न्यायिक दुनिया में सोली सोराबजी का अभूतपूर्व योगदान

Edited By ,Updated: 02 May, 2021 05:01 AM

soli sorabjee s unprecedented contribution to the judicial world

विदेशों के पूर्व अटार्नी जनरल सोली जहांगीर सोराबजी (91) एक प्रतिष्ठित वकील थे जिनका नई दिल्ली में एक अस्पताल में शुक्रवार को निधन हो गया। उनका कोविड-19 के लिए उपचार चल र

विदेशों के पूर्व अटार्नी जनरल सोली जहांगीर सोराबजी (91) एक प्रतिष्ठित वकील थे जिनका नई दिल्ली में एक अस्पताल में शुक्रवार को निधन हो गया। उनका कोविड-19 के लिए उपचार चल रहा था। सोराबजी का जन्म 9 मार्च 1930 को मुम्बई की एक पारसी फैमिली में हुआ। 

उन्होंने सेंट जेवियर्ज कालेज तथा गवर्नमैंट लॉ कालेज से शिक्षा ग्रहण की। वह ऐशो-आराम भरा जीवन आसानी से जी सकते थे मगर उन्होंने लॉ को अपना प्रमुख पेशा चुना और 1953 में महान जमशेदजी कांगा के चै बर्ज  में शामिल हो गए। कानूनी लड़ाई और ऐतिहासिक मामलों में उनकी उपस्थिति सोराबजी को 1970 के दशक में भारत की सर्वोच्च अदालत तक ले गई।
उन्हें 2 बार भारत का अटार्नी जनरल नियुक्त किया गया। सोली सोराबजी को बोलने की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के संरक्षण की पैरवी करने के लिए भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक अवार्ड पद्म विभूषण 2002 में दिया गया। अपने पेशे के लिए उन्हें पूरे विश्व भर में एक जीनियस की पहचान मिली। 

उन्हें 1997 में नाइजीरिया के लिए विशेष दूत नियुक्त किया गया। उन्हें उस देश में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवीय अधिकारों के हालातों पर रिपोर्ट करने के लिए कहा गया। उन्होंने 2000 से लेकर 2006 तक हेग में पर्मानैंट कोर्ट ऑफ आॢबट्रेशन के एक सदस्य के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। अभिव्यक्ति और स्वतंत्र भाषण के वह अग्रणी हितैषी रहे। सोली सोराबजी अनेकों हाई-प्रोफाइल मामलों जिसमें गोलकनाथ  और केशवानंद भारती मामले भी थे, का हिस्सा रहे। गोलकनाथ एवं केशवानंद भारती मामलों ने भारतीय संविधान को एक नया आयाम दिया। सर्वोच्च न्यायालय में सोराबजी केशवानंद भारती मामले को लडऩे के लिए कानूनविद नानी पालकीवाला में शामिल हुए। केशवानंद भारती मामले को सर्वोच्च न्यायालय के 13 न्यायाधीशों की पीठ ने देखा। 

उन्होंने सिटीजन्स जस्ट्सि कमेटी  के साथ कार्य किया और 1984 सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों का मु त में बचाव किया। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1978), एस.आर. बो मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1994) तथा बी.पी. सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2010) इत्यादि महत्वपूर्ण  मामलों को देखा।
उनके जूनियर हरीश साल्वे जो पिछले वर्ष क्वीन कौंसिल फॉर द कोटर््स ऑफ इंगलैंड एंड वेल्स नियुक्त हुए, ने सोली सोराबजी को यह कहते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी, ‘‘जैसे मैं अपने पिता को मिस करता हूं वैसे ही मैं सोली सोराबजी को मिस करूंगा।’’ 

उनकी मौत के बाद शोक संदेशों की बाढ़ जैसे आ गई। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य वरिष्ठ वकीलों ने उनकी मौत पर दुख व्यक्त किया। भारत  के नव-नियुक्त मु य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने कहा, ‘‘मुझे श्री सोली जहांगीर सोराबजी के दुनिया से चले जाने से बेहद गहरा धक्का लगा। न्यायिक दुनिया में करीब 68 वर्ष तक जुड़े रहने के कारण सोराबजी ने मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों को सुदृढ़ करने के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। मेरे पास इतने शब्द नहीं कि मैं उनकी महानता का व्या यान कर सकूं।

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