‘आप’ पंजाब में ताकत क्यों नहीं पकड़ सकी?

Edited By ,Updated: 15 Mar, 2017 11:24 PM

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तीन वर्ष पूर्व जब ‘आप’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव जीते थे तो यह डर  व्यक्त किया गया था

तीन वर्ष पूर्व जब ‘आप’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव जीते थे तो यह डर व्यक्त किया गया था कि क्या ‘आप’ एक छोटा-सा बुलबुला बन कर रह जाएगी या फिर लोगों के विश्वास पर खरी उतर भी सकेगी या नहीं? आज जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं, उनसे यही आभास मिलता है कि  ‘आप’ के नेता लोगों के भरोसे का सम्मान नहीं कर पाए। पंजाब की ओर से 2014 के चुनाव में मिले मान-सम्मान पर वे खरे नहीं उतर सके। 

उस समय पंजाब ने ‘आप’ की ओर से 4 सांसद जिताकर भेजे थे। ऐसा सौभाग्य ‘आप’ को देश के अन्य किसी हिस्से में हासिल नहीं हुआ लेकिन ‘आप’ इन चारों को भी एकजुट नहीं रख सकी और आज की तारीख में एक ही सांसद ‘आप’ से जुड़ा हुआ है और शेष तीन किसी भी समय एकजुट होकर ‘आप’ से झाड़ू का निशान छीन लेने की ताकत रखते हैं। 

‘आप’ के लिए यह कोई शर्म की बात नहीं कि वह पंजाब में दूसरे नम्बर पर आई है। हालांकि वह 100 सीटों पर जीतने की तैयारियां कस कर बैठी हुई थी। एक बात तो तय है कि पंजाब विधानसभा में विपक्ष का नेता ‘आप’ का ही कोई विधायक होगा। पंजाब की एक मात्र पंथक पार्टी शिरोमणि अकाली दल को पीछे छोड़ते हुए उसकी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा अपने साथ ले जाना ‘आप’ के लिए बहुत बड़ी बात है। लेकिन वास्तव में अकाली दल की पराजय ‘आप’ की ताकत नहीं बल्कि अकाली दल की अपनी कमजोरी  है कि वह इन सभी को अपनी ओर क्यों नहीं खींच पाई। एक वर्ष पूर्व ‘आप’ पंजाब में 100 सीटें हासिल करने की ताकत रखती थी। लेकिन एक साल बाद उसकी झोली में केवल 22 सीटें आई हैं। 

‘आप’ को गिराने के पीछे मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी भूख और अहंकार ही कार्यरत हैं। अरविंद केजरीवाल में इतना अहंकार आ गया कि उन्होंने न केवल पंजाब के सबसे बड़े ‘आप’ नेता को बाहर निकाल दिया बल्कि उनसे जुड़े हुए कार्यकत्र्ताओं को भी निराश किया। ‘आप’ को यह भ्रम हो गया कि अरविंद केजरीवाल ही ‘आप’ हैं और केजरीवाल के नाम पर कोई भी वोट मांग सकता है। 

वह बात-बात पर भाजपा को दोषी ठहराने लगे और काम करना ही छोड़ दिया। दिल्ली में कैग (सी.ए.जी.) की रिपोर्ट ने बताया कि आप ने सभी नियमों का उल्लंघन करके दिल्ली का पैसा पंजाब में अपनी पार्टी के प्रचार करने पर लगा दिया। विज्ञापनों  में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। दिल्ली तो ‘आप’ से निराश थी परंतु उन्होंने सोचा कि अब पंजाब पर कब्जा कर लिया जाए, फिर गुजरात और हिमाचल को 2019 में देख लेंगे। 

अपनी दिल्ली की जीत का अहंकार और केजरीवाल की प्रधानमंत्री बनने की भूख ही ‘आप’ को ले बैठी। अफसोस ‘आप’ पर नहीं बल्कि उन लोगों पर है जो इस विचारधारा से जुड़े हैं। भारतीय राजनीति में नई सोच की जरूरत थी कि ‘आप’ एक जन क्रांति में उपजी थी। आजादी के बाद यह आम इंसान की प्रथम क्रांति थी। अरविंद केजरीवाल की  महत्वाकांक्षा और अहंकार इस क्रांति को तबाह कर गए और अब पता नहीं कितने वर्षों बाद उसी तरह की क्रांति दोबारा  हो सकेगी। कौन अपना काम छोड़ कर फिर से किसी क्रांति का हिस्सा बनेगा? 

आज पंजाब में 30 प्रतिशत नौजवान वोटर हैं पर वोट देने के लिए 67 प्रतिशत लोग ही आए। यदि क्रांति हुई होती तो 80-90 प्रतिशत मतदान होता। यह पंजाब में क्रांति से निराशा की निशानी थी कि लोग घरों से वोट डालने के लिए बाहर ही नहीं आए और एक लाख ‘नोटा’ का इस्तेमाल किया गया। ‘आप’ के 25 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। इनका अहंकार ही था कि वे पंजाब में मीडिया के तथ्य आधारित सवालों के जवाब भी नहीं देते थे। छोटेपुर जैसे नेता के साथ भेदभाव, सोशल मीडिया पर गाली-गलौच करने की प्रथा अपनाई। पंजाब के पानी के मुद्दे पर राजनीति खेली, पंजाब में बाहर से  लाए हुए लोगों को सर्वोपरि रखा गया और पंजाबियों को जलील किया। 

पंजाबी मीडिया को नजरअंदाज किया गया और दिल्ली में भी पंजाबी भाषा को सम्मान नहीं दिया गया। 84 के दिल्ली दंगों की विधवाओं के साथ किए वायदे नहीं निभाए। अब ‘आप’ का आने वाले समय में क्या हश्र होगा, इस बारे कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि कुछ अच्छे और सच्चे लोग आज भी पार्टी में मौजूद हैं, पर ताकत इस समय महत्वाकांंक्षी और अहंकारी लोगों के हाथों में है।  

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