सत्ता में होते हुए भी किसानों के संघर्ष में कूद पड़ते थे ताऊ देवी लाल

Edited By ,Updated: 25 Sep, 2021 05:35 AM

tau devi lal used to jump in the struggle of farmers

चौधरी देवी लाल का जन्म हरियाणा के सिरसा जिले के छोटे से गांव तेजा खेड़ा में 25 सितंबर, 1914 को हुआ तो धरती की आत्मा किसान आत्मा के रूप में प्रकट हुई लेकिन अफसोस 6 अप्रैल, 2001 को यह किसान आत्मा धरती में विलीन हो गई, तभी से बेचारा किसान अपने हितों के...

चौधरी देवी लाल का जन्म हरियाणा के सिरसा जिले के छोटे से गांव तेजा खेड़ा में 25 सितंबर, 1914 को हुआ तो धरती की आत्मा किसान आत्मा के रूप में प्रकट हुई लेकिन अफसोस 6 अप्रैल, 2001 को यह किसान आत्मा धरती में विलीन हो गई, तभी से बेचारा किसान अपने हितों के लिए दर-दर की ठोकर खा रहा है। 

आज असहाय अन्नदाता की बेरुखी सर्वविदित है। विशेष तौर से नवम्बर 2020 से लगातार दमनकारी सरकारी कार्रवाई व बर्बरतापूर्वक पुलिस बल प्रयोग से शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे किसानों के हितों व आवाज का गला दबाया जा रहा है और 600 से अधिक किसान मौसम की मार व पुलिस बर्बरता के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। लाठी-गोली की मार से अपने जख्मों से कराहता हुआ अन्नदाता बार-बार ताऊ देवीलाल को पुकार रहा है क्योंकि उसके दर्द व आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है, जबकि ताऊ देवीलाल सत्ता में होते हुए भी किसान के दुख में शरीक होने के लिए संघर्ष में कूद पड़ते थे। 

चौधरी देवीलाल को जनता सम्मानपूर्वक ताऊ के नाम से संबोधित करती है। राजनीति में वह छोटे से प्रदेश हरियाणा के मुख्यमंत्री से भारत के उप प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। गांधीवादी, साम्यवादी तथा क्रांतिकारी आंदोलनों से प्रभावित होकर चौधरी देवीलाल बाल्यकाल में ही संघर्ष की राह पर चल पड़े, जो आगे चलकर उनके संघर्षशील राजनीतिक सफर का मार्गदर्शक बनी। दिसम्बर 1929 में देवीलाल ने कांग्रेस पार्टी के लाहौर अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया। जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक दांडी यात्रा प्रारंभ हुई और नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी गई तो देवीलाल को बगावत के कारण 8 अक्तूबर, 1930 को सैंट्रल जेल हिसार में बंद किया गया तथा 4 जनवरी, 1931 को बोरस्टम जेल, लाहौर भेजा गया तथा वह लगभग 10 महीने रहे। युवा देवीलाल की यह प्रथम जेल यात्रा उनके राजनीतिक जीवन का मील का पत्थर एवं प्रथम महान कदम था। 

सन् 1946-47 में भारत में सांप्रदायिकता की भावना एवं सांप्रदायिक हिंसा अपनी चरम सीमा पर थी। ऐसी स्थिति में देवीलाल राष्ट्रीय नेतृत्व एवं भारत के सर्वश्रेष्ठ एवं महान राष्ट्रीय नेताओं से प्रेरणा लेकर एक चट्टान की तरह अडिग एवं सुदृढ़ होकर पीड़ित लोगों की सेवा में लगे रहे। जमींदारी व्यवस्था के विरुद्ध अपने गांव चौटाला में मुजारा आंदोलन प्रारंभ किया। देवीलाल को 500 कार्यकत्र्ताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। जनता के दबाव के कारण पंजाब के मुख्यमंत्री गोपीचंद भार्गव की सरकार को मुजारा अधिनियम में संशोधन करना पड़ा तथा देवीलाल को सितम्बर 1950 में जेल से रिहा करना पड़ा। पंजाब विधानसभा में मुजारों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष करके उन्होंने 1953 में मुजारा अधिनियम बनवाने में सफलता प्राप्त की।

ताऊ देवीलाल ने जब यह अनुभव किया कि ङ्क्षहदी भाषी क्षेत्र हरियाणा आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, बिजली, औद्योगिक, तकनीकी, कृषि सिंचाई, सड़क, परिवहन, स्वास्थ्य, पशुपालन इत्यादि क्षेत्रों में पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब के मुकाबले सरकारों की भेदभाव पूर्ण एवं पक्षपातपूर्ण नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों के कारण पिछड़ेपन का शिकार है तो उन्होंने पंजाब विधानसभा के अंदर एवं बाहर इन अन्यायपूर्ण एवं पक्षपातपूर्ण नीतियों का विरोध ही नहीं किया, अपितु 1962 के उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट वितरण में भेदभावपूर्ण एवं अन्यायपूर्ण नीति के कारण कांग्रेस पार्टी को छोड़कर हरियाणा लोक समिति का निर्माण किया और 1962 के निर्वाचन में फतेहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से विजय प्राप्त की तथा विधायक बने। तत्पश्चात् हरियाणा संघर्ष समिति के हरियाणा राज्य की स्थापना के लिए आंदोलन में देवीलाल  की  अग्रणी भूमिका रही। 

आपातकाल के दौरान हरियाणा के इस महान नेता को 19 मास तक नजरबंद रखा गया, जिसके बाद सन् 1977 में चौ. साहब फिर जनता के बीच आए और सारे भारत का भ्रमण करते हुए विभिन्न राजनीतिक पाॢटयों को एक मंच पर इक_ा करके तत्कालीन केंद्रीय सरकार की किसान व मजदूर विरोधी नीतियों का पर्दाफाश करके केंद्रीय स्तर पर जनता पार्टी की सरकार का गठन करवाने में कामयाब हुए। एक सफल एवं सुयोग्य मुख्यमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री के रूप में देवीलाल ने जनता विशेष रूप से किसानों, श्रमिकों, दलितों तथा उपेक्षितों के लिए असंख्य जनहित योजनाओं का क्रियान्वयन किया। उनका मानना था कि गांवों के विकास के बिना राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता क्योंकि शहरों की समृद्धि का मार्ग गांवों से होकर गुजरता है। चौ. देवीलाल का राजनीतिक जीवन एक खुली किताब की तरह पारदर्शी रहा। उन्हें जोड़-तोड़ की राजनीति से सख्त नफरत थी। उनका मानना था कि राजनीति में भ्रष्टाचार एक विष की तरह है जो  लोकतंत्र पर प्रहार है। अपनी ईमानदारी एवं निर्भीकता के कारण वह बड़े से बड़े राजनेताओं का विरोध करने से भी नहीं हिचकिचाए। 

चौ. देवीलाल एक महान त्यागी व तपस्वी व्यक्तित्व के धनी थे। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि एक प्रभावशाली, कुशल राजनीतिज्ञ तथा सफल नेतृत्व के धनी होते हुए भी उन्होंने दो बार अपने सिर से प्रधानमंत्री का ताज उतार दिया और स्वयं ताज को विश्वनाथ प्रताप सिंह व चंद्रशेखर के सिर पर रख दिया। वह हमेशा कहते थे मैं कभी भी सत्ता के पीछे नहीं भागा क्योंकि मैं हमेशा ऐसे लोगों के साथ रहा हूं जो सत्ता से बाहर रहकर भी अपनी न्यायोचित मांगों के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्होंने सतलुज-यमुना लिंक नहर के मुद्दे पर 14 अगस्त, 1985 को 7 अन्य विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और 1987 में पुन: चुने गए। चौधरी देवीलाल का राजनीतिक संघर्ष  सर्वसाधारण जनता के हितों की सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए था। उनकी इस बात में गहरी आस्था थी कि लोक राज लोक लाज से चलता है और वे अपने मूल्यों, आदर्शों तथा सिद्धांतों पर बाल्यावस्था से जीवन के अंतिम क्षणों तक अडिग रहे।-डा. महेन्द्र सिंह मलिक(पूर्व पुलिस महानिदेशक, हरियाणा)

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