डा. मनमोहन सिंह, चन्द्रशेखर व लाला जगत नारायण जी से जुड़ी कुछ यादें

Edited By ,Updated: 04 Oct, 2019 01:46 AM

some memories related to manmohan singh chandrashekhar lala jagat narayan ji

हमारे देश में कांग्रेस ही एक ऐसा राजनीतिक दल है, जो आज के राजनीतिक हालात में विरोधी पक्ष की सक्रिय भूमिका निभा सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी को मजबूत बनाने के लिए उन नेताओं की तलाश में हैं, जो वास्तव में कांग्रेस की विचारधारा से...

हमारे देश में कांग्रेस ही एक ऐसा राजनीतिक दल है, जो आज के राजनीतिक हालात में विरोधी पक्ष की सक्रिय भूमिका निभा सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी को मजबूत बनाने के लिए उन नेताओं की तलाश में हैं, जो वास्तव में कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े हैं। इस संदर्भ में लोग यह महसूस करते हैं कि कांग्रेस को अपनी विरासत की जड़ें खोजनी चाहिएं और उस सादगी व कुर्बानी के जज्बे को अपनाना चाहिए जो कभी कांग्रेस की असल ताकत थी। 

इस सिलसिले में मैं यहां डा. मनमोहन सिंह का उल्लेख करना जरूरी समझता हूं। 1994 में नरसिम्हा राव की सरकार में डा. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे और उन्हें पटियाला में एक समारोह के लिए बुलाया गया था। डा. केवल कृष्ण, जो तब पंजाब में बेअंत सिंह सरकार में वित्त तथा स्थानीय निकाय मंत्री थे, की ड्यूटी सर्कट हाऊस में डा. मनमोहन सिंह की आवभगत के लिए लगाई गई थी। समारोह के बाद डा. मनमोहन सिंह ने अम्बाला कैंट से दिल्ली के लिए ट्रेन के माध्यम से जाना था। अम्बाला कैंट स्टेशन पहुंचने पर वह फस्र्ट क्लास वेटिंग रूम में चले गए। थोड़ी देर बाद जब स्टेशन मास्टर को पता चला कि डा. मनमोहन सिंह वेटिंग रूम में ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो उसने आकर उन्हें चाय-पानी का पूछा मगर उन्होंने बहुत विनम्रता से मना कर दिया और ट्रेन आने पर वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए। उनके साथ कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं था, हालांकि वह केन्द्र के वित्त मंत्री थे। 

इसी तरह पंजाब के एक कांग्रेसी नेता के साथ मैं डा. मनमोहन सिंह को मिलने उनके घर गया। रास्ते में उस नेता के ड्राइवर ने कहा कि वह भी डा. मनमोहन सिंह को मिलना चाहता है। जब हम डा. मनमोहन सिंह से मिलने के बाद बाहर आकर गाड़ी में बैठे तो ड्राइवर ने कहा कि ‘आपने मुझे डा. मनमोहन सिंह से तो मिलवाया ही नहीं।’ इस पर उस नेता ने कहा कि जो व्यक्ति तुझे चाय देने के लिए आया था वह डा. मनमोहन सिंह ही थे। ड्राइवर यह सुनकर उनकी सादगी से बहुत प्रभावित हुआ। तब डा. सिंह विरोधी पक्ष के नेता थे। 

23 सितम्बर 2001 को हमने पंजाब राइटर्स फोरम की ओर से ‘पंजाब रत्न’ तथा ‘पटियाला रत्न’ अवार्ड देने थे। ये अवार्ड हमारी संस्था उन लोगों को देती है जो अपने क्षेत्र में अपनी मेहनत से बहुत ऊंचे स्तर (राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय) पर अपनी पहचान बनाते हैं। मेरी इच्छा थी कि डा. मनमोहन सिंह को बतौर स्टेट्समैन ‘पंजाब रत्न’ अवार्ड दिया जाए। इसके लिए मैंने डा. मनमोहन सिंह से समय लिया हुआ था। इसके लिए हम बाकायदा उनके कार्यालय गए। डा. मनमोहन सिंह ने अवार्ड का महत्व समझ कर आने के लिए हां कर दी मगर दुर्भाग्य से उस दिन वह किसी अत्यंत जरूरी काम में उलझ गए और पहुंच नहीं सके। बाद में उन्होंने न पहुंच सकने के लिए बार-बार अफसोस जताया।

लाला जगत नारायण जी तथा श्री यश
बात 1974-75 की है, जब ज्ञानी जैल सिंह की सरकार में श्री यश एक्साइज एंड टैक्सेशन तथा जेल मंत्री थे। उन्होंने तब अपनी अध्यक्षता में पंजाब की जेलों का दौरा करने के लिए एक स्पैशल समिति बनाई, जिसमें मैं भी गैर-आधिकारिक सदस्य के तौर पर शामिल था। आपातकाल लग चुका था और श्री यश ने मुझे बुलाकर कहा, ‘‘पटियाला जेल में जाओ, वहां लाला जगत नारायण जी हैं। इस बात का ध्यान रखना कि उन्हें किसी तरह की तकलीफ न हो।’’ उन दिनों ‘मिलाप’ अखबार (जिसके यश जी मालिक थे) तथा ‘हिन्द समाचार’ अखबार में एक-दूसरे के विरुद्ध काफी नोक-झोंक हो रही थी। मैं हैरान था कि इसके बावजूद श्री यश मुझे लाला जगत नारायण जी का विशेष ध्यान रखने के लिए कह रहे थे। तब राजनेताओं का ऐसा ही चरित्र था। 

चन्द्रशेखर व लाला जगत नारायण जी से मुलाकात
लाला जगत नारायण जी प्रताप सिंह कैरों मंत्रिमंडल में एक वरिष्ठ मंत्री थे। किसी मुद्दे पर कैरों के साथ उनकी बहस हुई तो उन्होंने मंत्री पद तथा कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर प्रताप सिंह कैरों के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप ‘दास कमिशन’ बना। बाद में लाला जगत नारायण जी पंजाब में आतंकवाद के विरुद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए। यह जानते हुए भी कि आतंकवादी उनकी जान के पीछे पड़े हुए हैं, वह घबराए नहीं तथा अपनी सरगर्मियों, लेखों में आतंकवाद के विरुद्ध बोलते, लिखते रहे। कांग्रेस हाईकमान के कहने के बावजूद लाला जी ने अपना इस्तीफा वापस नहीं लिया क्योंकि वह एक सच्चे, संघर्ष करने वाले नेता थे।

पटियाला जेल के दौरे के दौरान मैं चन्द्रशेखर से भी मिला। उन्होंने मुझे जेलर तथा स्टाफ के साथ देख कर समझा कि कोई सरकारी मुलाजिम होगा और उन्हें मिलने आया है। हम चन्द्रशेखर की कोठरी में गए। मैं चन्द्रशेखर को पूछ बैठा कि आपने इंदिरा गांधी के विरुद्ध जाकर कोई गलत काम तो नहीं किया। तब उन्हें पता चला कि मैं कोई सरकारी मुलाजिम नहीं बल्कि पब्लिक वर्कर हूं। उन्होंने उस दिन अखबार में छपी फोटो दिखाई जिसमें लखनऊ रेलवे स्टेशन पर संजय गांधी के पहुंचने पर उनकी चप्पलें, जो डिब्बे में रह गई थीं, यू.पी. के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी उठाकर लाते दिखाए गए थे। चन्द्रशेखर ने मुझे फोटो दिखा कर कहा कि ‘‘अब बताओ कि मेरा फैसला सही था या गलत?’’ 

वही चन्द्रशेखर कुछ समय बाद जनता दल के प्रतिनिधि के तौर पर उभरे तथा कुछ महीनों के लिए देश के प्रधानमंत्री भी बने। पाठकों तक ये बातें पहुंचाने का मेरा उद्देश्य यही है कि एक मजबूत विरोधी पक्ष की भूमिका निभाने के लिए इस तरह के आदर्शवादी लोगों को आगे लाकर कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाया जाए।-वेद प्रकाश गुप्ता

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