Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Nov, 2017 01:28 AM
आपको यह मानना ही पड़ेगा कि बहुत लम्बे समय तक देश को नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री नसीब नहीं हुआ। उनमें स्थितियों को सही करने की ऐसी एकाग्रचित दृढ़ता है कि दो महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव भी उन्हें अपने रास्ते से विचलित नहीं कर पाए। गत...
आपको यह मानना ही पड़ेगा कि बहुत लम्बे समय तक देश को नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री नसीब नहीं हुआ। उनमें स्थितियों को सही करने की ऐसी एकाग्रचित दृढ़ता है कि दो महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव भी उन्हें अपने रास्ते से विचलित नहीं कर पाए।
गत दिनों जब उन्हें यह कहा गया कि जब तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों के लिए मतदान नहीं हो जाता, कम से कम तब तक जी.एस.टी. निष्पादन की गति कुछ धीमी रखी जाए तो मोदी ने प्रश्रकत्र्ता को यह कहकर लाजवाब कर दिया कि स्वतंत्रता के बाद सबसे प्रगतिवादी टैक्स सुधार के मामले में पीछे मुडऩे का सवाल ही पैदा नहीं होता। उनके स्थान पर कोई भी अन्य नेता होता तो उसने मतदाताओं को खुश करने के लिए पता नहीं क्या-क्या सब्जबाग दिखा दिए होते।
यहां तक कि जब ऐसा लगता था कि जी.एस.टी. के विरुद्ध उठने वाली आवाजों का लगातार बढ़ता जा रहा शोर भाजपा के लिए मौत की घंटी सिद्ध हो सकता है तो भी अन्य लोग बेशक विचलित हुए हों लेकिन मोदी पर इसका कोई असर नहीं। वह जी.एस.टी. के साथ-साथ दोनों ही राज्यों में चुनावों के खुशगवार नतीजों के प्रति आश्वस्त बने हुए हैं। जो लोग सचमुच में नेता होते हैं वे ऐसी ही मिट्टी के बने हुए होते हैं। यह एक तथ्य है कि जी.एस.टी. ने सत्तारूढ़ पार्टी के अपने मुख्य जनाधार को भी काफी सारी तकलीफें पहुंचाई हैं। इस पीढ़ा का केवल कुछ ही हिस्सा ऐसा है जो इस कानून को जल्दबाजी में लागू करने का नतीजा है। इसी जल्दबाजी के कारण इसमें कई ऐसी त्रुटियां रह गईं जिनसे बचा जा सकता था और जिन्हें अब लगभग साप्ताहिक आधार पर सही किया जा रहा है।
लेकिन व्यापारी वर्गों द्वारा मचाए जा रहे भयावह शोर का मुख्य कारण यह तथ्य है कि कांग्रेस के कथित ‘समाजवादी’ छत्र के नीचे उन्होंने लम्बे समय तक और प्रत्यक्षत: अनंतकाल तक चलने वाले ‘टैक्स अवकाश’ का मजा लिया था। सत्ता में जमे रहने की इच्छा रखने वाला कोई भी राजनीतिज्ञ सामान्यत: अपने मुख्य जनाधार को खुद से टूटने नहीं देना चाहेगा लेकिन मोदी कोई साधारण राजनीतिज्ञ नहीं। वह बहुत मजबूत मिट्टी के बने हुए हैं।
हालांकि उनके करीबी समर्थकों में से एक बहुत मुंहफट होकर यह दलील दे रहे हैं कि व्यापारी वर्ग ने यदि उनसे दूर हटने का घोर अप्रत्याशित कदम उठाया है तो भाजपा के खेमे में आने वाले गरीब और वंचित वर्गों ने इस क्षति की कई गुणा अधिक भरपाई कर दी है। इस दलील में सचमुच ही दम है। हाल ही में भाजपा के घोर विरोधी एक दैनिक में प्रकाशित रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस सरकार द्वारा जिस प्रकार बैंकों के बड़े-बड़े डिफाल्टरों का लगातार और बिना कोई लिहाज किए पीछा किया जा रहा है वह स्वतंत्र भारत में अभूतपूर्व है। नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह के समय तक पूंजीपति वर्ग कथित समाजवादी नीतियों की छत्रछाया में बहुत मजे लूटता रहा है।
जुंडलीदार पूंजीपति सरकारी पैसे का इस तरह दुरुपयोग करते रहे हैं जैसे यह उनके बाप-दादा की कमाई हो और इस तरह वे फलते-फूलते रहे हैं। ऐसे जुंडलीदार पूंजीपति बेशक देशभर में हजारों-लाखों की संख्या में बिखरे पड़े हैं लेकिन इसका एक सटीक उदाहरण प्रस्तुत करना बहुत प्रासंगिक होगा-किसी जमाने में नैशनल टैक्सटाइल कार्पोरेशन के अंतर्गत लगभग 200 कपड़ा मिलें थीं। इनकीबहुमूल्य सम्पत्तियों को हजम करने और इन पर भारी ऋण लाद देने के बाद मालिकों ने ये मिलें लावारिस छोड़ दी थीं। ऐसी हालत में लाखों कर्मचारियों के नाम पर भारत सरकार ने जिस तरह इन मिलों को बचाने की नौटंकी की वैसा काम इन लुटेरे पूंजीपतियों के साथ सांठगांठ के बिना नहीं हो सकता।
घाटे में चल रही इन मिलों पर करोड़ों रुपए बर्बाद करने के बाद खुद को ‘समाजवादी’ कहने वाले इन सत्ताधारियों ने समय पाकर इन मिलों के दरवाजे बंद होने दिए लेकिन इससे पहले वे सांठगांठ की एक नई करतूत करने से बाज नहीं आए-उन्होंने मुम्बई और अन्य शहरों की इन मिलों की जमीनें अपने जुंडलीदार पूंजीपतियों को कौडिय़ों के भाव बेच दीं। वहीं पर आज उन लोगों ने आलीशान शापिंग माल और बहुमंजिला आवासीय भवन बनाए हुए हैं। जुंडलीदार पूंजीपतियों का यह उदाहरण मनमोहन सिंह के दौर से पहले का है। मनमोहन दौर में इसमें कुछ नई लीपापोती की गई और एक बार फिर कौडिय़ों के दाम पर 2-जी तथा कोयला खानों के लाइसैंस अपने जुंडलीदारों को बांट दिए गए।
यह एक सीधा सा नुक्ता है कि आज भी यदि विचारधारा से प्रेरित कोई असली वामपंथी होंगे तो उन्हें मोदी में अपने किसी अंतरंग दोस्त की छवि दिखाई देगी, क्योंकि मोदी ने ही भारतीय कारोबार के दिग्गजों को मजबूर किया है कि या तो वे टैक्स और ऋणों की अदायगी करें, नहीं तो नतीजे भुगतने को तैयार रहें। यही कारण है कि एक ओर जहां सशक्त रुइया परिवार अपनी पहचान बन चुके स्टील प्लांटों और रिफाइनरों से हाथ धो बैठा है, वहीं एक अन्य अरबपति गौड़ परिवार सीमैंट तथा विद्युत क्षेत्र में अपनी सम्पत्तियां बेच कर दिवालिया होने से बचने की भागदौड़ कर रहा है। यू.पी.ए. मंत्रियों की बदौलत जनता और सरकार के पैसे पर फलने-फूलने वाले यूनिटैक और अन्य संदिग्ध डिफाल्टर अब जेल की काल कोठरियों में समय बिता रहे हैं। यू.पी.ए. मंत्रियों के आदेश पर ही बैंकों ने कभी इन जालसाजों के लिए अपनी तिजौरियां खोली थीं और उन्होंने इस लूट में से अपने ‘परोपकारियों’ को शानदार कमीशन दिया था। क्या यह जुंडलीदार पूंजीवाद की चरम सीमा नहीं है।
यह सचमुच में कानून-कायदों पर आधारित शासन है। जो करदाता सचमुच में प्रणालीगत मुसीबतों का सामना कर रहे हैं उनके लिए मोदी जी.एस.टी. में किसी भी तरह का बदलाव करने को तैयार हैं। लेकिन वे उन गरीब एवं अमीर भारतीयों का पैसा किसी भी तरह लुटाने को तैयार नहीं जो सरकारी खजाने में अपने हिस्से का टैक्स अदा करते हैं। कथित समाजवादी शासन के अनेक दशकों ने कमाई करने वाले भारतीयों की बहुत बड़ी संख्या में चोरी करने की आदत पैदा कर दी है। मोदी इस घटिया आदत को बदलने पर तुले हुए हैं और यह अनुरोध करते हैं कि हर किसी को ईमानदारी से टैक्स अदा करना चाहिए। यह सचमुच ही बहुत बड़ी और कठिन परियोजना है। इस काम को वही लोग कर सकते हैं जिनके अंदर देश का कायाकल्प करने की दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ-साथ दिलेरी और इच्छा शक्ति हो।-वरिन्द्र कपूर