उत्तर प्रदेश पुलिस की कायापलट

Edited By ,Updated: 14 May, 2017 11:42 PM

uttar pradesh polices transformation

यूं तो बम्बईया फिल्मों में पुलिस को हमेशा से ‘लेट-लतीफ’ और ‘ढीला-ढाला’ ही दिखाया जाता.....

यूं तो बम्बईया फिल्मों में पुलिस को हमेशा से ‘लेट-लतीफ’ और ‘ढीला-ढाला’ ही दिखाया जाता है। आमतौर पर पुलिस की छवि होती भी ऐसी है कि वह घटनास्थल पर फुर्ती से नहीं पहुंचती और बाद में लकीर पीटती रहती है। तब तक अपराधी नौ-दो-ग्यारह हो जाते हैं। पुलिस के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस पर ढीलेपन के अलावा जातिवादी होने का भी आरोप लगता रहा है।

कभी अल्पसंख्यक आरोप लगाते हैं कि ‘यू.पी. पुलिस’ साम्प्रदायिक है कभी बहनजी के राज में आरोप लगता है कि यू.पी. पुलिस दलित उत्पीडऩ के नाम पर अन्य जातियों को परेशान करती है। तो सपा के शासन में आरोप लगता है कि थाने से पुलिस अधीक्षक तक सब जगह यादव भर दिए जाते हैं। यू.पी. पुलिस का जो भी इतिहास रहा हो, अब उत्तर प्रदेश की पुलिस अपनी छवि बदलने को बेचैन है। इसमें सबसे बड़ा परिवर्तन ‘यू.पी. 100’ योजना शुरू होने से आया है। 

इस योजना के तहत आज उत्तर प्रदेश के किसी भी कोने से, कोई भी नागरिक, किसी भी समय अगर 100 नम्बर पर फोन करेगा और अपनी समस्या बताएगा तो 3 से 20 मिनट के बीच ‘यूपी 100’ की गाड़ी में बैठे पुलिस कर्मी उसकी मदद को पहुंच जाएंगे। फिर वह चाहे किसी महिला से छेडख़ानी का मामला हो, चोरी या डकैती हो, घरेलू मारपीट हो, सड़क दुर्घटना हो या अन्य कोई भी ऐसी समस्या जिसे पुलिस हल कर सकती है। यह सरकारी दावा नहीं बल्कि हकीकत है। आप चाहें तो यू.पी. में इसे कभी भी 24 घंटे आजमाकर देख सकते हैं। 

पिछले साल नवम्बर में शुरू हुई, यह सेवा आज पूरी दुनिया और शेष भारत के लिए एक मिसाल बन गई है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अनिल अग्रवाल ने अपनी लगन से इसे मात्र एक साल में खड़ा करके दिखा दिया। जोकि लगभग एक असंभव घटना है। अनिल अग्रवाल ने जब यह प्रस्ताव शासन के सम्मुख रखा तो उनके सहकर्मियों ने इसे मजाक समझा। मगर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तुरंत इस योजना को स्वीकार कर लिया और उस पर तेजी से काम करवाया। आज इस सेवा में 3200 गाडिय़ां हैं और 26000 पुलिस कर्मी और सूचना प्रौद्योगिकी के सैंकड़ों विशेषज्ञ लगे हैं।

 जैसे ही आप 100 नम्बर पर फोन करते हैं, आपकी कॉल सीधे लखनऊ मुख्यालय में सुनी जाती है। सुनने वाला पुलिस कर्मी नहीं बल्कि युवा महिलाएं हैं। जो आपसे आपका नाम, वारदात की जगह और क्या वारदात हो रही है, यह पूछती है। फिर यह भी पूछती है कि आपके आस-पास कोई महत्वपूर्ण स्थान, मंदिर, मस्जिद या भवन है और आप अपने निकट के थाने से कितना दूर हैं। इस सब बातचीत में कुछ सैकेंड लगते हैंं और आपका सारा डाटा तथा आपकी आवाज कम्प्यूटर में रिकॉर्ड हो जाती है। फिर यह रिर्काडिंग एक-दूसरे विभाग को सैकेंडों में ट्रांसफर हो जाती है। जहां बैठे पुलिस कर्मी फौरन ‘यू.पी. 100’ की उस गाड़ी को भेज देते हैं, जो उस समय आपके निकटस्थ होती है क्योंकि उनके पास कम्प्यूटर के पर्दे पर हर गाड़ी की मौजूदगी का चित्र हर वक्त सामने आता रहता है। इस तरह केवल 3 मिनट से लेकर 20 मिनट के बीच ‘यू.पी. 100’ के पुलिसकर्मी मौका-ए-वारदात पर पहुंच जाते हैं। 

अब तक का अनुभव यह बताता है कि 80 फीसदी वारदात आपसी झगड़े की होती हैं, जिन्हें पुलिसकर्मी वहीं निपटा देते हैं या फिर उसे निकटस्थ थाने के सुपुर्द कर देते हैं। यह सेवा इतनी तेजी से लोकप्रिय हो रही है कि अब उत्तर प्रदेश के लोग थाने जाने की बजाय सीधे 100 नम्बर पर फोन करते हैं। इसके 3 लाभ हो रहे हैं। एक तो अब कोई थाना यह बहाना नहीं कर सकता कि उसे सूचना नहीं मिली क्योंकि पुलिस के हाथ में केस पहुंचने से पहले ही मामला लखनऊ मुख्यालय के एक कम्प्यूटर में दर्ज हो जाता है। दूसरा थानों पर काम का दबाव भी इससे बहुत कम हो गया है। तीसरा लाभ यह हुआ कि ‘यू.पी. 100’ जिला पुलिस अधीक्षक के अधीन न होकर सीधे प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के अधीन है। इस तरह पुलिस फोर्स में ही एक-दूसरे पर निगाह रखने की 2 इकाइयां हो गईं। एक जिला स्तर की पुलिस और एक राज्य स्तर की पुलिस। दोनों में से जो गड़बड़ करेगा, वह अफसरों की निगाह में आ जाएगा। 

जब से यह सेवा शुरू हुई है, तब से सड़कों पर लूटपाट की घटनाओं में बहुत तेजी से कमी आई है। 8 महीने में ही 323 लोगों को मौके पर फौरन पहुंचकर आत्महत्या करने से रोका गया है। महिलाओं को छेडऩे वाले मजनुंओं की भी इससे शामत आ गई है क्योंकि कोई भी लड़की 100 नम्बर पर फोन करके ऐसे मजनुंओं के खिलाफ  मिनटों में पुलिस बुला सकती है। इसके लिए जरूरत इस बात की है कि उत्तर प्रदेश का हर नागरिक अपने मोबाइल फोन पर ‘यू.पी. 100 एप’ को डाऊनलोड कर ले और जैसे ही कोई समस्या में फंसे, उस एप का बटन दबाए और पुलिस आपकी सेवा में हाजिर हो जाएगी। 

विदेशी सैलानियों के लिए भी ये रामबाण है, जिन्हें अक्सर यह शिकायत रहती थी कि उत्तर प्रदेश की  पुलिस  उनके साथ जिम्मेदारी से व्यवहार नहीं करती है। इस पूरी व्यवस्था को खड़ी करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस और उसके ए.डी.जी. अनिल अग्रवाल की जितनी तारीफ की जाए कम है। जरूरत है इस व्यवस्था को अन्य राज्यों में तेजी से अपनाने की।     

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