यह ऐसी ‘दुविधा’ नहीं जिसे सरकार ‘हल’ नहीं कर सकती

Edited By ,Updated: 18 Oct, 2020 04:15 AM

this is not a  dilemma  that the government cannot solve

मेरे पास आशंकित होने के अच्छे कारण हैं। सच तो यह है कि मुझे अभी पता नहीं है। मुद्दे के दोनों ओर के वैध तर्कों की मैं पहचान कर सकता हूं। मैं इसे उठाना चाहता हूं और इस मुद्दे को मैंने व्याकुलता से अपने पास रखा है। मुझे अपने विचारों को साझा करने दें और...

मेरे पास आशंकित होने के अच्छे कारण हैं। सच तो यह है कि मुझे अभी पता नहीं है। मुद्दे के दोनों ओर के वैध तर्कों की मैं पहचान कर सकता हूं। मैं इसे उठाना चाहता हूं और इस मुद्दे को मैंने व्याकुलता से अपने पास रखा है। मुझे अपने विचारों को साझा करने दें और आप अपने लिए इस पर निर्णय ले सकते हैं। कोविड मामले को लेकर स्थितियां बेहतर हो रही हैं। रोजाना के मामले तेजी से कम हो रहे हैं और ऐसा 16 सितम्बर से हो रहा है। उस तारीख पर ये कुल मामले 93617 थे। मंगलवार को ये कम होकर 70213 हो गए। इसका मतलब यह हुआ कि इनमें 25 प्रतिशत की कमी आई। 

रोजाना हो रही मौतों के मामलों में भी ऐसा ही सत्य है। करीब 2 सप्ताहों से इनकी गिनती 1000 से कम है। इसी तरह पॉजिटिव रेट तथा एक्टिव मामलों की गिनती भी कम हो रही है। ये सभी बातें उत्साहवर्धक हैं मगर आगे त्यौहारों का मौसम शुरू हो चुका है तो क्या कोरोना का ट्रैंड बदलेगा?  25 अक्तूबर को दशहरा, 29 को ईद, 14 नवम्बर को दीवाली तथा 20 नवम्बर को छठ पूजा है क्योंकि हम त्यौहार मना रहे होंगे तो इस दौरान सामाजिक दूरी, मास्क पहनना, हाथों को धोना और खांसी के प्रति शिष्टाचार हम भूल जाएंगे। कोरोना वायरस हमारे इर्द-गिर्द होगा। 

यही कारण है कि स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने बड़े-बड़े इकट्ठ पर चेतावनी दी और कहा कि, ‘‘अपने धर्म में आस्था होने का प्रमाण देने के लिए बड़ी गिनती में एकत्रित होने की यहां पर कोई जरूरत नहीं है।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘अपने घरों में बैठ कर अपने आराध्य का सिमरन करें। मैं सुझाव देता हूं कि अपने परिवार के साथ ही त्यौहार को घर में मनाएं।’’ महामारी को लेकर स्वास्थ्य मंत्री के ये बहुत अच्छे शब्द हैं। कोई भी महामारीविद् इससे असहमत नहीं होगा। अफसोस है कि त्यौहारों की भावना को यह बात निरुत्साहित करेगी। रामलीला, दुर्गा पूजा पंडाल, ईद मिलन तथा छठ पूजा को बिना ज्यादा तादाद में उपस्थित होकर मनाना होगा। मगर स्वास्थ्य मंत्री त्यौहारों पर सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं सवाल उठता है कि आखिर किस कीमत पर? 

अपने तर्क के तौर पर मैं दूसरा पक्ष पेश करता हूं। त्यौहारों का मौसम ऐसे दिन होते हैं जब भारतीय पैसा खर्च करते हैं। वास्तव में वह पैसों की बौछार करने के लिए इंतजार में होते हैं। लोगों की मांग अर्थव्यवस्था को निश्चित तौर पर उत्साहित करेगी और परम्पराओं से जुड़ी मांग को किसी भी तरीके से दबाया नहीं जाना चाहिए। इस वर्ष मांग की बहुत ज्यादा जरूरत है। वृद्धि 24 प्रतिशत तक गिरी है।  सरकार अर्थव्यवस्था को और ज्यादा प्रोत्साहित करने के प्रति अडिग है। अब इसी प्रकार की दुविधा है जो सरकार कर नहीं सकती उसे स्पष्ट करने की जरूरत है। महीनों भर के लॉकडाऊन के बाद मन में डर रखते हुए लोग दुर्गा पूजा, दशहरा तथा ईद को हर्षोल्लास से मनाना चाहते हैं। ये उत्सव आस्था से जुड़े हैं तथा लोग भगवान पर उम्मीद करते हैं कि वह उन्हें बचाएंगे मगर तब क्या होगा यदि वायरस उन्हें पहले ही घेर ले? 

दूसरी तरफ यदि लोग घरों के भीतर रहेंगे, न खर्च करेंगे और न त्यौहारों को मनाएंगे इससे अर्थव्यवस्था जिसके कि पुनर्जीवित होने की, उम्मीद है, चरमरा जाएगी। वास्तव में त्यौहारों के मौसम के लिए हजारों की तादाद में डीलरों तथा दुकानदारों ने माल का स्टॉक कर रखा है। उन्हें बहुत बड़ा घाटा होगा यदि उनका सामान बिना बिके रह गया। जब मैंने फिर से स्वास्थ्य मंत्री को पढ़ा तो मैं उनसे सहमत होने के लिए ललचाया। 

‘‘कोई भी देवता यह नहीं कहता कि प्रार्थना करने के लिए आप किसी बड़े पंडाल में जाएं। यदि आपको पता है कि बाहर आग लगी है और आप फिर भी धर्म के नाम पर बाहर जाना चाहते हैं तो ऐसे त्यौहारों को मनाने का क्या फायदा?’’ मगर जब मैं यह सवाल उठाता हूं कि हमें वायरस के साथ जीना सीख लेना चाहिए तो मैं दूसरी दिशा की ओर चला जाता हूं। यदि हम दुर्गा पूजा, दशहरा, दीवाली तथा ईद को मनाना रद्द कर देंगे तो यह ठीक नहीं होगा। इससे यह सोचा जाएगा कि कोरोना वायरस जीत गया। यह ऐसी दुविधा नहीं जिसे सरकार हल नहीं कर सकती मगर उसे लोगों को परामर्श देना तथा चेताना चाहिए। ऐसा डा. हर्षवर्धन ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री भी इसके लिए सहायक हो सकते हैं। फिर भी यह एक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर हमें खुद ही अपना मन बदलना होगा और नतीजे चाहे कुछ भी हों, उन्हें भुगतना होगा।-करण थापर 
 

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