सेवा करने के लिए ‘कुर्सी’ ही जरूरी क्यों

Edited By Updated: 09 Dec, 2021 04:48 AM

why is the  chair  necessary to serve

हमारे देश की बहुत बड़ी त्रासदी है कि हमारे देश के लगभग सभी नेता जनता की सेवा करना चाहते हैं लेकिन बेचारे कर नहीं पाते क्योंकि बीच में कुर्सी की समस्या आ जाती है। कुर्सी से मतलब उनको कोई न कोई पदभार चाहिए, जैसे चेयरमैनशिप, मंत्री पद, मुख्यमंत्री पद...

हमारे देश की बहुत बड़ी त्रासदी है कि हमारे देश के लगभग सभी नेता जनता की सेवा करना चाहते हैं लेकिन बेचारे कर नहीं पाते क्योंकि बीच में कुर्सी की समस्या आ जाती है। कुर्सी से मतलब उनको कोई न कोई पदभार चाहिए, जैसे चेयरमैनशिप, मंत्री पद, मुख्यमंत्री पद या कोई प्रधानगी वाला ओहदा, जहां उनको सरकारी फंड बांटने व खर्च करने का अधिकार मिल सके। तभी उनकी जनसेवा वाली भावना के सामने वाला अवरोध हट सकता है। बिना किसी पद के वे ऐसे मजबूर हो जाते हैं जैसे ‘शोले’ में ठाकुर अपने सामने जमीन पर पड़ी बन्दूक नहीं उठा सकता था क्योंकि अपने दोनों हाथ कटे होने की वजह से वो मजबूर था। 

विगत दिनों नवजोत सिंह सिद्धू ने एक प्रैस कॉन्फ्रैंस के दौरान एक बयान दिया कि वह पहले 40 करोड़ कमाते थे, अब चालीस हजार कमा रहे हैं लेकिन 40 हजार भी उनके लिए 4 लाख करोड़ से बढ़ कर हैं क्योंकि वह पंजाब की जनता की सेवा के लिए मिल रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब की औरतें स्वाभिमानी हैं, वे केजरीवाल के दिए 1000 रुपए की खैरात कभी स्वीकार नही करेंगी। अगर उनकी पत्नी को हजार रुपए मिले तो वह उनको वापस फैंक देंगी। 

उन्होंने केजरीवाल से सवाल भी किया कि वह दिल्ली की महिलाओं को 1000 रुपए प्रतिमाह क्यों नहीं दे रहे। क्या वह पंजाब में केवल चुनाव जीतने के लिए ही ऐसे लुभावने वादे कर रहे हैं? साथ ही उन्होंने पूछा कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा, खजाना तो पहले से ही खाली है। जबसे पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी है तबसे सिद्धू भी इस सरकार का हिस्सा रहे हैं, लेकिन वह कभी अपनों से तो कभी विरोधियों से ही उलझे रहे और पंजाब की समस्याओं को हल करने पर कभी ध्यान नहीं दिया क्योंकि उनके पास ‘कुर्सी’ नहीं थी। जिस कुर्सी की उन्हें आस थी, वह चन्नी के पास चली गई। 

कुर्सी मिलते ही चन्नी जी जनता की धड़ाधड़ ‘सेवा’ किए जा रहे हैं क्योंकि शायद वह जानते हैं कि इस ‘बसन्त’ की ऋतु बहुत छोटी है। शायद फिर कभी मौका मिले या न मिले। इसलिए जनता की जितनी सेवा कर सकते हैं कर ली जाए। जगह-जगह बड़े बड़े बैनर लगा कर यह स्लोगन भी हाई लाइट किया जा रहा है :

घर घर दे विच चल्ली गल्ल
चन्नी करदा मसले हल’

बादल परिवार भी जनता की सेवा का मौका ढूंढ रहा है। योगी जी, अखिलेश यादव, मायावती जी, लालू जी, अर्थात हमारे देश में जितने भी नेता हैं, सभी जनता की जी-जान से सेवा करना चाहते हैं। इनमें से कई करोड़पति या अरबपति भी हैं। ये अपने पैसों से सेवा नहीं करना चाहते, बल्कि सरकारी खजाने से ही हम सबकी सेवा करना चाहते हैं। इसके लिए इनको अच्छा सरकारी ‘पद’ चाहिए। ये लोग हमारी सेवा के इतने शौकीन हैं कि चुनाव लडऩे के लिए लाखों करोड़ों पानी की तरह बहा देते हैं। 

इनका तो एक ही मकसद है कि गरीब जनता का जीवन स्तर ‘ऊंचा’ उठा दिया जाए। मिडल क्लास को नौकरियां दे दी जाएं। गांवों को शहरों जैसा और शहरों को विदेशों जैसा खूबसूरत बना दिया जाए। यह अलग बात है कि शहरों में मूलभूत सुविधाओं तक का बेड़ा गर्क हुआ पड़ा है। ज्यादातर सड़कें टूटी हुई हैं, कहीं पानी की समस्या है, कहीं ट्रैफिक की, कहीं सांस लेने के लिए शुद्ध हवा नहीं मिल पा रही। कहीं सीवरेज जाम हो रहा है, कहीं बिजली की समस्या है। शहर चाहे सुंदर बन पाए या नहीं, लेकिन इनके घर जरूर विदेशी घरों जैसे खूबसूरत बन गए हैं और हर लग्जरी आइटम्स व सुविधाओं से सुसज्जित हैं। 

आम जनता की जीवन-यापन वाली गाड़ी चाहे खटारा हालत में चल रही हो, लेकिन इनकी सेवा में दो-चार गाडिय़ां हरदम तैयार रहती हैं। रहें भी क्यों न, आखिर इनके बिना हमारा भी गुजारा कहां है। कोई भी समस्या हो, हम लोग उसका समाधान करवाने के लिए पहले इनके पास ही भागते हैं। जब इनके पास ‘सत्ता’ होगी तभी ये लोग ठीक से हमारी समस्या का ‘समाधान’ कर पाएंगे। 

अब न शहीद-ए-आजम भगत सिंह जैसे आजादी के परवाने बचे हैं, जो देश के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम कर मौत को गले लगा लेते थे, न रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाएं हैं, जो मात्र 29 वर्ष की आयु में अपनी झांसी को बचाने के लिए अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांध कर अंग्रेजों की विशाल सेना से अकेली भिड़ गई थी। 

न ही महात्मा गांधी जैसे लोग हैं, जिन्होंने सिर्फ दो कपड़ों में अंग्रेज सरकार की नींव तक हिला दी और उनको एक दिन भारत छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा था। इन लोगों को सेवा करने के लिए किसी पद की आवश्यकता नहीं पड़ी, न ही सिक्योरिटी, बंगले और बड़ी-बड़ी गाडिय़ों की, लेकिन दुख की बात है कि इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर हमारे नेता जनता से वोट मांगते हैं और सत्ता मिलने पर खुद ‘राजसी’ जिन्दगी जीते हैं। कोई विरला ही इन सब का अपवाद होता है। 

हम सबको चाहिए कि हम हर 5 साल बाद इनमें से किसी न किसी को हमारी सेवा करने का मौका देते रहें। ये हमारी समस्याएं ‘हल’ करते रहें और देश ‘तरक्की’ की राह पर चलता रहे, इसके अलावा हम लोग और कर भी क्या सकते हैं।-सतीश गिरधर

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