हमारे विश्वास की ‘जड़’ को तीस साल से लगा है ‘कीड़ा’

Edited By ,Updated: 27 Aug, 2020 04:15 AM

the root of our faith has been known for thirty years

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति आई क्यों? इसलिए क्योंकि पिछले 30 साल में समाज के बहुत से गुट कांग्रेस से दूर होकर अपनी अलग-अलग पाॢटयां बनाते रहे हैं। 60 साल पहले की राजनीति में जहां मुकाबले में कांग्रेस और कम्युनिस्ट हुआ...

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति आई क्यों? इसलिए क्योंकि पिछले 30 साल में समाज के बहुत से गुट कांग्रेस से दूर होकर अपनी अलग-अलग पाॢटयां बनाते रहे हैं। 60 साल पहले की राजनीति में जहां मुकाबले में कांग्रेस और कम्युनिस्ट हुआ करते थे, वहां अब दूसरे दल हैं। तमिलनाडु कांग्रेस  का गढ़ था, वह द्रविड़ पाॢटयों के हाथ चला गया। वैसा ही उत्तर भारत में हुआ। उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश ये कभी कांग्रेस के साथ हुआ करते थे। हमारा जनाधार बिखर गया है। जब बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया तब से मुसलमानों का विश्वास भी कांग्रेस से उठ गया। 

कांग्रेस को अपना स्थान कायम रखने के लिए अपने सिद्धांतों पर लडऩा होगा। हमें सबको बताना होगा कि वे खुद को भारतीय की नजर से देखें। 1885 में कांग्रेस ने ही यह क्रांतिकारी सोच रखी थी। कांग्रेस के अलावा भारत में अन्य कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो समाज में जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर राजनीति न करती हो। अन्य सभी दल समाज को गुटों में बांटने की राजनीति करते हैं। यहां तक कि कम्युनिस्ट भी समाज में वर्गभेद की राजनीति करते हैं। आप चाहे किसान हो, मजदूर हो, जमींदार हो, कांग्रेस में रहते हुए एक भारतीय की तरह अपनी पहचान कायम रखते हैं। 

यह सब करने के लिए सबसे जरूरी चीज है धर्मनिरपेक्षता जिसके तीन गुण हैं। पहला, राज्य का कोई अपना धर्म नहीं होना चाहिए। जब हम प्रधानमंत्री और मंत्री की कुर्सी पर बैठे हों और हमारा कोई अफसर किसी एक धर्म या जाति के प्रति रुझान दिखाए तो फर्ज बनता है कि उसको रोका जाए। दूसरा, सर्वधर्म समभाव, भले राज्य का अपना कोई धर्म न हो मगर हमें मानना चाहिए कि हमारी जनता धार्मिक है, अलग-अलग धर्मों-पंथों से जुड़ी है। कुछ नास्तिक भी हो सकते हैं मगर सरकार को सबके प्रति समभाव दिखाना चाहिए। तीसरा, हमें अपनी अकलियत और अक्सरियत अर्थात अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक, दोनों का ख्याल रखना चाहिए। दूसरी ओर संप्रदाय की राजनीति करने वाले कहते हैं कि हमारा देश हिंदू बहुसंख्यक है, इसलिए हमें हिंदू राष्ट्र बनाना चाहिए। वे अन्य धर्म का डर दिखाते हैं। अगर अल्पसंख्यकों के प्रति खास नजरिया रखो तो उनकी नजर में उसका मतलब तुष्टीकरण होता है। यह हमारे देश की सबसे अहम राजनीतिक समस्या है। 

इस राजनीतिक समस्या का ढंग से जवाब देने के लिए बहुत ही जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी अपने को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष दिखाए। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू से राजीव गांधी तक कांग्रेस यही कर रही थी। जब नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बने तब वह इस पथ से थोड़ा-सा हटे। हिंदुत्व की शक्ति को उभरते देखकर नरसिम्हाराव ने कोशिश की कि कांग्रेस का नजरिया थोड़ा उनके साथ जुड़ जाए और तब से लेकर बेड़ा गर्क हो रहा है। उसे रोकने के लिए सोनिया गांधी ने कमाल किया। 2004 में सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट किया। इससे 2004 से 2014 तक हमारी सरकार रही। इस दौरान हमारे प्रधानमंत्री अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े व्यक्ति थे। इससे हमारी छवि थोड़ी-बहुत बेहतर हुई। मगर 2012 के बाद बहुत से कांग्रेसियों को लगने लगा कि आने वाले दिनों में हम हारने वाले हैं। इसलिए बेहतर होगा कि जो वोट ङ्क्षहदुत्व की तरफ जा रहा है, उसे हम अपने साथ रखें। अपने को ङ्क्षहदू हैसियत से दर्शाएं। इससे हमें बहुत नुक्सान हुआ क्योंकि जो लोग हिंदुत्व चाहते थे, वे असली हिंदुत्व वालों को चाहते थे न कि नकली। 

कांग्रेस की असली समस्या नेतृत्व की नहीं है। हम सब सहमत हैं कि हमारे पास एक ही राष्ट्रीय नेता है और वह है गांधी परिवार। यह परिवार किसी क्षेत्र से नहीं जुड़ा है, किसी विशेष भाषा से नहीं जुड़ा है, किसी विशेष जाति से नहीं जुड़ा है और किसी विशेष धर्म से भी नहीं जुड़ा हुआ है। वह मात्र भारत माता से जुड़ा है। इनके अलावा बाकी जितने भी कांग्रेस के नेता हैं, किसी एक क्षेत्र से या किसी एक भाषा से उनकी पहचान निकलती है, इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर गांधी परिवार से उनका कोई मुकाबला नहीं। विपक्ष और अखबार वाले कहते हैं कि नेतृत्व को बदलिए, आपका कायाकल्प हो जाएगा। मैं इससे सहमत नहीं हूं। अगर कांग्रेस ने गांधी परिवार को छोड़ा तो यह टुकड़ों में बिखर जाएगी। तीसरा, हमने बड़ी गलती की जब हमने कहा कि कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ। वह आम आदमी तो चला गया है भाजपा के पास लेकिन गरीब तो गरीब रहा। इसलिए हमें गरीबों को बताना चाहिए कि हम हैं उनके साथ। चौथा, हमारी गुटनिरपेक्षता की नीति। गुटनिरपेक्षता का मतलब है कि विश्व में हम अपनी आजादी को कायम रखे हुए हैं। 

विश्वास एक जड़ होता है, पिछले 30 साल में उस जड़ को कीड़ा लगा है। खासतौर पर उदारवाद से, बाबरी मस्जिद आंदोलन से, सोवियत संघ के टूटने से, पंचायती राज व्यवस्था की उपेक्षा से। कांग्रेस जिन सिद्धांतों से दिल से जुड़ी थी, उनसे कुछ कांग्रेसियों को भटकने में तीस साल लगे मगर हम तीन दिन में इनसे फिर जुड़ सकते हैं। मगर यह सब विश्वास पर निर्भर है। अगर विश्वास आ जाए तो वह खाद का काम करता है। जड़ों को मजबूत करता है। भाजपा को छोडि़ए, प्रचार करने के लिए हमारी पार्टी में सबसे ज्यादा लोग हैं। लेकिन पिछले तीस साल से वे यही नहीं समझ पा रहे कि हमें किस पैगाम को आगे ले जाना है। किस पर हमें प्रचार करना है। भाजपा शासित राज्यों में पंचायती राज को बर्बाद किया गया है। इसका अध्ययन मैं पिछले 25 साल से कर रहा हूं। तानाशाही से पार्टी चलाने का जो तरीका भाजपा में है, उसके मुकाबले कांग्रेस में तो कुछ भी नहीं होता। उनकी पार्टी में तो मोदी ही सभी कुछ हैं। हमारी पार्टी में कम से कम तीस-चालीस लोग, जिन्होंने चिट्ठी लिखी, उन्होंने दिखा दिया है कि सीधे नेतृत्व से वे अर्ज कर सकते हैं। क्या भाजपा का कोई भी व्यक्ति ऐसी हिम्मत कर सकता है। 

2019 में भी देश की 64 फीसदी जनता ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया। हम इसलिए हारे क्योंकि हम खुद ही बिखरे हुए थे। भाजपा के नेता यह अच्छी तरह जानते हैं कि जब तक गांधी परिवार है तब तक ही कांग्रेस है। भाजपा का लक्ष्य है कांग्रेस मुक्त भारत। सांप्रदायिकता का खतरा देश के लिए नया नहीं है। यह 1923 से ही चला आ रहा है, जब वीर सावरकर ने हिंदुत्व का यह सिद्धांत गढ़ा। मुकाबले में जब गांधी जी के नेतृत्व में आजादी का आंदोलन चल रहा था तो कांग्रेस ने देश की सभी शक्तियों को जोड़कर एकजुट किया था। आज भी हमें शरद पवार, ममता बनर्जी को साथ जोडऩा चाहिए। अगर हमारा ही परिवार बिखरा रहेगा तो सांप्रदायिक ताकतें जीतकर-उभरकर आएंगी ही।(लेखक वरिष्ठ कांग्रेस नेता हैं)-मणिशंकर अय्यर

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