पाक चुनाव में महिला उम्मीदवारों की हुंकार

Edited By Pardeep,Updated: 12 Jul, 2018 04:23 AM

womens candidates hunker in pak elections

पाकिस्तान के चुनावों में महिला उम्मीदवारों की बढ़ी संख्या ने चुनावी माहौल को पूरी तरह से रोचक बना दिया है। पाकिस्तानी आम चुनाव के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब महिला उम्मीदवार भारी संख्या में भाग ले रही हैं। 2 सप्ताह बाद यानी 25 जुलाई को...

पाकिस्तान के चुनावों में महिला उम्मीदवारों की बढ़ी संख्या ने चुनावी माहौल को पूरी तरह से रोचक बना दिया है। पाकिस्तानी आम चुनाव के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब महिला उम्मीदवार भारी संख्या में भाग ले रही हैं। 2 सप्ताह बाद यानी 25 जुलाई को पाकिस्तान के सभी प्रांतीय और 272 संसदीय सीटों पर एक साथ मतदान होना है। 

महिला उम्मीदवारों की भागीदारी का एक कारण यह भी है कि इस बार बड़े नेता चुनाव से बाहर हैं। भ्रष्टाचार में संलिप्तता के चलते पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) प्रमुख नवाज शरीफ  के चुनाव लडऩे पर रोक लग गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके आजीवन चुनाव लडऩे पर पाबंदी लगा दी है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रह चुके परवेज मुशर्रफ  जैसे नेता भी इस बार के आम चुनाव से नदारद हैं। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है चुनावी बुखार बढ़ता जा रहा है। पूरा पाकिस्तान चुनावी रंग में रंगा हुआ है। हर चुनावी रैली में महिलाएं प्रचार कर रही हैं। पुरुषों के मुकाबले उनकी रैलियों में भीड़ भी ज्यादा जुट रही है। ऐसा लगता है कि भुट्टो के बाद पाक सियासत में महिलाओं की शून्यता को अब भरने का मन बना लिया गया है। 

ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तानी सियासत में महिलाओं का दखल न रहा हो। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की कभी तूती बोलती थी। कभी मुल्क की राजनीति उनकी मुट्ठी में होती थी। लेकिन सन् 2007 में उनकी रावलपिंडी में एक चुनावी सभा में हत्या हो जाने के बाद वहां की राजनीति में महिला सियासत में खालीपन आ गया था  लेकिन वह भरपाई आज की महिलाएं कर रही हैं। भारत के नक्शेकदम पर पाकिस्तान में भी पिछले कुछ सालों से वहां की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। 2 साल पहले मुल्क में हुए निकाय चुनाव में भी काफी संख्या में महिलाओं ने चुनाव में जीत दर्ज की थी जिसने पाकिस्तानी महिलाओं में जोश भर दिया था। यही वजह है कि इस बार आम चुनाव के इतिहास में पहली बार बड़ी संख्या में महिला प्रत्याशी मैदान में हैं। पाकिस्तान नैशनल असैंबली की 272 सामान्य सीटों पर 175 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं। 

एक समय था जब पाकिस्तानी सियासत में महिलाओं का दखल अछूता माना जाता था लेकिन आतंक पोषित देश में इस बार के चुनाव में जिस तरह से महिलाओं ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया है वह वाकई में काबिले तारीफ है। यह उन इस्लामिक देशों के लिए बेहतरीन उदाहरण साबित हो सकता है जहां महिलाएं आज भी वहां की राजनीति से खुद को दूर रखती हैं। पाक के संसदीय चुनाव में बॉलीवुड कलाकार शाहरुख की चचेरी बहन नूर जहां भी चुनावी अखाड़े में हैं। सूत्र बताते हैं उनके चुनाव प्रचार में शाहरुख खान पहुंचने वाले हैं। नूर खैबर पख्तूनख्वा की असैंबली सीट पी.के.-77 से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उनके अलावा एक महिला उम्मीदवार ऐसी सीट से चुनाव लड़ रही हैं जहां कभी महिलाओं को मतदान करने की भी इजाजत नहीं थी। उस महिला उम्मीदवार का नाम हमीदा रशीद है। वह पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी से चुनाव लड़ रही हैं। 

किसी एक पार्टी ने नहीं बल्कि इस बार चुनाव लड़ रही सभी पाॢटयों ने महिलाओं को टिकट दिया है। इसे बदलाव की बयार ही कहेंगे कि सिंध सीट से हिंदू महिला उम्मीदवार भी चुनाव में ताल ठोंक रही हैं। मौजूदा 2018 के आम चुनाव में इस बार 105 महिला उम्मीदवार विभिन्न दलों से उम्मीदवार बनाई गई हैं जबकि 70 महिला प्रत्याशी बतौर निर्दलीय चुनावी अखाड़े में हैं। सबसे अव्वल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी है जिसने सबसे ज्यादा 19 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतारा है। इनमें से 11 पंजाब से, 5 सिंध से और खैबर पख्तूनख्वा से 3 को प्रत्याशी बनाया गया है। पाकिस्तान का लोकतंत्र मुल्क के गठन के बाद से ही संगीनों के साए में कैद रहा है पर अब हालात बदलते दिखाई देने लगे हैं। पाकिस्तान के सियासतदान महिला सशक्तिकरण से वाकिफ  हो चुके हैं। उनको भी लगने लगा है कि बिना महिलाओं के अब उनकी नैया पार नहीं होने वाली। 

पाकिस्तान के मौजूदा संसदीय चुनाव में अपनी भागीदारी के जरिए वहां की महिलाएं बंदिशों की बेडिय़ां तोडऩे का काम कर रही हैं। चुनाव लड़ रहीं 175 महिला उम्मीदवारों में से अगर 50 प्रतिशत भी जीत दर्ज कर लेती हैं तो पाकिस्तान में अलग फिजा बहेगी। पाकिस्तान के पुरुष राजनेताओं की मूल समस्या भारत को लेकर रही है। उन्होंने हमेशा दोनों मुल्कों की अवाम में नफरत व जहर भरने का काम किया है। पाकिस्तान में महिला सशक्तिकरण की जब भी बात की जाती है, तब सिर्फ राजनीतिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर चर्चा होती है, पर सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा नहीं होती। 

ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान में महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है। उन्हें सिर्फ  पुरुषों से ही नहीं बल्कि जातीय संरचना में भी सबसे पीछे रखा गया है। इन परिस्थितियों में उन्हें राजनीतिक एवं आॢथक रूप से सशक्त करने की बात अब तक बेमानी रही है। यह बात दीगर है कि भले ही पाकिस्तानी महिलाओं को कई कानूनी अधिकार मिल चुके हों लेकिन जब तक वे राजनीतिक रूप से सशक्त नहीं होंगी, उनका कल्याण नहीं होने वाला। पाकिस्तान में महिलाओं का जब तक सामाजिक व राजनीतिक तौर पर सशक्तिकरण नहीं होगा, तब तक वे अपने कानूनी अधिकारों का समुचित उपयोग नहीं कर सकेंगी। यह अच्छा मौका है उनके लिए। महिलाओं की खराब स्थिति को लेकर हालिया प्रकाशित पीस रिसर्च इंस्टीच्यूट ऑफ ओस्लो की रिपोर्ट के मुताबिक 153 देशों में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की आधी आबादी की दयनीयता चौथे स्थान पर है। 

रिपोर्ट में पाक महिलाओं की न्याय, सुरक्षा, समावेश और वित्तीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है। इन विषम परिस्थितियों के बावजूद पाकिस्तान के आम चुनाव में महिला उम्मीदवारों की मौजूदगी मुल्क में आशा की किरण जैसी है। अंतत: पाकिस्तानी महिलाओं ने अब इस बात को समझना शुरू कर दिया है कि उनके वास्तविक सशक्तिकरण के लिए शिक्षा एक कारगर हथियार है। विगत कुछ वर्षों में शिक्षा को अपनी प्राथमिकता सूची में पहले स्थान पर रखने वाली पाक महिलाओं का स्पष्ट कहना है कि शिक्षा में ही उनका विकास निहित है। हम उम्मीद करेंगे कि चुनाव परिणाम पाक महिला उम्मीदवारों के पक्ष में हों।-रमेश ठाकुर

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!