‘बर्बरता’ की ओर क्यों बढ़ रहे हैं लोग

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2019 04:08 AM

why are people moving towards  barbarity

हाल ही में सोशल मीडिया पर कई वीडियो सामने आए हैं, जिन्हें देख कर हम सबका सिर शर्म से झुक जाना चाहिए। आधुनिकीकरण, विचार प्रक्रिया के शुद्धिकरण तथा समाज के विकास की बजाय ऐसा दिखाई देता है कि हम पीछे मध्ययुगीन काल की ओर फिसल रहे हैं और ‘भीड़ न्याय’ अब...

हाल ही में सोशल मीडिया पर कई वीडियो सामने आए हैं, जिन्हें देख कर हम सबका सिर शर्म से झुक जाना चाहिए। आधुनिकीकरण, विचार प्रक्रिया के शुद्धिकरण तथा समाज के विकास की बजाय ऐसा दिखाई देता है कि हम पीछे मध्ययुगीन काल की ओर फिसल रहे हैं और ‘भीड़ न्याय’ अब नई सामान्य बात दिखाई देती है।

इनमें से एक वीडियो, जिसे इलैक्ट्रानिक मीडिया द्वारा भी व्यापक रूप से प्रसारित किया गया, में एक युवा विधायक को हाथ में बैट पकड़ कर सरकारी अधिकारियों को पीटते दिखाया गया है, जो अवैध निर्माणों को गिराने के लिए किसी विशेष जगह पर गए थे। उनके साथ गई भीड़ ने उनका समर्थन तथा प्रोत्साहित किया। ढीठ विधायक, जो भारतीय जनता पार्टी के शक्तिशाली महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं, को बाद में सरकारी अधिकारियों के कार्य में बाधा डालने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ दिनों बाद जमानत पर छोड़ दिया गया। 

कोई अफसोस नहीं
चौंकाने वाली बात यह है कि पहली बार विधायक बने आकाश विजयवर्गीय जब जेल से बाहर आए तो उनके समर्थकों ने उनका एक नायक की तरह स्वागत किया। उन्हें एक मसीहा तथा इंदौर का ‘गौरव’ बताया गया, वह शहर जहां से आकाश राज्य विधानसभा का नेतृत्व करते हैं। उन्होंने अपनी कार्रवाई पर अफसोस जताने के लिए कोई सार्वजनिक वक्तव्य नहीं दिया। वास्तव में उन्होंने कहा कि उन्हें कोई अफसोस नहीं है मगर भविष्य में वह महात्मा गांधी का मार्ग अपनाएंगे, शायद अहिंसा का। 

यहां तक कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी चुप रहा क्योंकि विधायक के पिता ने राज्य के महासचिव प्रभारी होने के नाते पश्चिम बंगाल में पार्टी की बहुत सेवा की थी। विजयवर्गीय ने एक भी शब्द नहीं कहा और ऐसा लगता था जैसे अपने बेटे के असमर्थनीय कार्य का बचाव कर रहे हों। यह श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है, जिन्होंने कई दिन बाद घटना की आलोचना की और कहा कि ऐसी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। जहां आकाश तथा उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई की प्रतीक्षा की जा रही है, वहीं यह समय है कि वरिष्ठ नेता तत्परता से कार्य करते हुए शीघ्र कार्रवाई करें ताकि ऐसे व्यवहार को शुरू में ही दबा दिया जाए। 

सोशल मीडिया पर कई वीडियो
लेकिन जहां यह वीडियो क्लिप हैरान करने वाला था, वहीं सोशल मीडिया पर चल रहे कुछ अन्य वीडियो भी कुछ ऐसी घटनाएं दिखाते हैं जो बर्बरता से कम नहीं हैं। ऐसे ही एक क्लिप में स्थानीय नेताओं के एक समूह को सरकारी अधिकारियों तथा एक महिला कर्मचारी  पर छडिय़ों से हमला करते दिखाया गया है। वह वर्दी में थी और सम्भवत: वन विभाग की कर्मचारी थी। भीड़ से खुद को बचाने के लिए वह ट्रैक्टर के ऊपर से कूद गई लेकिन लोगों के सामने उसकी पिटाई की गई। बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी कलाई में एक सूक्ष्म फ्रैक्चर पाया गया। कोई नहीं जानता कि हमलावरों के साथ क्या हुआ या कौन-सा स्थान था जहां उस पर हमला किया गया। मुख्यधारा मीडिया आम तौर पर ऐसे मुद्दों का पीछा करने के अपने कत्र्तव्य में असफल रहता है। 

फिर एक अन्य वीडियो क्लिप चल रहा है, जो और भी दूषित है। इसमें लाठियों से लैस पुरुषों के एक समूह को दिखाया गया है, जो एक युवा लड़की पर हमला कर रहे हैं, जो सम्भवत: अपनी किशोरावस्था के अंतिम चरण में है। लगभग एक दर्जन ‘पुरुष’ उस पर लाठियों की बरसात कर रहे हैं और जब वह खुद को बचाने का प्रयास करती है तो उसे उठा देते हैं और वास्तव में उसके कपड़े उतार देते हैं। गुंडों की ऐसी अमानवीय हरकत पर हम केवल आंसू ही बहा सकते हैं, जो लड़की को इतनी निर्दयता से पीट सकते हैं। फिर कुछ ऐसे ‘पुरुष’ भी हैं जो दखल देने और उसे बचाने की बजाय पूरी घटना की फिल्म बनाने में व्यस्त थे। फिर यह उनके द्वारा घटना की फिल्म बनाने से ही सम्भव हो सका कि अन्य इस बर्बरतापूर्ण घटना के बारे में जान सके। हैरानी होती है कि कैसे ऐसे पुरुष इतने निर्दयी व्यक्तियों में बदल सकते हैं, जो मानव जाति के नाम पर एक धब्बा हैं। 

सरकार स्रोत का पता लगाए
इस वीडियो को भी रिकार्ड करने की कोई तिथि नहीं है और यह भी स्पष्ट नहीं कि इसे कहां बनाया गया। सरकार कम से कम इतना तो कर ही सकती है कि सोशल मीडिया कम्पनियों की मदद से इन वीडियोज का पता लगाए क्योंकि इसने सरकार तथा इसके नेताओं पर हमलों के मामलों में आदेश दिए हैं। ऐसे प्रावधान हैं जिनके अंतर्गत इन कम्पनियों को वीडियोज तथा मैसेज के स्रोत का पता लगाने के लिए कहा जा सकता है। 

मगर एक समाज होने के नाते हमें शॄमदा होने तथा ऐसे घृणित हमलों के कारणों के बारे में सोचने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि अतीत में ऐसे हमले नहीं होते थे लेकिन इससे एक ऐसे युग में हमलों को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता जिसमें हम बराबर अधिकारों की बात करते हैं और जहां हम चांद और उससे आगे जाने की आकांक्षा रखते हैं। हमारे नेता, राजनीतिक तथा सामाजिक दोनों, आगे आएं और दृढ़संकल्प के साथ इन मुद्दों को अपने हाथ में लें।-विपिन पब्बी
 

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