श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत इतिहास में अतुलनीय

Edited By ,Updated: 24 Nov, 2021 04:32 AM

the martyrdom of shri guru tegh bahadur ji is incomparable in history

श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत इतिहास में अतुलनीय है। वह एक महान विचारक, योद्धा, पथिक व आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने धर्म, मातृभूमि और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। इसलिए उन्हें ‘हिंद दी चादर’ कहा...

श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत इतिहास में अतुलनीय है। वह एक महान विचारक, योद्धा, पथिक व आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने धर्म, मातृभूमि और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। इसलिए उन्हें ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है। श्री गुरु तेग बहादुर ने श्री गुरु नानक देव जी व सभी गुरुओं के प्रकाश और दिव्यता को आगे बढ़ाते हुए गुरु परम्परा के अनुरूप ही धर्म व देश की रक्षा के लिए आवाज बुलंद की और बलिदान दिया। देश आज आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 17वीं शताब्दी में ही धर्म की आजादी के लिए शहादत देकर प्रत्येक देशवासी के दिलो-दिमाग में निडरता से आजाद जीवन जीने का बीज बो दिया था। 

महान संत शिरोमणि, योद्धा व नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 21 अप्रैल 1621 में पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। इन्होंने चकनानकी नामक स्थान स्थापित किया, जिसका बाद में 10वें गुरु श्री गुरु गोङ्क्षबद जी ने आनंदपुर साहिब के नाम से विस्तार किया। श्री गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से श्री गुरु तेग बहादुर जी के बैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह आध्यात्मिक चिंतन की ओर मुड़ गए। उन्होंने 20 वर्ष तक बाबा बकाला साहिब में साधना की। 

तत्कालीन शासक औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर हर रोज गीता श्लोक पढ़ता और औरंगजेब को उसका अर्थ सुनाता था। पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार पड़ गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए पंडित ने अपने बेटे को भेज दिया परन्तु उसे यह बताना भूल गया कि उसे किन-किन श्लोकों का अर्थ राजा के सामने नहीं करना। 

पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। औरंगजेब को किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा व सच्ची शिक्षाएं सहन नहीं थीं। औरंगजेब ने कश्मीर के गवर्नर इफ्तिकार खां (जालिम खां) को कहा कि सभी पंडितों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा जाए। गवर्नर ने कश्मीरी पंडितों को इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए कहा, नहीं तो सभी को मौत के घाट उतारा जाएगा। इसके बाद सभी पंडित श्री गुरु तेग बहादुर के पास गए और सारा वृत्तांत सुनाया। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर जालिम खां से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे। यह बात औरंगजेब तक पहुंची तो वह क्रोधित हो गया और उसने गुरु तेग बहादुर को बंदी बनाने के आदेश दे दिए। 

1665 में गुरु तेग बहादुर व उनके तीन शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाला जी तथा भाई मतिदास को बंदी बनाया गया। जेल में भी काजी ने श्री गुरु तेग बहादुर जी को प्रस्ताव दिया कि आप इस्लाम स्वीकार करके ही अपनी जान बचा सकते हैं, नहीं तो आपका सिर कलम कर दिया जाएगा। ध्यानरत गुरु जी ने सिर हिलाकर इस्लाम स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। जब यह खबर औरंगजेब तक पहुंची तो वह आग बबूला हो गया। श्री गुरु तेग बहादुर जी को डरा कर इस्लाम स्वीकार करवाने के लिए उनके तीनों शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाला जी तथा भाई सती दास को उनकी आंखों के सामने अलग-अलग तरीके से मार दिया गया और कहा कि उनका भी यही हाल होने वाला है लेकिन गुरु तेग बहादुर अपने वचन से टस से मस नहीं हुए। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक-
श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:॥ 

से प्रेरणा लेकर धर्म की रक्षा के लिए कहा कि मैं सिख हूं और सिख ही रहूंगा। इसके बाद 1675 में आततायी शासक औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में श्री गुरु तेग बहादुर जी का शीश काट दिया। आज उसी स्थान पर गुरुद्वारा सीसगंज है जो ङ्क्षहदू-सिख भाईचारे का जीता-जागता प्रमाण है। शीश काटने के बाद उनका सिर भाई जैता अपने घर ले आए। तब भाई जैता की पत्नी ने गुरु जी का शीश उनके बेटे गोङ्क्षबद राय को सौंपने के लिए कहा। भाई जैता ने श्री कीरतपुर साहिब जी पहुंच कर गोङ्क्षबद राय को श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शीश समॢपत किया। इसके बाद आनंदपुर साहिब में दाह संस्कार किया गया। संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान दे दी परंतु सत्य-अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा। नवम पातशाही श्री गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के बाद उनके सुपुत्र श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी दशम पातशाही के गुरु साहिब बने, जो एक महान योद्धा, कवि तथा दार्शनिक थे। 

गुरु तेग बहादुर जी ने कहा था कि धर्म एक मजहब नहीं, धर्म एक कत्र्तव्य है। आदर्श जीवन का रास्ता है। आज हमारे लिए गुरु जी की शिक्षाएं, उनका त्याग व बलिदान एक धरोहर है, जिसे बचाना व सहेज कर रखना ही गुरु जी के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी।  आज जरूरत है कि युवा पीढ़ी युग-पुरुष श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन चरित्र व बलिदान से प्रेरणा लेकर मानवीय एवं नैतिक मूल्यों के साथ जीवन में संस्कारों को ग्रहण कर आगे बढ़े, जिससे देश फिर से विश्व गुरु कहलाएगा।-बंडारू दत्तात्रेय(माननीय राज्यपाल, हरियाणा)

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