जिबूती में चीनी निवेश से क्यों चिंतित हैं अमरीका और फ्रांस

Edited By ,Updated: 09 Apr, 2019 04:32 AM

why are worried about chinese investment in djibouti usa and france

लाल सागर के नजदीक बसे देश जिबूती में ट्रेन से सफर करते वक्त मोबाइल की घंटियों के साथ ही स्थानीय भाषा सुनाई देती है। तभी पीली फ्राक में एक महिला सीट पर आकर बैठती है। उसकी टोकरी में कॉफी और चाय है। पहली नजर में जिबूती  रेलवे-अदीस अबाबा के बारे में कोई...

लाल सागर के नजदीक बसे देश जिबूती में ट्रेन से सफर करते वक्त मोबाइल की घंटियों के साथ ही स्थानीय भाषा सुनाई देती है। तभी पीली फ्राक में एक महिला सीट पर आकर बैठती है। उसकी टोकरी में कॉफी और चाय है। 

पहली नजर में जिबूती  रेलवे-अदीस अबाबा के बारे में कोई चीनी विशेषता नजर नहीं आती है लेकिन तभी आपकी नजर ट्रेन के चीनी चालक और डिब्बे में बैठे कुछ चीनी यात्रियों पर पड़ती है। जिबूती के वित्त मंत्री इलियास मूसा ने कहा कि वास्तव में यह सब चीन का प्रभाव है। चीन के भारी-भरकम लोन के बिना रेलवे वर्तमान स्थिति में नहीं रह सकता था-इसमें कोई संदेह नहीं कि जिबूती की अर्थव्यवस्था काफी हद तक चीन के उधार पर निर्भर है और यदि जिबूती रणनीतिक तौर पर इतना महत्वपूर्ण नहीं होता तो चीन उसमें रुचि नहीं लेता। उल्लेखनीय है कि स्वेज नहर, लाल सागर और ङ्क्षहद महासागर से आने-जाने वाले एक तिहाई जहाज  इस क्षेत्र के पास से होकर गुजरते हैं।

बैल्ट एंड रोड प्रोग्राम का हिस्सा
चीन का यह प्रोजैक्ट ‘बैल्ट एंड रोड’ कार्यक्रम का हिस्सा है जो उसकी आर्थिक और विदेश नीति को दर्शाता है तथा जिसके द्वारा वह वैश्विक सहयोगियों को संतुलन में रखना चाहता है। जिबूती और चीन के इस बढ़ते गठबंधन से पैरिस और वाशिंगटन चिंतित हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि चीन-अफ्रीका सहयोग के फलदायी परिणाम पूरे अफ्रीका में देखे जा सकते हैं जिससे  वहां के स्थानीय लोगों के जीवन में बदलाव आया है। इसके बाद जिबूती बड़े आधारभूत ढांचे का निर्माण करेगा जिसमें उसके अपने हित भी निहित हैं : इनमें दोरालेह मल्टीपर्पज बंदरगाह, दोरालेह कंटेनर टर्मिनल तथा जिबूती इंटरनैशनल इंडस्ट्रियल पाक्र्स आपे्रशन शामिल हैं। सबसे पहले चीन की सेना ने यहां पर सपोर्ट बेस स्थापित किया था। 

बेहद गरीबी
विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार  जिबूती के 79 प्रतिशत लोग गरीब हैं और 42 प्रतिशत अति गरीबी में रह रहे हैं। इस देश की जनसंख्या लगभग 10 लाख है और इनकी आजीविका का मुख्य साधन पशु पालन है। इस देश में मुख्य प्राकृतिक संसाधन नमक और जिप्सम हैैं तथा यह अपनी खाद्य आवश्यकताओं का 90 प्रतिशत भाग आयात के माध्यम से पूरा करता है। विशाल क्षेत्र में फैले इंटरनैशनल इंडस्ट्रियल पाक्र्स आप्रेशन क्षेत्र में लाल लालटेनें अभी भी लटकी हुई हैैं जो चीन के नववर्ष समारोह के दौरान मार्च में लगाई गई थीं। इस मुक्त व्यापार क्षेत्र का 10 प्रतिशत हिस्सा दलियान प्राधिकरण बंदरगाह के पास है जबकि चाइना मर्चैंट्स के पास 30 प्रतिशत हिस्सा है। 

जैसे-जैसे जिबूती का कर्ज बढ़ रहा है वैसे-वैसे उस पर चीनी पकड़ मजबूत होती जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, जिबूती का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद के 50 प्रतिशत से बढ़ कर 85 प्रतिशत हो गया है जिसमें अधिकतर हिस्सा चीन का है। दिसम्बर में आई.एम.एफ. ने गहरे कर्ज में फंसने पर जिबूती सरकार की आलोचना की थी। आई.एम.एफ. ने कहा था कि देश में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने का  जिबूती का विचार अच्छा है लेकिन  उस पर बढ़ रहे अत्यधिक कर्ज से वह संकट में फंस रहा है। 2018 के अंत में जिबूती का सार्वजनिक क्षेत्र का कर्ज उसकी जी.डी.पी. का लगभग 104 प्रतिशत था। उधर जिबूती सरकार का मानना है कि देश के विकास के लिए कर्ज की जरूरत है। इस बीच जिबूती के अधिकारी और सरकार चीन से और अधिक कर्ज लेने के लिए बातचीत जारी रखे हुए है। वह  अपने कर्ज को दोबारा वित्त पोषण करना चाहता है। 

जिबूती में चीन मुश्किल से एकमात्र ऐसा देश है जिसकी यहां सैन्य उपस्थिति है। अमरीकी-अफ्रीका कमान  लिमोनियर कैम्प में स्थित है जो अमरीका का अफ्रीका में एकमात्र स्थायी बेस है। जापानी, इतालवी और स्पेनिश भी यहां पर हैैं। फ्रांस का 1894 से यहां पर प्रभाव रहा है : आज जिसे जिबूती कहा जाता है वह किसी समय 1977 तक फ्रैंच सोमाली भूमि-एक उपनिवेश था। 

मैकरों का जिबूती दौरा
मार्च में जिबूती के दौरे पर आए फ्रांस के राष्ट्रपति मैकरों ने कहा था कि वह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। उन्होंने चीन पर अधिक निर्भरता के लिए जिबूती की आलोचना की थी और कहा था कि अल्प अवधि में जो अच्छा लगता है वह लम्बी अवधि में मुश्किल भी पैदा कर सकता है। मैकरों ने कहा था कि वह नहीं चाहेंगे कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों की नई पीढ़ी उनके पुराने सहयोगियों के क्षेत्र में अतिक्रमण करे। यही बात अमरीका भी कहता रहा है। राष्ट्रपति ट्रम्प के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने दिसम्बर में वाशिंगटन में अपने एक भाषण में कहा था कि चीन अफ्रीकी देशों पर अपनी इच्छा थोपने के लिए रिश्वत, समझौतों और कर्ज का सहारा लेता है।-निजार एम.

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