कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सोनिया की ‘ताजपोशी’

Edited By ,Updated: 12 Aug, 2019 02:40 AM

sonia s coronation as congress president

कांग्रेस कार्य समिति की 12 घंटे तक चली मैराथन चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि पार्टी के संगठनात्मक चुनाव होने तक सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष होंगी। गत लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था...

कांग्रेस कार्य समिति की 12 घंटे तक चली मैराथन चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि पार्टी के संगठनात्मक चुनाव होने तक सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष होंगी। गत लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था तभी से कांग्रेस कार्य समिति राहुल गांधी पर अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए दबाव डाल रही थी लेकिन वह यह पद छोडऩे पर अड़े हुए थे। शनिवार को कांग्रेस कार्य समिति गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने के मामले में आम राय नहीं बना सकी। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया। सोनिया गांधी ने 20 माह पहले पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ कर राहुल को कमान सौंपी थी। 

दिल्ली में भाजपा की रणनीति
भाजपा ने आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी शुरू कर दी है और दो मंत्रियों हरदीप सिंह पुरी तथा नित्यानंद राय सहित केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया है। प्रकाश जावड़ेकर लोकसभा चुनाव के दौरान राजस्थान के प्रभारी रहे हैं तथा वहां उन्होंने संगठनात्मक मामलों को ठीक तरह से संभाला और  अच्छे परिणाम दिए। अब भाजपा ने उन्हें इसलिए यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह दिल्ली भाजपा इकाई से अच्छा तालमेल कायम करेंगे। 

हरदीप सिंह पुरी दिल्ली की कुदरती पसंद हैं क्योंकि वह एक सिख होने के साथ-साथ केन्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हैं इसलिए वह सीङ्क्षलग, मास्टर प्लान तथा मैट्रो जैसे मुद्दों पर विरोधियों का मुकाबला कर सकते हैं। दिल्ली के चुनाव में अवैध कालोनियों का नियमितीकरण एक बड़ा मुद्दा होगा और भाजपा इस मामले में हरदीप सिंह पुरी द्वारा किए गए कार्यों को अपनी उपलब्धि के तौर पर दिखाना चाहेगी। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय  भी पूर्वांचली मतदाताओं पर अच्छा  प्रभाव रखते हैं। वह प्रवासी लोगों के काफी वोट भाजपा को दिलवा सकते हैं। दिल्ली के करावल नगर, बादली, बुराड़ी, सीमापुरी, गोकलपुरी, विकासपुरी, द्वारका, उत्तम नगर, संगम विहार, दियोली तथा बदरपुर सहित 20 विधानसभा क्षेत्रों में पूर्वांचलियों का काफी प्रभाव है। 

यू.पी. में समाजवादी पार्टी का घटता प्रभाव
लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का प्रभाव लगातार कम हो रहा है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों तथा 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा को करारा झटका दिया था। विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लडऩे के बावजूद समाजवादी पार्टी को काफी नुक्सान हुआ था। मुलायम सिंह यादव की सहमति न होने के बावजूद अखिलेश ने कांग्रेस से गठबंधन किया था। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा ने बसपा के साथ गठजोड़ किया क्योंकि इन दोनों ने लोकसभा चुनाव से पहले तीन उपचुनाव जीते थे। लेकिन अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव ने भाजपा की सहायता की। इन चुनावों में सपा केवल 5 सीटें जीत पाई जबकि बसपा ने 10 सीटों पर विजय हासिल की हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। 

बसपा ने चुनावों में हुए नुक्सान के लिए अखिलेश को जिम्मेदार ठहराया और उत्तर प्रदेश में सपा से गठबंधन तोड़ दिया। लोकसभा चुनाव में सपा फिरोजाबाद, बदायूं, कन्नौज जैसी अपनी पारिवारिक सीटों को बचाने में भी नाकाम रही और अब भाजपा ने सपा के एम.एल.सीज और राज्यसभा सदस्यों को भी अपने साथ लेना शुरू कर दिया है। 

शुरू में बहुत से एम.एल.सीका ने सपा छोड़ कर भाजपा ज्वाइन कर ली थी और इन खाली सीटों को भाजपा के मुख्यमंत्री और मंत्रियों द्वारा भरा गया था। इसके बाद सपा से इस्तीफा देने वालों को दोबारा भाजपा की ओर से एम.एल.सी. बना दिया गया। अब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर ने राज्यसभा और समाजवादी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली है। उसके बाद सपा के राज्यसभा सदस्य सुरेन्द्र सिंह नागर भी भाजपा में शामिल हो गए। अखिलेश यादव राज्यपाल राम नाइक को एम.एल.सी. के तौर पर संजय सेठ के नामांकन के बारे में आश्वस्त करने में असफल रहे। बाद में अखिलेश यादव ने संजय सेठ को राज्यसभा में भेजने के लिए अपने पार्टी नेताओं को मनाने की खूब कोशिश की और अब संजय सेठ ने भाजपा में जाने के लिए पार्टी और राज्यसभा को छोड़ दिया है। 

छवि सुधारने के लिए प्रयासरत ममता 
लोकसभा में भाजपा के हाथों 18 सीटें गंवाने के बाद अब ममता बनर्जी  प्रशांत किशोर की सलाह पर अपनी छवि बदलने का प्रयास कर रही हैं। लोकसभा चुनाव से पहले उनकी छवि एक जुझारू नेता और मजबूत महिला की थी लेकिन अब वह एक मृदुभाषी और विनम्र महिला के तौर पर अपनी छवि बना रही हैं। प्रशांत किशोर की सलाह पर उन्होंने अपने नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को कहा है कि वे अपना व्यवहार बदलें और कोई गैर जरूरी टिप्पणी न करें तथा विपक्षी पाॢटयों और कार्यकत्र्ताओं को न भड़काएं। इसके अलावा ममता ने अपने कार्यकत्र्ताओं को विरोधियों की रैलियों और कार्यक्रमों में दखलअंदाजी नहीं करने की बात भी कही है।

ममता बनर्जी ने पार्टी कार्यकत्र्ताओं को आम आदमी से सम्पर्क बनाकर उन्हें पार्टी द्वारा किए गए कार्यों बारे अवगत करवाने को कहा है। यह सब  आगामी निगम तथा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर किया जा रहा है। वह चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में विकास और रोजगार के लिए कार्पोरेट ढांचे का विकास करना चाहती हैं। उन्होंने पहले ही एक नैटवर्क बना लिया है जिसके तहत टी.एम.सी. के सभी जिला कार्यालय पार्टी मुख्यालय से जोड़ दिए गए हैं ताकि वह प्रदेश भर में सभी कार्यकत्र्ताओं से सम्पर्क में रह सकें। 

राजस्थान में बदला हुआ परिदृश्य
कर्नाटक में एच.डी. कुमारस्वामी की सरकार जाने के बाद अब इसी तरह की अफवाहें राजस्थान में भी फैल रही हैं क्योंकि यहां पर कांग्रेस सरकार आजाद और बसपा विधायकों के समर्थन से चल रही है। विधानसभा में 13 आजाद तथा 6 बसपा के विधायक हैं। अधिकतर आजाद विधायक पूर्व कांग्रेसी हैं जो अब अशोक गहलोत पर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि अशोक गहलोत ने उनसे अच्छा सम्पर्क बना कर रखा हुआ है तथा  ट्रांसफर के मामलों में आजाद उम्मीदवारों से चर्चा के बाद ही फैसला ले रहे हैं लेकिन इससे कांग्रेस विधायकों में नाराजगी है। 

कांग्रेसी विधायकों का कहना है कि मुख्यमंत्री आजाद विधायकों की सलाह से विकास कार्यों का आबंटन कर रहे हैं और उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। इस बीच मंत्री बनाए जाने की शर्त पर बसपा विधायक अपनी पार्टी बदलने को तैयार हैं। पिछली सरकारों में मंत्री रह चुके वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक अशोक गहलोत पर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने अथवा चेयरमैन इत्यादि का पद देने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस समय प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में दो गुट हैं। एक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुट और दूसरा उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट गुट। लेकिन वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि अब  सोनिया गांधी द्वारा पार्टी अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद राजस्थान में स्थितियां बदलेंगी और अशोक गहलोत मजबूत मुख्यमंत्री के तौर पर उभरेंगे।-राहिल नोरा चोपड़ा
 

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