भाजपा के लिए अभेद्य दुर्ग बना हुआ दक्षिण

Edited By ,Updated: 16 Mar, 2024 05:41 AM

south has become an impenetrable fort for bjp

दक्षिण भारत के 5 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में लोकसभा की 130 सीटें हैं। भाजपा के  ‘चार सौ पार’ जाने के लक्ष्य के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है।

दक्षिण भारत के 5 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में लोकसभा की 130 सीटें हैं। भाजपा के  ‘चार सौ पार’ जाने के लक्ष्य के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है। 2019 में भाजपा को दक्षिण से सिर्फ 29 सीटें मिली थीं। इनमें से भी 25 सीटें कर्नाटक से थीं। 2019 के चुनावों के समय कर्नाटक  में भाजपा की सरकार थी और अब कांग्रेस सत्ता में है। भाजपा को 4 सीटें तेलंगाना में मिली थीं, यहां भी अब कांग्रेस की सरकार है। दोनों राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा की जबरदस्त घेराबंदी कर रखी है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र में भाजपा को अभी खाता खोलना बाकी है।

भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती कर्नाटक और तेलंगाना में अपने 2019 के नतीजों को बरकरार रखना है। दक्षिणी राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भाजपा कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से कई नेताओं को तोड़कर अपने साथ ले आई है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा जैसे नाराज नेताओं को मना लिया है। फिर भी चुनौतियां कम नहीं लग रही हैं।

कर्नाटक का युद्ध : दक्षिण में भाजपा के सबसे बड़े गढ़ कर्नाटक में कांग्रेस ने खुद को पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा मजबूत कर लिया है। यहां कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि 2 बड़े नेताओं, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिव कुमार के बीच के मतभेदों पर लगाम लगाना है। दूसरी तरफ भाजपा स्थानीय नेतृत्व के संकट से बाहर नहीं आ पा रही है। कर्नाटक में भाजपा को मजबूत बनाने में सबसे बड़ी भूमिका पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की रही है।

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उनकी कार्यशैली से लंबे समय से नाराज है, लेकिन जब-जब येदियुरप्पा को किनारे करने की कोशिश की गई तब-तब भाजपा को नुकसान हुआ। विधानसभा चुनावों से पहले, येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर बसव राज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। बोम्मई को येदियुरप्पा की पसंद बताया जाता है। राज्य में तीसरे बड़े खिलाड़ी पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी हैं जो कांग्रेस की सहायता से मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कुमारस्वामी का राजनीतिक ग्राफ नीचे आ गया। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की 28 में से 25 सीटें मिलीं और एक-एक सीट कांग्रेस, जे.डी.एस. और निर्दलीय ने जीती थी। इस बार परिस्थितियां बदली हुई हैं।

तेलंगाना की चुनौती : तेलंगाना एक राजनीतिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। राज्य की स्थापना के बाद से राजनीति पर हावी भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.) का दबदबा खत्म हो रहा है और कांग्रेस राज्य की सत्ता में वापस आ चुकी है। बी.आर.एस. नेता राज शेखर रैड्डी का जादू काम नहीं कर रहा है। 2019 के चुनावों में राज्य की 17 में से भाजपा को 4, कांग्रेस को  3, बी.आर.एस. को 8 और उसके सहयोगी ओवैसी की पार्टी को 2 सीटें मिली थीं। गौर करने लायक बात यह है कि भाजपा को करीब 20 प्रतिशत, कांग्रेस को 30 प्रतिशत और बी.आर.एस. को 44 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेसी मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने राज्य के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण को बदलने की कोशिश की है। 

किधर जाएगा आन्ध्र  : आंध्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों का कोई खास वजूद नहीं है। राज्य में 2 मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां हैं। सत्तारूढ़ वाई.आर.एस. कांग्रेस और विपक्षी तेलुगु देशम। 2019 के लोकसभा चुनावों में वाई.एस.आर. कांग्रेस को 50 प्रतिशत वोट और राज्य की 25 सीटों में से 22 जबकि तेलुगु देशम को 40 प्रतिशत वोट और 3 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को एक प्रतिशत से कुछ अधिक और भाजपा को एक प्रतिशत से भी कम वोट मिला था।

इस बार भाजपा, तेलुगु देशम और अभिनेता पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के बीच समझौता हो गया है। भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। समझौते के मुताबिक तेलुगु देशम 17, भाजपा 6 और जन सेना 2 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री जगन मोहन रैड्डी की बहन शर्मिला रैड्डी को पार्टी अध्यक्ष बनाकर अपनी खोई हुई ताकत को फिर से बटोरने का दाव चला है। 

भाजपा का ईसाई दाव : केरल में पैर जमाने की कोशिश भाजपा लंबे समय से कर रही है। राज्य की आबादी में करीब 51 प्रतिशत हिंदू, 49 प्रतिशत ईसाई और मुसलमान हैं। मुसलमान आम तौर पर कांग्रेस और ईसाई वाम मोर्चा के साथ हैं। इसके चलते भाजपा को चुनाव में कोई कामयाबी अब तक नहीं मिली है। कुछ दिनों पहले भाजपा ने केरल में कांग्रेस के बड़े नेता ए.के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी को पार्टी में शामिल करके पार्टी के आधार को बढ़ाने की पहल शुरू की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईसाइयों के कुछ पादरियों से दिल्ली में मुलाकात की। 

तमिल गौरव : तमिलनाडु अब भी भाजपा के लिए अभेद्य दुर्ग बना हुआ है। उम्मीद के विपरीत भाजपा और ए.आई.डी.एम.के. पार्टी के बीच समझौता नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ मशहूर अभिनेता कमल हासन ने राज्य में सत्तारूढ़ डी.एम.के. और कांग्रेस गठबंधन से हाथ मिला लिया है। समझौते के मुताबिक कांग्रेस तमिलनाडु की 9 और पुड्डुचेरी की 1 सीट पर लड़ेगी। भाजपा पुड्डुचेरी से केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को चुनाव लड़ाना चाहती है। दक्षिण की 130 सीटों में से पिछले चुनाव में जीती हुई 29 सीटें भाजपा बचा ले तो बड़ी बात होगी। 400 पार जाने के भाजपा के अभियान में दक्षिण का साथ मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। -शैलेश कुमार

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