Edited By ,Updated: 14 Dec, 2020 02:32 AM
नीति आयोग के प्रमुख ने कुछ ऐसा कहा जो कई लोगों को परेशान करता है और इसलिए उन्हें खुद को समझाना पड़ा। यह उनका बयान ही था जो दो बार दोहराया गया कि भारत में बहुत अधिक लोकतंत्र था। हालांकि एक ही भाषण में कुछ और कहा गया मगर
नीति आयोग के प्रमुख ने कुछ ऐसा कहा जो कई लोगों को परेशान करता है और इसलिए उन्हें खुद को समझाना पड़ा। यह उनका बयान ही था जो दो बार दोहराया गया कि भारत में बहुत अधिक लोकतंत्र था। हालांकि एक ही भाषण में कुछ और कहा गया मगर इस पर इतना ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन मेरी राय में यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य है। तर्क की जांच करने वाली वैबसाइट ए.एल.टी. न्यूज डॉट इन ने उनके भाषण की वीडियो रिकॉर्डिंग का विश्लेषण किया और पुष्टि की कि उन्होंने वास्तव में उन शब्दों का इस्तेमाल किया है जिनका उन्होंने उपयोग करने से इंकार किया।
वैबसाइट ने बताया कि, ‘‘भारत में हम बहुत ज्यादा लोकतंत्र वाले हैं इसलिए हम हर किसी का समर्थन करते हैं। भारत में पहली बार किसी सरकार ने आकार और पैमाने के मामले में बड़ा विचार किया है और कहा है कि वह वैश्विक चैंपियन बनना चाहते हैं। किसी की राजनीतिक इच्छा शक्ति और यह कहने की हिम्मत नहीं थी कि हम उन पांच कम्पनियों का समर्थन करना चाहते हैं जो वैश्विक चैंपियन बनना चाहती हैं। हर कोई कहता था कि मैं भारत में सभी का समर्थन करना चाहता हूं मैं सभी से वोट प्राप्त करना चाहता हूं।’’ एक दूसरी चीज भी है जिसे नजरअंदाज किया गया। नीति आयोग के प्रमुख जोकि प्रधानमंत्री के थिंकटैंक हैं, वह अर्थव्यवस्था पर मोदी सरकार की कूटनीति की व्याख्या कर रहे थे। यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या यह ऊपर दिए गए कथन में था मगर नीति में स्पष्ट तौर पर यह व्यक्त किया गया है।
संक्षेप में सिद्धांत यह है कि भारत में बहुत-सी छोटी कम्पनियां हैं और वे अक्षम हैं। इसके विपरीत इसके पास कुछ दिग्गज खिलाड़ी होने चाहिएं। तभी दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा की जा सकती है तो सरकार इसे संभव बनाने के लिए क्या करेगी? यह छोटे तथा मध्यम आकार वाले उद्योगपतियों के लिए प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
इसे औपचारिकता भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि छोटे तथा मध्यम आकार की इकाईयां सभी कर चोर हैं। वे नकदी में काम करके सरकार को धोखा देती हैं। उनके अस्तित्व को मुश्किल बनाने के लिए पहला कदम अर्थव्यवस्था से नकदी को निकालना है। यह 8 नवम्बर 2016 को किया गया था। व्यवसाय जो नकद लेन-देन पर निर्भर थे, भले ही वह वैध थे, हफ्तों तक काम नहीं कर पाए और महीनों तक उनका कामकाज बाधित हुआ। बड़े व्यवसाय प्रभावित नहीं हुए क्योंकि वे इलैक्ट्रॉनिक हस्तांतरण कर सकते थे। जैसा कि मैट्रो क्षेत्रों में उच्च श्रेणी अपने क्रैडिट कार्डों के माध्यम के साथ प्रबंध कर सकी थी।
छोटे और मध्यम के खिलाफ दूसरा हमला गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जी.एस.टी.) था जिसे इतना जटिल बना दिया गया ताकि अनुपालन के लिए लोगों की बड़ी टीमों की जरूरत पड़े। बार-बार रिटर्न दाखिल करने और डिजिटल सिस्टम के प्रबंधन का मतलब था कि एक बार फिर से बड़ी संख्या में लोग ऐसे व्यवसायों से बाहर हो गए जो अतिरिक्त लागत के कारण अनेक जटिलताओं का सामना नहीं कर सके। उन्होंने कुछ और करने का विकल्प चुना। तीसरा हमला इस वर्ष का लॉकडाऊन था जिसने छोटे और मध्यम वर्गीय लोगों की कमर तोड़ दी जिनके पास नकदी भंडार नहीं था जो इस तरह के झटके से निपटने में सक्षम होते या फिर कर्मचारियों को घर से काम करने की अनुमति देते हों।
सबसे प्रतिष्ठित वैश्विक पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने बताया कि नवम्बर 2016 से मुकेश अम्बानी की कुल सम्पत्ति 350 प्रतिशत बढ़ गई और उसी अवधि में गौतम अडानी की कुल सम्पत्ति 750 प्रतिशत बढ़ गई और यह सम्पत्ति सबसे घटती अर्थव्यवस्था में बढ़ी। दिसम्बर का महीना 36वां सीधा महीना है जिसमें भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2018 में पतन शुरू हुआ और 3 साल तक जारी रहा। वित्त मंत्रालय के मुख्य आॢथक सलाहकार ने पिछले सप्ताह कहा था कि मोदी सरकार ने एक सर्वेक्षण जारी करने से इंकार कर दिया था। इसने आखिर क्या दिखाया? इससे पता चला कि भारतीय 2012 की तुलना में 2018 में कम पैसा खर्च कर पाए। इसका मतलब यह है कि वे भी कम कमा रहे थे। सभी भारतीय निश्चित रूप से नहीं मगर कुछ तथ्यों के कारण अधिक कमा रहे थे।
मोदी सरकार की आर्थिक नीति के बारे में बहुत कुछ ऐसा लगता है कि हम इस बात पर विचार करते हैं कि सरकार इस देश के लिए जानबूझ कर ऐसा कर रही है। मोदी के पूर्व सलाहकार अरविंद पनगढिय़ा ने ‘आत्मनिर्भर’ के बारे में शिकायत करते हुए कहा कि यह केवल आयात प्रतिस्थापन था जो इससे पहले विफल हो गया था। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि मोदी ने उन आयातित चीजों पर टैरिफ लागू किया जो भारतीय खरीदते हैं, जैसे कि टैलीविजन सैट और मोबाइल फोन। ताकि उद्योगपति आयातित सामान की तुलना में अधिक कीमत पर अपना सामान बेच सकें। आत्मनिर्भरता के बारे में नीतियां कौन बनाता है? यह उपभोक्ता या फिर नागरिक नहीं हैं। यह सरकार के चुङ्क्षनदा और पसंदीदा लोग हैं जिन्हें जीतने का काम सौंपा गया है। जबकि बाकी हम सब जानबूझ कर असफल हुए हैं।-आकार पटेल