भारतीयों को मॉरीशस क्यों पसंद है

Edited By ,Updated: 13 Feb, 2023 05:01 AM

why indians love mauritius

अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण-पूर्व तट से लगभग 900 किलोमीटर दूर हिंद महासागर के तट पर और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित द्वीपीय देश मॉरीशस भारतीयों के लिए काफी आकर्षक स्थान है। अपने झील, झरनों, हरे भरे जंगलों व प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर मॉरीशस हर...

अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण-पूर्व तट से लगभग 900 किलोमीटर दूर हिंद महासागर के तट पर और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित द्वीपीय देश मॉरीशस भारतीयों के लिए काफी आकर्षक स्थान है। अपने झील, झरनों, हरे भरे जंगलों व प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर मॉरीशस हर नवविवाहित जोड़े के लिए बरसों से हनीमून मनाने का स्थान बना हुआ है। परंतु क्या आप जानते हैं कि इसके अलावा भी एक कारण है जिसके लिए मॉरीशस भारतीयों को बहुत प्रिय है। सुंदर पर्यटक स्थल होने के कारण मॉरीशस में केवल हनीमून मनाने वाले पर्यटक ही नहीं आते बल्कि ‘टैक्स हैवन’ के नाम से मशहूर इस छोटे से द्वीप पर हर उस व्यक्ति की नजर बनी रहती है जो किसी न किसी तरह से भारत में आयकर की चोरी करना चाहता है। 

चूंकि भारत और मॉरीशस के बीच हुए ‘दोहरे करारोपण संधि’ के तहत भारतीय कंपनियां मॉरीशस की किसी कंपनी से समझौता कर भारत में एफ.डी.आई. के द्वारा निवेश करवा लेती हैं। इस निवेश को निवेशकों की भाषा में ‘मॉरीशस रूट’ कहा जाता है। भारत में ‘मॉरीशस रूट’ के तहत हुए निवेश पर कोई टैक्स नहीं देना होता। ऐसा करने से वे सभी कंपनियां जो भारत में निवेश करवाती हैं कैपिटल गेन्स टैक्स देने से बच जाती हैं। कई वर्ष पहले इंटरनैशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवैस्टीगेटिव जर्नलिस्ट्स (आई.सी.आई.जे.) की एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कई कंपनियों ने 1982 में हुए इस संधि का दुरुपयोग किया है। इस समझौते के मुताबिक भारतीय कंपनियों को मॉरीशस में टैक्स रैजीडैंसी की सुविधा मिल जाती है। 

जिस कारण वे  जीरो कैपिटल गेन्स वाली श्रेणी में आ जाती थीं। ज़ाहिर सी बात है कि ‘मॉरीशस रूट’ से अपना ही पैसा घुमा कर ये कंपनियां अपना निवेश वापिस भारत में ले आती हैं। इसी के चलते देश को करोड़ों के टैक्स का चूना लग जाता है। जबकि इस टैक्स के पैसे को देश के विकास कार्यों में लगाया जा सकता था। पर ऐसा नहीं हो रहा। ‘मॉरीशस रूट’ हो या किसी अन्य ‘टैक्स हैवन’ देश से आने वाला निवेश, हमारे देश में ऐसा काफी बड़ी मात्रा में हो रहा है। देश की कई नामी कंपनियां ऐसा कई बरसों से कर रही हैं। नियमों में इस कमी का फायदा उठा कर ये लोग टैक्स चोरी कर देश में होने वाले विकास को पीछे धकेल रहे हैं। आम आदमी को सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं समय पर नहीं दी जातीं तो इसके पीछे टैक्स में होने वाली चोरी ही मुख्य कारण होता है। सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की, विकास कार्र्यों और सरकारी कर्मचारियों के वेतन के भुगतान के लिए टैक्स पर ही निर्भर करती है। यदि टैक्स में कमी आती है तो विकास कार्र्यों में भी बाधा आएगी। 

‘मॉरीशस रूट’ से आने वाले निवेश केवल एफ.डी.आई. के जरिए ही नहीं होते। उद्योगपतियों के अलावा भ्रष्ट नेता व अफसर भी इसका फायदा उठाते हैं। ये लोग भ्रष्टाचार के द्वारा कमाए गए अपने काले धन को हवाला के जरिए विदेशों में स्थित मॉरीशस जैसे ‘टैक्स हैवन’ देशों में भेजते हैं। वहां पर कुछ शैल  कंपनियों की मदद से उसी पैसे को कुछ चुङ्क्षनदा कंपनियों के शेयरों को मनमाने दाम पर खरीदवाते हैं। भारत की कंपनियों के शेयरों का बढ़े हुए दाम पर बिकना शेयर मार्कीट में अच्छा माना जाता है। यदि ऐसा नियमों के दायरों में हो तो यह सही होता है। परंतु ‘मॉरीशस रूट’ से होने वाले ऐसे निवेश नियम कानून की धज्जियां उड़ा कर होते हैं। जैसे ही किसी कंपनी के शेयर का दाम बढ़ता है, देश के भोले-भाले छोटे व मध्यम निवेशक भी मुनाफा कमाने की नियत से इसमें निवेश करते हैं। परंतु असल में उस कंपनी के शेयर की असल कीमत इससे काफी कम होती है। 

मिसाल के तौर पर देश के एक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे की एक ठंडी पड़ी कंपनी के 10 रुपए प्रति शेयर को देश के एक भगौड़े ने 96,000 रुपए  प्रति शेयर पर खरीदा। आरोप है कि ये अपने ही काले धन को घुमाकर किया गया। इसकी जांच के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई। कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस देकर इसकी जांच के आदेश भी दिए परंतु जांच को लंबा खींचने और ढुलमुल रवैये अपनाने से इस मामले की जड़ तक नहीं पहुंचा जा सका। जाहिर है कि ऐसा होने पर लोगों का जांच एजैंसियों पर से भरोसा भी डगमगाने लगता है। इसलिए जब भी कभी ऐसा विवाद खड़ा हो तो मामले की सघन जांच होना जरूरी हो जाता है। 

ऐसे में अपनी ‘योग्यता’ के लिए प्रसिद्ध देश की प्रमुख जांच एजैंसियां शक के घेरे में आ जाती हैं। इन एजैंसियों पर विपक्ष द्वारा लगाए गए ‘गलत इस्तेमाल’ के आरोप सही लगते हैं। मामला चाहे छोटे घोटाले का हो या बड़े घोटाले का, एक ही अपराध के लिए दो मापदंड कैसे हो सकते हैं? यदि देश का आम आदमी या किसान बैंक द्वारा लिए गए ऋण चुकाने में असमर्थ होता है तो बैंक की शिकायत पर पुलिस या जांच एजैंसियां तुरंत कड़ी कार्रवाई करती हैं। उसकी दयनीय दशा की परवाह न करके कुर्की तक कर डालती हैं। परंतु बड़े घोटालेबाजों के साथ ऐसी सख्ती क्यों नहीं बरती जाती? घोटालों की जांच कर रही एजैंसियों का निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है।-विनीत नारायण

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