2024 की चुनावी दिशा अभी से दिखने लगी

Edited By ,Updated: 04 Jan, 2024 05:45 AM

the election direction of 2024 is already visible

भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती और ताकत राजनीति की घुमावदार सीढिय़ां और ऊबड़-खाबड़ रास्ते हैं। इन्हीं पर चलकर यह दुनिया का सबसे मजबूत, प्रभावी, इकलौता और अनूठा उदाहरण बना।

भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती और ताकत राजनीति की घुमावदार सीढिय़ां और ऊबड़-खाबड़ रास्ते हैं। इन्हीं पर चलकर यह दुनिया का सबसे मजबूत, प्रभावी, इकलौता और अनूठा उदाहरण बना। निश्चित रूप से अंग्रेजों की गुलामी और मुगल शासकों का दौर एक बुरा वक्त था। लेकिन अब सब कुछ काफी पीछे छूट चुका है। 

मजबूत होते लोकतंत्र ने इतिहास में इंदिरा गांधी का 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक 21 महीने तक आपातकाल का दौर भी देखा। 1977 में एकाएक हुआ मध्यावधि चुनाव देखा और लोकतंत्र की ताकत ने कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त हार दिखाई। वह दौर भी दिखा जब लगा कि पार्टियां नहीं जनता चुनाव लड़ रही हो। जनता पार्टी को 298 सीटों का स्पष्ट बहुमत मिला। कांग्रेस गठबंधन 153 सीटों पर सिमट गया और केंद्र में गठबंधन सरकारों की शुरूआत हुई। 

विपक्ष को जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व मिला, लेकिन प्रधानमंत्री पद के दो दावेदार चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम उभरे। जयप्रकाश ने किंग मेकर की भूमिका निभाई और मोरारजी देसाई 24 मार्च, 1977 को पहली गैर-कांग्रेसी गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री बने, लेकिन जनता पार्टी में गुटबाजी शुरू हो गई। मौका देख इंदिरा गांधी ने वाई.बी. चव्हाण के जरिए मोरारजी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखवाया और सरकार गिर गई। अ

ब इंदिरा के समर्थन से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने जरूर लेकिन दबाव में काम नहीं कर सके और समर्थन वापसी से 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक चली सरकार गिर गई। आवाम को वोट की ताकत समझ आ गई। अगले चुनाव में इंदिरा की प्रचंड बहुमत से 3 साल में ही वापसी हुई। 1984 के आम.चुनाव में उनकी हत्या के बाद सहानुभूति लहर उपजी। कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज की। राजनीति से दूरी रखने वाले राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। 1989 के आम चुनाव तक उनकी सरकार तमाम आरोपों और संकटों से घिर गई जिससे विश्वसनीयता और लोकप्रियता घटने लगी।

1989 में कांग्रेस 197 सीटें जीतकर भी सत्ता से दूर रही तो भाजपा ने 2 से 85 सीटों की बढ़ौतरी की। सत्ता का संभावित दावेदार जनता दल 144 सीटें जीत सका जिसने वी.पी. सिंह के नाम पर वोट मांगे थे। चुनावों से पहले प्रधानमंत्री के चेहरे का औपचारिक ऐलान नहीं होने से चंद्रशेखर ने भी दावेदारी जता दी। इससे ऊहापोह की स्थिति बनी। यहां देवी लाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई व चन्द्रशेखर को मनाया।

2 दिसम्बर, 1989 को जद सांसदों की बैठक में देवी लाल का नाम घोषित हुआ तो खामोशी छा गई लेकिन देवीलाल ने वी.पी. सिंह का नाम प्रस्तावित कर दिया। चन्द्रशेखर धोखा बताते हुए नाराज होकर चले गए। यहीं जनता दल सरकार और पार्टी में दरार पड़ गई। वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने और देवी लाल उप-प्रधानमंत्री। वी.पी. सिंह राजनीति में दो तरीके से देखे जाने लगे। भाजपा के बाहरी समर्थन से सरकार चलाने के बावजूद सांप्रदायिकता से समझौता नहीं करने, मंडल कमीशन के जवाब में लाल कृष्ण अडवानी की रथयात्रा को उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा बिहार में रोकना और गिरफ्तार करने से नाराज भाजपा ने केंद्र से समर्थन खींच लिया। 

10 नवम्बर, 1990 को वी.पी. सिंह सरकार गिर गई और कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। 4 महीने में समर्थन वापसी से चंद्रशेखर सरकार भी गिर गई। आखिर 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए। प्रचार के दौरान राजीव गांधी की हत्या से 15 दिन चुनाव टले फिर 12 जून और 15 जून के बीच मतदान हुआ। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 232 सीटें जीतीं। भाजपा को 120 सीटें मिलीं और जनता दल 59 पर सिमट गया। 21 जून, 1991 को कांग्रेस के पी.वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने जो नेहरू-गांधी परिवार के न होकर भी कार्यकाल पूरा कर पाए। इसके बाद नेहरू-गांधी परिवार सत्ता का केंद्र जरूर बनता रहा लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ सका। 

1996 में अस्थिर सरकारों का एक दौर आया। न तो कांग्रेस और न ही भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला। अटल जी प्रधानमंत्री बने, 13 दिन में सरकार गिर गई। इसके बाद 13 पार्टियों ने संयुक्त मोर्चा बनाया जिसकी सरकार बनी और एच.डी. देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने जिनकी सरकार 1 जून, 1996 से 21 अप्रैल, 1997 तक ही चल पाई। 21 अप्रैल, 1997 से लेकर 19 मार्च, 1998 तक इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। दोनों ही सरकारें कांग्रेस के समर्थन देकर खींचने से गिरीं। 

1999 में लोकसभा चुनाव हुए। भाजपा गठबंधन एन.डी.ए. को पूर्ण बहुमत मिला। अटल जी फिर प्रधानमंत्री बने और कार्यकाल पूरा किया। 2004 के आम चुनाव में ‘शाइनिंग इंडिया’ और ‘फीलगुड’ के नारों के बावजदू भाजपा पिछड़ गई। कांग्रेस ने 145 सीटें जीतीं और यू.पी.ए. गठबंधन 222 सीटें हासिल कर सत्ता में आया। सोनिया गांधी ने नेता चुने जाने के बावजूद मनमोहन सिंह को आगे किया जो 22 मई, 2004 को प्रधानमंत्री बने। 2008 में वामदलों के समर्थन वापसी के बावजूद सपा के सहयोग से सरकार नहीं गिरी। 

2009 के लोकसभा चुनाव में फिर से 262 सीटें जीतकर मनमोहन सिंह ही यू.पी.ए. की सरकार में प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 2014 के आम.चुनाव में भाजपा और एन.डी.ए. गठबंधन ने करिश्माई नेता नरेन्द्र मोदी को आगे किया और नरम हिन्दुत्व पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस-यू.पी.ए. ने सोनिया-राहुल को आगे किया। यहीं राजनीति ने यू टर्न लिया। अकेले मोदी की लोकप्रियता चरम पर जा पहुंची। भाजपा ने 282 तो पूरे एन.डी.ए. ने 337 सीटें जीतीं। वहीं यू.पी.ए. 59 (जिसमें कांग्रेस 44) सीटों पर सिमट गया, 2019 में भाजपा-गठबंधन और आगे निकल गया। भाजपा 303 सीटों के साथ 272 के बहुमत के आंकड़े से आगे जा पहुंची और गठबंधन ने 352 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं यू.पी.ए. को 91 सीटें मिलीं जिसमें कांग्रेस की 52 सीटें आईं। 

आज भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। पार्टी की 12 राज्यों में सरकारें हैं। वहीं कांग्रेस ने चंदा के बहाने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले क्राऊडफंडिंग से ‘डोनेट फॉर देश’ के जरिए जनता से कनैक्ट होने की जुगत की। इससे 1977 का वह नजारा ताजा हो गया जिसमें चंद्रशेखर की चुनावी सभा में एक चादर फैलाई जाती और 10-15 लाख रुपए इकट्ठा हो जाते। कांग्रेस की कोशिश तो अच्छी है लेकिन फायदा कितना होगा कहना मुश्किल है। भले लोकतंत्र को खतरा और आखिरी चुनाव जैसे शब्द फिर सुनाई दे रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि लोकतंत्र न तब कमजोर था और न अब होगा। काश विपक्ष यानी ‘इंडिया’ गठबंधन एकजुट हो सीट शेयरिंग कर पाता तो कुछ चुनौती भी दिखती वरना 2024 के चुनाव की दिशा अभी से नंगी आंखों से साफ-साफ दिख रही है।-ऋतुपर्ण दवे 
    

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!