरह से सोचते, रहते और काम करते हैं, उसमें समग्र बदलाव लाने का यह एक व्यापक सुधार’’ है। 

दूसरी, सफलता के लिए एक दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। सिंगापुर में हमने हमारे गंदे पानी की निकासी और मल निकासी की प्रणालियों को अलग करने के लिए मल निकासी के एक मास्टर प्लान को लागू किया। इसका उद्देश्य बारिश के पानी को प्रदूषित होने से बचाना था ताकि इसे एकत्रित कर प्रयोग में लाया जा सके। साथ ही सिंगापुर मलशोधन संयंत्रों से निकले अवशिष्ट जल को दोबारा प्रयोग में लाता है और इसको रिवर्स ऑस्मोसिस के जरिए शुद्ध किया जाता है ताकि इससे अत्यधिक शुद्ध और उच्च गुणवत्ता का पानी नए सिरे से तैयार किया जा सके जोकि पीने के योग्य हो। इस्तेमाल किए जा चुके पानी का क्या किया जाए? हमने इस समस्या की पहचान की और इसे एक दूसरी समस्या, जल की कमी की समस्या को सुलझाने में इस्तेमाल किया। 

भारत में स्वच्छ भारत अभियान को लागू करने के राष्ट्रीय प्रयास, जिसमें इससे संबंधित अहम लोगों जैसे उद्योग जगत और विद्यालयों के साथ मिलकर काम करने से बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं। ‘‘2018 की यूनिसेफ  की विद्यालयों में पेयजल स्वच्छता और साफ-सफाई की वैश्विक आधार-रेखा रिपोर्ट’’ ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि 2006 की तुलना में इस समय भारत के लगभग सभी विद्यालयों में साफ-सफाई की सुविधाओं का विकास हो चुका है जोकि उस समय 50 प्रतिशत विद्यालयों में ही थीं। तीसरी, सिंगापुर और भारत दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को महत्व देते हैं। यह जरूरी नहीं है कि अलग-अलग देशों में एक जैसे समाधान सफल हों लेकिन एक-दूसरे से सीख कर और अनुभवों को बांटकर हम सभी इनका लाभ उठा सकते हैं।

मैं महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए भारत को बधाई देता हूं जिसमें दुनिया भर के नेता, इस क्षेत्र में काम करने वाले और विशेषज्ञ साफ-सफाई से जुड़े अपने अनुभवों को सांझा करने के लिए एकत्रित हुए। सिंगापुर भी इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय मंचों का आयोजन करता है, जैसे प्रत्येक 2 वर्ष में आयोजित किया जाने वाला विश्व नगर शिखर सम्मेलन और सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय जल सप्ताह। स्वच्छता की वैश्विक चुनौती के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिए 19 नवम्बर को विश्व स्वच्छता दिवस के तौर पर मनाने के लिए सिंगापुर के ‘सभी के लिए स्वच्छता’ के संकल्प को संयुक्त राष्ट्र संघ वर्ष 2013 में अपना चुका है। 

सिंगापुर को ऐसे समय में भारत के साथ अपने अनुभव बांटने में खुशी है जब भारत देश भर में और अधिक रहने योग्य तथा स्थायी स्मार्ट शहरों का निरंतर विकास कर रहा है। 100 अधिकारियों को नगर नियोजन, जल एवं कचरे के प्रबंधन में प्रशिक्षण देने के लिए सिंगापुर भारत के नगर एवं राष्ट्र नियोजन संगठन के साथ सहयोग कर रहा है। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य जब अपने शहरों का विकास कर रहे हैं तो शहरी समाधान उपलब्ध कराने के लिए सिंगापुर उनके साथ सहयोग करने के लिए तैयार है। मैं ‘‘भारत को स्वच्छ’’ बनाने के स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए  प्रधानमंत्री मोदी और भारत की जनता को हृदय से शुभकामनाएं देता हूं। हमारे लोगों को पीढिय़ों तक स्वच्छ जल और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने के लिए तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं दोनों देशों के बीच सहयोग को और बढ़ाने के लिए तैयार हूं।-ली हेन लूंग (प्रधानमंत्री, सिंगापुर)

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