पाकिस्तान को महंगी पड़ेगी ‘आतंकवाद के शेर’ की सवारी

Edited By ,Updated: 21 Feb, 2019 04:51 AM

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जमात -ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी पाकिस्तान को नापाकिस्तान कहते थे, उसे सार्थक करते हुए वह अब आतंकिस्तान बन गया है। कुछ वर्ष पहले वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की ट्रैवल एंड टूरिज्म की रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान विश्व के असुरक्षित देशों...

जमात -ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी पाकिस्तान को नापाकिस्तान कहते थे, उसे सार्थक करते हुए वह अब आतंकिस्तान बन गया है। कुछ वर्ष पहले वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की ट्रैवल एंड टूरिज्म की रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान विश्व के असुरक्षित देशों में चौथे नम्बर पर है। ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि आतंकवाद के शेर की सवारी बहुत महंगी पड़ती है, कभी-कभी तो जानलेवा साबित होती है। पाकिस्तान पिछले कई दशकों से ऐसी ही सवारी कर रहा है और उसकी भारी कीमत चुका रहा है। वह भले ही आतंकवादियों के लिए स्वर्ग बन चुका हो मगर वहां के नागरिकों की जिंदगी नर्क हो चुकी है। 

पाक की बहुरूपी भूमिका
अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक यह मानते हैं कि आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान बहुरूपी की भूमिका निभा रहा है। एक तरफ  वह आतंक के खिलाफ जंग लडऩे के लिए अमरीका के नेतृत्व में चल रहे अभियान का हिस्सा था। इसके नाम पर अरबों रुपए की सैनिक सहायता डकार गया। दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के महानायक ओसामा बिन लादेन को अपने देश में गुप्त रूप से पनाह देकर आतंक के खिलाफ  लड़ाई से गद्दारी भी करता रहा। कुछ लोग तो पाकिस्तान को आतंकवाद का अजायबघर मानते हैं जहां अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से आंतरिक आतंकवाद तक बड़ी तादाद में मौजूद है। दूसरी तरफ कुछ लोग यह मानते हैं कि पाकिस्तान तो आतंकवाद का शिकार बन रहा है। 

तहरीक-ए-तालिबान जैसे पाक विरोधी आतंकी संगठन हजारों लोगों की हत्या कर चुके हैं। इसके अलावा अपहरण का धंधा भी जोरों पर होता है। एक तरफ पाकिस्तान सरकार आतंकी गुटों को प्रायोजित भी करती है, दूसरी तरफ आतंकवादियों को खत्म करने का अभियान भी चलाती है। अपनी इस दोहरी भूमिका के कारण पाकिस्तान अपनी विश्वसनीयता खो बैठा है। आज वह आतंकवाद का खुला बाजार बन चुका है। वहां हर तरह के आतंकी संगठन हैं- साम्प्रदायिक आतंकी संगठन हैं तो अपराष्ट्रीयताओं पर आधारित आतंकी संगठन, भारत विरोधी आतंकी संगठन हैं तो ईरान विरोधी आतंकी संगठन भी, अफगानिस्तान में आतंकवाद फैलाने वाले संगठन भी और अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी संगठन भी हैं। 

आतंकवादी समूहों की फसल
पाकिस्तान में आतंकवादी समूहों की जो फसल लहलहा रही है उसे मुख्य रूप से 6 श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
(1) साम्प्रदायिक आतंकवादी संगठन : इस्लाम के विभिन्न सम्प्रदायों से प्रेरित संगठन जैसे सिपह-ए- सहाबा, लश्कर-ए-झांगवी और शिया तहरीक-ए-जफरिया आदि जो पाकिस्तान में शिया-सुन्नी युद्ध में लगे रहते हैं जिसमें अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद तहरीक-ए-निफज-ए-फिकह-ए-फाफेरिया(टी.एन.एफ.) स्थापित हुआ, उसका मकसद शिया के अधिकारों की रक्षा करना था। इसकी प्रतिक्रिया में सिपह-ए-सहाबा नामक उग्रवादी सुन्नी साम्प्रदायिक संगठन की स्थापना हुई और सऊदी अरब व अन्य सुन्नी देशों के पैसे के कारण वह तेजी से फला-फूला। यह संगठन मांग करने लगा कि शियाओं को अल्पसंख्यक यानी अहमदियों की तरह गैर मुस्लिम घोषित किया जाए। सिपह-ए-सहाबा से ही एक गुट ने एक आतंकी संगठन लश्कर-ए-झांगवी की स्थापना की जिसका एकमात्र मकसद शियाओं  को काफिर या गैरमुस्लिम बताकर उनकी हत्याएं करना था। इसके जवाब में शियाओं ने भी एक नया संगठन बनाया सिपाह-ए-मोहम्मद। दरअसल 10 के आसपास संगठन ऐसे हैं जो साम्प्रदायिक आतंकवाद में सक्रिय रहते हैं। 

(2) भारत विरोधी संगठन : इनमें मुख्य रूप से जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे संगठन आते हैं  जो कश्मीर की आजादी और भारत के विरोध में लड़ते हैं। इन्हें राज्य द्वारा प्रायोजित  आतंकी संगठन कहा जा सकता है। उन्हें पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. का पूरा समर्थन हासिल होता है और ये उन्हीं के इशारे पर काम करते हैं। उनका मकसद कश्मीर और  भारत में तबाही फैलाना है। उन्हीं के कारण उड़ी, पठानकोट, गुरदासपुर, मुंबई, संसद, कश्मीर विधानसभा आदि हमले भारत में हुए हैं। 

(3) अफगान तालिबान: तालिबान आंदोलन खासकर उसका कंधार स्थित नेतृत्व जो मुल्ला उमर के इर्द-गिर्द केन्द्रित था उसने क्वेटा में डेरा जमाया हुआ था। उससे जुड़े संगठन भी पाकिस्तान में हैं। हक्कानी नैटवर्क जैसा आतंकी संगठन है जिसके सदस्य कई सालों से पाकिस्तान में पनाह पा रहे हैं। उनका मुख्य मकसद है अफगानिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव से निकालना और सत्ता अपने हाथ में लेना। इस गुट के  प्रमुख जलालुद्दीन ने सोवियत रूस के खिलाफ  लड़ाई में हिस्सा लिया और 1990 के दशक में तालिबान से मिल गए। हक्कानी तालिबान का ही एक स्वायत्त धड़ा है। इसके अलावा वह अकेले भी काम कर सकता है क्योंकि उसके अल कायदा और अरब देशों से सम्पर्क हैं। तालिबान हक्कानी पर निर्भर है क्योंकि उसके मुकाबले हक्कानी ज्यादा नामी है। उसके पास 10000 आतंकवादी हैं। जलालुद्दीन हक्कानी ने 1980 के दौरान अफगानिस्तान में रूस (सोवियत संघ) के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए पाकिस्तान और अमरीका की मदद से हक्कानी नैटवर्क की स्थापना की थी।

2001 में तालिबान को सत्ता से उखाडऩे के बाद से अमरीका तालिबान के साथ-साथ हक्कानी नैटवर्क को भी खत्म करने की कोशिश में है। तब से इस संगठन के लड़ाकों ने अमरीका और अमरीका समर्थित अफगान सरकार के सुरक्षा बलों पर कई आतंकी हमले किए हैं। माना जाता है कि इस आतंकी संगठन का संचालन पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों से होता है और बीते सालों में अमरीका कई बार पाकिस्तान पर इस संगठन को मदद देने का आरोप लगाता रहा है। इसके अलावा गुलबुद्दीन हिकमतयार के अफगानी संगठन हिज्ब-इ-इस्लामी के 1000 से ज्यादा आतंकवादी हैं। 

(4) अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन: अल कायदा का नेता ओसामा बिन लादेन अंतिम दिनों तक पाकिस्तान मेंं रहा। अल कायदा और  उसके सहयोगी संगठन भी पाकिस्तान में सक्रिय है। पिछले कुछ वर्षों में आई.एस.आई.एस. भी पाकिस्तान में सक्रिय हुआ है। उसने 3 बड़े आतंकी हमले किए हैं अन्य पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की मदद से। 

पाकिस्तान की दोहरी भूमिका 
(5) पाकिस्तानी तालिबान: पाकिस्तान बड़ा अजीब मुल्क है। एक तरफ वह आतंकवाद का प्रायोजक है, शरणदाता है और दूसरी तरफ आतंकवाद का शिकार भी है। पाकिस्तान में लश्कर-ए-तोयबा और जैश-ए-मोहम्मद  जैसे आतंकी संगठन तो पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. के इशारे पर भारत में आतंकवाद फैलाने का काम करते हैं। दूसरी तरफ  तहरीक-ए-तालिबान जैसा पाकिस्तानी आतंकी संगठन भी है जो पाकिस्तान के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता है। वह अब तक दिल दहला देने वाले कई हमले कर चुका है। इसमें कई दर्जन  आतंकी संगठन शामिल हैं। 

(6) उपराष्ट्रीयताओं के संगठन: बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे राष्ट्रीयता की लड़ाई लडऩे वाले संगठन हैं जो इनमें से किसी श्रेणी में नहीं आते। बलोच लिबरेशन आर्मी के कमांडर असलम बलोच ने कहा कि वह पाकिस्तान और चीन के विरुद्ध बलोचिस्तान में संघर्ष जारी रखेंगे। यहां पर चीन का दखल बढ़ रहा है, जो कि पाकिस्तान के खिलाफ उनकी लड़ाई के लिए बड़ा खतरा है। बलोच लिबरेशन आर्मी (बी.एल.ए.) ने ही हाल ही में लाहौर स्थित चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। उन्होंने कहा कि सी.पी.ई.ओ. के नाम पर चीन बलोच के संसाधनों को लूट रहा है। बता दें कि बलोच लिबरेशन आर्मी ने चीनी-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के काम में लगे चीनी कर्मचारियों पर कई बार हमले किए हैं। 

(7) ईरान ने भी पाक पर आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है। पिछले दिनों ईरान रैवोल्यूशनरी गार्ड्स के 27 सैनिकों की आतंकी हमले में मौत हो गई थी। रैवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर मेजर जनरल मोहम्मद अली जाफरी ने जेहादी समूह जैश-अल-अद्ल की ओर इशारा करते हुए कहा, पाकिस्तान सरकार जानती है कि ये लोग कहां हैं और इन्हें पाकिस्तान के सुरक्षा बलों का समर्थन हासिल है। इससे पहले ‘चाबाहार पोर्ट पर हुए धमाकों की जिम्मेदारी सुन्नी आतंकी संगठन जुनदल्लाह ने ली थी। ईरान का दावा है कि इस संगठन को पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी से मदद मिलती है। पाकिस्तान में बहुत से संगठन ऐसे हैं जो पाकिस्तान की सेना और आई.एस.आई. के इशारे पर ही विदेशों में आतंकी गतिविधियां फैलाते हैं। राज्य और आतंकी गुटों का गठजोड़ देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।-सतीश पेडणेकर

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