धर्म में सियासत की ‘घुसपैठ’ से पंथ की बुनियाद खिसकी

Edited By ,Updated: 05 Aug, 2022 04:18 AM

the  infiltration  of politics in religion eroded the foundation of the cult

नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने दिल्ली के चांदनी चौक में शहादत देकर मुगल बादशाह औरंगजेब की धर्म परिवर्तन की मुहिम को रोका था। पर आजकल खुद को श्री गुरु तेग बहादुर साहिब का

नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने दिल्ली के चांदनी चौक में शहादत देकर मुगल बादशाह औरंगजेब की धर्म परिवर्तन की मुहिम को रोका था। पर आजकल खुद को श्री गुरु तेग बहादुर साहिब का पैरोकार बताने वाले सिख अपने ही धर्म के लोगों को नहीं बचा पा रहे। पंजाब में लगातार बढ़ रहे चर्चों के कारण ईसाई धर्म का प्रचार भी तेजी से हो रहा है। ईसाई मिशनरियों द्वारा आयोजित सभाओं में सिखों की काफी बड़ी संख्या देखी जा रही है, जिसे लेकर अब दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी सक्रिय हो गई है। बुधवार को दिल्ली कमेटी ने अमृतसर में धर्म जागरूकता केंद्र की स्थापना की। 

दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका के मुताबिक सिखों का बड़े स्तर पर धर्मांतरण ङ्क्षचता का विषय है। लिहाजा, धर्मांतरण रोकने के लिए दिल्ली कमेटी पंजाब की प्रमुख धार्मिक शख्सियतों के साथ मिलकर चर्चा करेगी,  ताकि इस बीमारी की जड़ को ढूंढा जा सके। सिखों की सबसे बड़ी संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) सिखों का धर्मांतरण रोकने में नाकामयाब रही है। 

पाकिस्तानी सीमा के साथ लगते पंजाब के माझा इलाके के जिलों में अमृतसर, गुरदासपुर, बटाला, तरनतारन आदि में धर्मांतरण बहुत तेजी से हुआ है। हैरानी की बात यह है पंजाब के जिन क्षेत्रों में सिखों का ज्यादा धर्मांतरण हो रहा है, उसी धरती पर गुरुओं का प्रकाश हुआ था। बावजूद इसके कमेटियों एवं संस्थाओं ने अपनी ही जमीन देखने की कोशिश नहीं की। 

धर्मांतरण की बड़ी वजह ईसाई संस्थाओं द्वारा सिखों को दी जा रही सुविधाएं बताई जा रही हैं। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से लेकर लड़कियों के शादी-विवाह तक में मदद की बात सामने आ रही है। इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि धर्मांतरण के मामले में एक-दूसरे पर आरोप लगा रही एस.जी.पी.सी. एवं दिल्ली कमेटी आज इतनी असहाय स्थिति में क्यों खड़ी है? पंजाब को गुरुओं की नगरी कहा जाता है। यही कारण है कि पंजाब में स्थित अलग-अलग सिख संगठन, टकसाल, निहंग संगठन, डेरे और प्रचारक बड़ी संख्या में हैं। बावजूद इसके सिख धर्मांतरण क्यों कर रहे हैं, यह बड़ा गंभीर विषय है। 

धर्मांतरण किए हुए लोगों की घर वापसी कैसे होगी, कोई भी संगठन इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं। पंजाब के 12500 गांवों तथा शहरों में हर जगह प्रचारक भेजना किसी भी कमेटी एवं संस्था के वश में नहीं है। फिर भी धर्मांतरण की आड़ में सियासत की जा रही है। संविधान के अनुसार नागरिक कोई भी धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र है, इसलिए कानूनी तौर पर धर्म परिवर्तन को चुनौती नहीं दी जा सकती। इससे सामाजिक और आर्थिक तरीके से ही निपटा जा सकता है। इसके लिए सभी धार्मिक संगठनों, कमेटियों को एकजुट होना होगा। 

एस.जी.पी.सी. के गढ़ में दरक रही पंथ की जमीन: अरबों रुपए के बजट वाली एस.जी.पी.सी. दिल्ली में आकर धर्म प्रचार कर रही है, लेकिन अपने खुद के गढ़ (पंजाब) में हो रहे धर्मांतरण को रोकने में असफल है। नतीजा यह है कि धीरे-धीरे गांव के गांव कनवर्ट होते जा रहे हैं। सिख चिंतकों का मानना है कि धर्मांतरण की आड़ में गरीब, दलित, अनपढ़ और असहाय लोग फंस जाते हैं। ईसाई पादरियों द्वारा पंजाब में बड़े स्तर पर गंभीर रोगों के इलाज का दावा करती हुई वीडियो अक्सर सोशल मीडिया पर नजर आती है, जो लाचार इंसान को चर्च की तरफ मोड़ती है। सिख बुद्धिजीवियों का यह भी मत है कि पंजाब के जो ईसाई पादरी हैं, वे सम्मोहन की कला में दक्ष हैं और उसी वजह से ही लोग सम्मोहित होकर धीरे-धीरे अपने धर्म को छोड़ रहे हैं। 

गांवों में बढ़ी सामाजिक खाई, डेरों की तरफ किया रुख : सिख बुद्धिजीवियों के अनुसार सिखों का जुड़ाव पहले गुरुद्वारों से था। गांवों में अभी भी जाति के आधार पर गुरुद्वारे और श्मशान घाट बने हुए हैं। छोटी जातियों के लोगों को ऊंची जाति के गुरुद्वारों में जाना मना है। जिस वजह से सामाजिक खाई बढ़ती चली गई। इसी का फायदा डेरेदारों ने उठाया। नतीजन, समाज द्वारा अछूत समझे गए लोगों ने बड़े स्तर पर डेरों का रुख कर लिया। लगभग 2 दशकों तक डेरों ने अपने साथ लोगों को बखूबी जोड़ा। लेकिन अब वहां भी बदलाव आ गया है।

यही कारण है कि डेरों से जुड़े लोग अब चर्चों की ओर जाने लगे हैं। उनको वहां पर डेरों एवं गुरुद्वारों की तरह अछूत नहीं माना जाता। इसलिए वे अपने लिए वहां जगह बनाने में कामयाब हो रहे हैं। हालांकि पवित्र गुरबाणी किसी को अछूत नहीं मानती और किसी भी गुरुद्वारे में किसी भी धर्म या जाति के आधार पर प्रवेश वॢजत नहीं है। इसलिए इस बीमारी का हल करने के लिए जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब को गांवों में होते सामाजिक भेदभाव को रोकने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। 

ईसाईकरण रोकने के लिए स्थापित हुई थी सिंह सभा लहर : 1 अक्तूबर, 1873 को सिखों ने सिंह सभा लहर की स्थापना की थी। इसका मुख्य मकसद पंजाब में अंग्रेजों के आने के बाद बढ़ते ईसाईकरण को रोकना था। उस काम में सिखों को बड़ी सफलता भी मिली थी और सिख अपने गुरुद्वारों को सिंह सभा के तौर पर स्थापित करके ईसाई करण का डटकर मुकाबला कर पाए थे। 

शहरों में अभी भी सिंह सभा गुरुद्वारे चल रहे हैं, जहां पर कोई सामाजिक भेदभाव नहीं है। इसलिए जरूरत है कि गांवों में भी सिंह सभा गुरुद्वारों की स्थापना हो, ताकि सामाजिक भेदभाव से होने वाला धर्म परिवर्तन रुक सके। जानकार कहते हैं कि सामाजिक भेदभाव से उपजी फूट का फायदा पहले डेरेदारों ने उठाया, अब चर्च उठा रहा है। अगर ऐसा कहें कि लगभग डेढ़ सौ साल बाद फिर वहीं पहुंच गए, जहां से सिंह सभा लहर शुरू हुई थी, तो गलत नहीं होगा।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 

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