प्रवासी भारतीय और भारतवासी में भेदभाव क्यों

Edited By ,Updated: 08 Jan, 2022 06:33 AM

why discrimination between overseas indians and indians

लगभग दो दशक से भारत में 7 से 9 जनवरी तक विदेशों में बसे भारतीयों के लिए प्रवासी दिवस समारोह आयोजित किए जाते हैं। तब शायद सोच यह रही होगी कि जो प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी भी कारण

लगभग दो दशक से भारत में 7 से 9 जनवरी तक विदेशों में बसे भारतीयों के लिए प्रवासी दिवस समारोह आयोजित किए जाते हैं। तब शायद सोच यह रही होगी कि जो प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी भी कारण से विदेश चले गए और उन्होंने वहां अपना कारोबार, व्यवसाय जमा लिया या नौकरी कर ली, वे देश में आकर अपनी सूख गई जड़ों को सींचने के लिए वापस लौट आएं! यह तब भी दिन में सपने देखने जैसा था और आज तो बिल्कुल ही संभव नहीं है। 

वर्तमान दौर ने समय और स्थान की दूरियों को समेट दिया है। कोई कहीं से भी, कभी भी, कुछ ही घंटों का सफर कर आ सकता है और जा सकता है तो फिर क्यों अपने जमे जमाए काम और सुख से रह रहे परिवार को केवल अपने देश के प्रति प्यार के कारण यहां आएगा? एक सच यह भी है कि क्योंकि दुनिया बहुत छोटी हो गई है, इसलिए हमारे देश में जिस तरह से काम करने की सोच है,उसके बारे में जानकारी होने पर क्यों कोई आने की सोचेगा? 

कोई कहीं क्यों जाता है? : यह एक वास्तविकता है कि सम्राट अशोक से लेकर महात्मा गांधी तक और स्वतंत्र भारत में अनेक नोबेल पुरस्कार विजेता, अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक, उद्योगपति, कारोबारी और मूर्धन्य विद्वान,साहित्यकार तथा श्रमजीवी प्रवासी भारतीयों की श्रेणी में रहे हैं। कोई व्यक्ति अपना घर बार छोड़कर दूसरे देश में जाकर रहने, बसने और तरक्की करने के बारे में इसलिए सोचता है कि वहां अपनी योग्यता दिखाने के अधिक अवसर होते हैं जो उसे अपने देश में नहीं मिल रहे। इसके अलावा दूसरा कारण आधुनिक ज्ञान प्राप्त करने, धन लाभ और अपने व्यापार का विस्तार करने की बलवती इच्छा होना है। यह उसी तरह है जैसे कि पहले साम्राज्य विस्तार किया जाता था, उसी तर्ज पर अब होता है। 

इस परिस्थिति में विचार इस बात पर होना चाहिए कि विदेशों में अपनी प्रतिभा से उन देशों की प्रगति में अपना योगदान कर रहे व्यक्तियों को देश वापिस लौटने का सपना क्यों दिखाया जाए? हम उनके कार्यों से, उनके कभी भारतवासी होने पर, गर्व अनुभव कर सकते हैं, पर उन्हें अपना कहकर स्वयं को भुलावे में न रखें तो यही व्यावहारिक होगा ! भारत सरकार ने प्रवासी भारतीयों के लिए अलग से मंत्रालय भी बना रखा है जिसका काम यह देखना है कि यदि उन्हें जिस देश में वे रहते हैं, वहां कोई परेशानी हो या भारत में उन्हें कोई सहायता चाहिए तो एक रिलेशनशिप मैनेजर की तरह उनकी मदद की जा सके। 

अपनों से भेदभाव क्यों? : हमारी सरकार प्रवासी भारतीयों को भारत में आकर रहने, बसने, व्यापार करने, उद्योग लगाने तथा अन्य बहुत सी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए दिल खोलकर सुविधाएं देती है। यह एक तरह से समान प्रतिभा, योग्यता रखने वाले भारतीयों के साथ अन्याय ही है, मतलब उनके हिस्से का अधिकार उनसे छीनकर उन्हें दिया जाता है जो कभी भारत में जन्मे थे और समृद्ध भविष्य के लिए देश छोड़कर चले गए। हम यह क्यों नहीं सोचते कि यदि वे भारत आने के बारे में सोचते हैं तो उन्हें कोई विशेष अधिकार देना, टैक्स में रियायत देना, आर्थिक सुविधाआें में देशवासियों से अधिक प्राथमिकता देना हमारे अपने लोगों के साथ भेदभाव करना है। 

प्रवासी भारतीयों की समझ में भारत की चिंताएं, यहां की समस्याएं और यहां के रहन सहन के तरीके कभी नहीं आ सकते क्योंकि यह मानवीय प्रति है कि वह अपने को उस व्यवस्था में ढाल लेता है जहां उसकी रोजी-रोटी जुड़ी है। वे क्यों हमारे सांचे में अपने को ढालेंगे जबकि यह कठिन ही नहीं बल्कि एक दुष्कर कार्य है। यदि एेसा किसी भावना के वशीभूत होकर किया भी जाता है तो कुछ ही समय में निराशा होने लगती है क्योंकि दोनों ही अलग समाज में रहते आए हैं, उनकी आपस में पटरी बैठ ही नहीं सकती तो फिर किसलिए प्रवासी भारतीयों को भारत में आकर बसने का न्यौता दिया जाए। 

यह ठीक है कि वे यहां अपने पास बहुत अधिक पैसा होने से अनेक परियोजनाआें में निवेश कर सकते हैं पर इसके लिए देशवासियों के हितों की अनदेखी करने की क्या आवश्यकता है ? बराबरी के आधार पर उनके साथ व्यवहार करने में ही भलाई है और बुद्धिमानी भी क्योंकि तब वे अपना धन सुविधाआें के लालच में आकर निवेश नहीं करेंगे बल्कि हानि-लाभ के आधार पर करेंगे। वे अपने को सुपीरियर नहीं समझेंगे और कोई अनुचित मांग नहीं रख पाएंगे। 

वास्तविकता यह है कि ज्यादातर प्रवासी भारतीय यहां केवल सरकारी स्तर पर दी गई छूट और सुविधाआें का लाभ उठाने के लिए अपने बेकार पड़े और लॉकर में बंद पैसे को हवा लगाने के लिए भारत आते हैं ताकि वह तेजी से बढ़ सके और बाद में वे उसे वहां ले जा सकें जहां अब उनकी जड़ें जम चुकी हैं। 

प्रवासी भारतीयों को एक निवेशक के रूप में देखने की सोच का असर सही हो सकता है लेकिन इसके लिए इसलिए उन्हें सस्ती जमीन, ब्याज रहित ऋण तथा अन्य सुविधाएं दी जाएं, तो यह अनुचित ही नहीं बल्कि देशवासियों के साथ अन्याय भी है। जऱा सोचिए कि इतना कुछ उनके लिए करने पर भी उनका इंवैस्टमैंट करने का मन नहीं होता क्योंकि एेसा इसलिए है कि अब भारत उनका देश न होकर केवल एक सैलानी की तरह सैर सपाटे की जगह है। जरूरत इस बात की है कि प्रवासी भारतीयों को बराबरी, निष्पक्षता और व्यावहारिक सोच को आधार बनाकर भारत में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया जाए, केवल छूट और सुविधाओं के लालच में नहीं।-पूरन चंद सरीन
 

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