विदेशी पत्रकारों के भारत में घूमने पर प्रतिबंध क्या संदेश देगा

Edited By Pardeep,Updated: 29 Jul, 2018 04:08 AM

what will the ban on foreign journalists roaming in india

खराब तथा अप्रचलित नियमों तथा कानूनों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए और बेहतर तो यही होगा कि उन्हें रद्द कर दिया जाए। यह करना समझदारीपूर्ण होगा। हमारे पास एक ऐसे ही खराब नियम का उदाहरण है जिसे वर्षों तक नजरअंदाज किया गया मगर अब इसे सख्ती से लागू किया...

खराब तथा अप्रचलित नियमों तथा कानूनों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए और बेहतर तो यही होगा कि उन्हें रद्द कर दिया जाए। यह करना समझदारीपूर्ण होगा। हमारे पास एक ऐसे ही खराब नियम का उदाहरण है जिसे वर्षों तक नजरअंदाज किया गया मगर अब इसे सख्ती से लागू किया जाएगा। यह एक भयानक गलती है जो हमारे लिए महंगी साबित हो सकती है। मैं विदेशियों की यात्रा संबंधी 1958 के दिशा-निर्देशों की बात कर रहा हूं। इन नियमों के तहत पत्रकारों को मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के कुछ ‘हिस्सों’ और सारे सिक्किम व नागालैंड की यात्रा से पहले

‘पूर्व आज्ञा’ लेने की जरूरत होती है। यदि दशकों नहीं तो कई वर्षों तक इस जरूरत को नजरअंदाज किया गया और ऐसा मान लिया गया कि ये दिशा-निर्देश समाप्त हो गए हैं। इसका परिणाम यह निकला कि दिल्ली में रहने वाले विदेशी पत्रकार भारत के सभी हिस्सों में आसानी तथा तेजी से यात्रा कर सकते हैं। इससे न केवल उन्हें देश में अपनी कवरेज सुधारने में मदद मिली बल्कि अपनी समझ बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें अपनी कीमत का भी एहसास हुआ। अब केवल एक चोट के साथ ये सब कुछ पलट सकता है। 

उदाहरण के लिए हम श्रीनगर को लेते हैं। अब तक विदेशी पत्रकार वास्तव में इस राज्य की राजधानी में जब चाहे जा सकते थे। यह भारत के उस रुख को मजबूत करता था कि कश्मीर भारत का पूर्णत: अटूट हिस्सा है। इसी से ‘अटूट अंग’ का मुहावरा बना। अब जब कोई पत्रकार वहां जाना चाहता है उसे हर बार सरकार से आज्ञा लेनी पड़ती है। आमतौर पर ऐसी आज्ञा मिलने में कई सप्ताह बीत जाते हैं। निश्चित तौर पर कभी-कभार या आमतौर पर ऐसी आज्ञा नहीं भी मिलती। तो इस तरह की व्यवस्था भारत के बारे में किस तरह का संदेश देती है। मुझे हैरानी होगी यदि किसी ने इस बारे गम्भीरतापूर्वक विचार किया होगा। इससे भारत के इस डींग वाले दावे पर छाया पड़ती है कि यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। 

लोकतंत्र में आखिरकार प्रैस की स्वतंत्रता की गारंटी होती है। भारत अब विदेशी मीडिया पर प्रतिबंध लगा रहा है। यदि इससे उनके मनों में परेशान करने वाले संदेह उत्पन्न होते हैं तो इसका दोष हम केवल खुद को अथवा अपनी सरकार को दे सकते हैं। हालांकि इसके परिणाम बदतर हो सकते हैं। काफी पहले से लागू प्रतिबंधों को फिर से बहाल करना यह भी दर्शाता है कि भारत के बड़े भाग ऐसे भी हैं जहां असंतोष मौजूद है, जिसे सरकार बाहरी दुनिया को दिखाना नहीं चाहती। कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिन्हें अब विदेशी मीडिया के लिए ‘निषेध’ माना जाएगा। इसलिए इसका यही निष्कर्ष निकलता है कि वहां कुछ न कुछ छिपाने के लिए है। 

एक अन्य कारण भी है कि क्यों इन पुराने दिशा-निर्देशों को बहाल करना मूर्खतापूर्ण है। यह न केवल विदेशी पत्रकारों को परेशानी में डालेगा बल्कि वे यह भी समझेंगे कि ऐसा सीधा उन्हें लक्ष्य बनाकर किया गया है और उसमें कोई तुक नजर नहीं आता। जब आप विदेशी पत्रकारों को स्वीकार करते हैं तो इसलिए कि आप चाहते हैं कि वे देश का सटीक मूल्यांकन प्रस्तुत करें और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि वह हमारे हित में हो। आखिरकार वे बाहरी दुनिया की आंखें तथा कान हैं। 

उनकी रिपोर्टें न केवल विदेशी सरकारों को प्रभावित करेंगी बल्कि सम्भव है कि प्रभावशाली ढंग से पर्यटकों को भी। फिर यदि आप जानबूझ कर परेशानी पैदा करेंगे तो इससे उन्हें केवल चिढ़ ही होगी। बदले में वे देश के प्रति अपना व्यवहार कटु बना लेंगे। यदि ऐसा होता है तो इसके प्रति प्रभाव पुराने पत्रकारों अथवा मीडिया हाऊस को केवल परेशान करने से कहीं अधिक होंगे। अत: मुझे उस प्रश्न के साथ समाप्त करने दें जिससे मैंने प्रारम्भ किया था:  क्या यह समझदारीपूर्ण है अथवा यह महंगा तथा खुद को हराने वाला साबित होगा। इसका पता चलने में अधिक समय नहीं लगेगा मगर मुझे बहुत कम विश्वास है कि मेरे डर निराधार साबित होंगे।-करण थापर 
   

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