शिरोमणि कमेटी की वोटें बनाने के लिए सिखों में उत्साह नहीं

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2024 05:28 AM

there is no enthusiasm among sikhs to garner votes for shiromani committee

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के वोट डालने के लिए अब सिर्फ 20 दिन बचे हैं। लेकिन सिख जगत वोट बनाने में कोई उत्साह नहीं दिखा रहा है। शिरोमणि कमेटी की मतदान प्रक्रिया 21 अक्तूबर 2023 से शुरू हुई थी और मतदान की अंतिम तिथि 29 फरवरी 2024 तय की गई है...

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के वोट डालने के लिए अब सिर्फ 20 दिन बचे हैं। लेकिन सिख जगत वोट बनाने में कोई उत्साह नहीं दिखा रहा है। शिरोमणि कमेटी की मतदान प्रक्रिया 21 अक्तूबर 2023 से शुरू हुई थी और मतदान की अंतिम तिथि 29 फरवरी 2024 तय की गई है लेकिन 30 जनवरी तक पिछले चुनाव के कुल वोटों के एक तिहाई से भी कम वोट दर्ज किए गए हैं। इस प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष हरजिंद्र सिंह धामी ने सरकार पर सवाल उठाए हैं और आरोप लगाया है कि सरकार शिरोमणि कमेटी को कमजोर करना चाहती है। इसे कुछ हद तक माना भी जाए, क्योंकि सरकार ने वोट बनाने की सामान्य प्रक्रिया की तरह वोट न बनवाकर यह जिम्मेदारी मतदाताओं पर छोड़ दी है। 

जबकि एस.जी.पी.सी. के वोट बनाने की जिम्मेदारी बूथ स्तर के अधिकारियों (बी.एल.ओ.) को दी जानी चाहिए, लेकिन फिर भी शिरोमणि कमेटी सिख नेतृत्व, सिख बुद्धिजीवी वर्ग और शिरोमणि अकाली दल के विभिन्न गुटों के नेताओं, एस.जी.पी.सी. वोट बनाने की धीमी चाल से खुद को बरी नहीं कर सकते क्योंकि वोट बनाने की प्रक्रिया शुरू हुए चौथा महीना हो गया लेकिन कहीं भी शिरोमणि कमेटी के कुछ महत्वाकांक्षी उम्मीदवारों के अलावा, सिख बुद्धिजीवी, अकाली नेता और शिरोमणि कमेटी के पदाधिकारी और कार्यकत्र्ता वोट बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते नजर नहीं आ रहे हैं। 

इसी लापरवाही का नतीजा है कि 30 जनवरी तक सिर्फ 15 लाख वोट ही दर्ज हुए हैं, जबकि पिछले चुनाव के समय शिरोमणि कमेटी के कुल वोट 52 लाख 68 हजार से ज्यादा थे और इनमें हरियाणा से 3 लाख 37 हजार, 23 हजार हिमाचल के और चंडीगढ़ के 11932 वोट शामिल थे। इस प्रकार,अकेले पंजाब की वोटों की संख्या लगभग 49 लाख थी, जबकि पिछले 12 वर्षों के दौरान जनसंख्या भी काफी तेजी से बढ़ी है और विधानसभा के कुल वोटों की तुलना में 2022 तक लगभग 15 प्रतिशत वोटों की वृद्धि दर्ज की गई थी। 

इस हिसाब से पंजाब में अब शिरोमणि कमेटी के वोटों की संख्या कम से कम 55 लाख से ज्यादा होनी चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सिखों की संसद कही जाने वाली संस्था शिरोमणि कमेटी के चुनाव में हिस्सा लेने वाले सिख समुदाय ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। अगर हम इसकी जांच करें तो एक बात तो साफ है कि शिरोमणि कमेटी सिख समुदाय के दिलों पर अपने प्रदर्शन की छाप नहीं छोड़ पाई जिसके कारण आम सिख समुदाय गुरुद्वारा व्यवस्था में रुचि नहीं दिखा रहा है। यदि शिरोमणि कमेटी और सिख नेता वास्तव में आम सिख संगत को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ जोडऩा चाहते हैं तो उन्हें सरकार की आशाओं और अपीलों को छोड़कर खुद आगे आकर वोट करना होगा। 

क्या अकाली दल बादल सिख मुद्दों से बच रहा है? : पिछले कई महीनों से सिख पंथ के सामने कई मुद्दे उठे हैं, जिनमें भाई बलवंत सिंह राजोआना, भाई गुरदेव सिंह काऊंके, गुरुद्वारा अकाल बुंगा, सुल्तानपुर लोधी में गोलीबारी की घटना और डेरा सच्चा सौदा द्वारा दोआबा नया नाम चर्चा घर का निर्माण शामिल है। इन सभी मुद्दों पर सिख समुदाय में काफी विरोध है। इन सभी मुद्दों को लेकर शिरोमणि कमेटी भी काफी चिंतित नजर आ रही है और इन मुद्दों को सुलझाने के लिए बैठकें कर रही है और कमेटियां भी बना रही है। लेकिन भाई राजोआना और भाई काऊंके के मुद्दे अभी भी खड़े थे और इस बीच 2 और नए मुद्दे सामने आ गए हैं। अकाली दल बादल का नेतृत्व भी इन मुद्दों पर खामोश है, जबकि शिरोमणि कमेटी इन मुद्दों पर सरकार और डेरा सच्चा सौदा से सीधी लड़ाई शुरू करने की राह पर है। 

गुरुद्वारा अकाल बुंगा के मुद्दे पर शिरोमणि कमेटी की ओर से विशेष आम बैठक बुलाई गई। इस सत्र में शिरोमणि कमेटी ने भगवंत सिंह मान के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया और मांग की कि उनके खिलाफ धारा 295ए के तहत पुलिस मामला दर्ज किया जाए और वह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें। डेरा सच्चा सौदा ने दोआबा क्षेत्र में एक बड़ा नाम चर्चा घर बनाने के खिलाफ भी चेतावनी दी है। शिरोमणि कमेटी ने पंजाब के मुख्यमंत्री को चेतावनी दी है कि इससे राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है। शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष हरजिंद्र सिंह धामी ने भी सिख समस्या का समाधान नहीं होने पर संघर्ष शुरू करने की धमकी दी है। 

लेकिन आश्चर्य की बात है कि खुद को सिखों की प्रहरी पार्टी कहने वाली शिरोमणि अकाली दल की ‘पंजाब बचाओ यात्रा’ के दौरान पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अपनी पार्टी की सरकार द्वारा किए गए कार्यों को गिनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और न ही भगवंत मान। अकाली दल को पंथक पार्टी तो कहते हैं, लेकिन देश के सामने आने वाले सिख मुद्दों पर संघर्ष करने से परहेज कर रहे हैं। अकाली दल के इस व्यवहार से पता चलता है कि शिरोमणि अकाली दल खुद को पंजाबी पार्टी के रूप में पेश करने की योजना बना रहा है। ऐसा लगता है कि अब अकाली दल सिखों के धार्मिक मुद्दों को सुलझाने की जिम्मेदारी शिरोमणि कमेटी पर छोड़ देगा और अकाली दल बादल खुद को राजनीतिक तौर पर स्थापित करने पर ध्यान देगा।-इकबाल सिंह चन्नी
(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

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