नौजवान हैं राष्ट्र की असली धरोहर

Edited By Updated: 12 Feb, 2022 05:57 AM

youth are the real heritage of the nation

ऐसी उच्च कोटि की विचारधारा के मालिक कोई और नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों की प्रतिमूर्ति स्वामी विवेकानंद जी हैं। स्वामी जी वे युग पुरुष हैं जिन्होंने पूरे विश्व के नौजवानों

ऐसी उच्च कोटि की विचारधारा के मालिक कोई और नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों की प्रतिमूर्ति स्वामी विवेकानंद जी हैं। स्वामी जी वे युग पुरुष हैं जिन्होंने पूरे विश्व के नौजवानों की युवा शक्ति को हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की तरफ प्रेरित किया है। ऐसे युग पुरुष का जन्म संसार के कल्याण के लिए ही होता है। असली मायने में स्वामी जी भारत की वह धरोहर थे, जिसने अपने उच्च आदर्शों से हमेशा दुनिया के नौजवानों का मार्ग दर्शन करके उन्हें उच्च आदर्शों एवं संस्कारों का पाठ पढ़ाया। 

नौजवानों के उत्साह वर्धन के लिए भारत सरकार ने सन 1984 ई. में यह घोषणा की, कि प्रति वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाए, स्वामी जी का मानना था कि नौजवान ही देश की वह ऊर्जा है, जो पूरी दुनिया में प्रकाशित होकर अपने देश का परिचय देती है। 

इसका सटीक उदाहरण स्वयं स्वामी विवेकानंद जी हैं, जिन्होंने 11 सितंबर सन 1893 ई. में, अमरीका के शिकागो में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय धर्म स मेलन में अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए, राष्ट्र की संस्कृति और स यता का जो परिचय दिया वह सबके लिए अकल्पनीय अचिंतनीय और सर्वश्रेष्ठ था। भारत के इतिहास में यह दिन बड़े गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गया। 

स्वामी जी स्वयं ऐसे नौजवान थे, जिन्होंने हमेशा ही नौजवानों को राष्ट्रभक्ति की तरफ, राष्ट्र संस्कृति की तरफ और अपनी सभ्यता की ओर प्रेरित किया है। स्वामी जी अपने राष्ट्र में प्रत्येक नौजवान को चारित्रिक मूल्यों से युक्त एवं उच्च कोटि के नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण देखना चाहते थे, विवेकानंद जी का चिंतन था कि युवा-सादगी, प्रेम, दया, विनम्रता, सत्य, त्याग, अहिंसा एवं पुरुषार्थ का वह स्वरूप है जो पूरे विश्वभर में ‘वसुधैव कुटु बकम्’ की भावना उत्पन्न कर सकता है। 

स्वामी जी का चिंतन था कि ‘उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए’ किंतु दुख यह है कि उस महान दार्शनिक, उच्च आदर्श की खान, संत परंपरा के संवाहक युगपुरुष के चिंतन को आज के नौजवान धूमिल करते जा रहे हैं, नौजवान, आज पाश्चात्य संस्कृति के अंधकार में डूबता जा रहा है। आज का नौजवान निराशा, भ्रष्टाचार और चरित्र हीनता जैसे कुमार्गों पर चलकर अपने आप को मिटाता जा रहा है और वर्तमान समय में नौजवान राष्ट्र रक्षक की जगह राष्ट्र भक्षक बनता नजर आ रहा है। वह विवेकानंद जी के विचारों और सिद्धांतों से कोसों दूर जा चुका है। ऐसे में सभी शिक्षण संस्थाओं, बड़े बुजुर्गों तथा अभिभावकों की अपने राष्ट्र के प्रति महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का समय आ गया है। 

राष्ट्र के नौजवानों को जागृत करके उन्हें राष्ट्र के प्रति अपनी जि मेदारियों से अवगत करवाकर राष्ट्र के भविष्य को सुरक्षित बनाएं, साथ ही आज के नौजवानों को भी स्वयं जागरूक होने की आवश्यकता है। विवेकानंद जी को अपना प्रेरणास्रोत मानकर उनके आदर्शों एवं विचारों को अपने जीवन में उतारें क्योंकि इस युवा संन्यासी के उच्च आदर्श, विचार ही हमारे राष्ट्र की संस्कृति और स यता को बचा सकते हैं। 

आज के नौजवान स्वयं आत्ममंथन करें और अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित हो जाएं, किसी भी राष्ट्र की युवा शक्ति उस राष्ट्र के वर्तमान का निर्माण करती है और भविष्य के लिए एक सुखद मार्ग तैयार करती है, नौजवान पीढ़ी को अपने राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी में एक अहम भूमिका निभानी चाहिए, हम सिर्फ राजनेताओं या नीति निर्माताओं पर ही निर्भर न रहें बल्कि स्वयं राष्ट्र के सर्वमुखी विकास के लिए हमेशा तत्पर रहें। 

शासन और समाज के साथ मिलकर काम करने वाला नौजवान राष्ट्र का वर्तमान और भविष्य दोनों का ही निर्माण करता है। आने वाली पीढ़ी के भाग्य का फैसला इन्हीं नौजवानों के हाथों में होता है इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि नौजवानों को अपने राष्ट्र के प्रति सकारात्मक सोच रखकर आगे आना चाहिए तथा स्वतंत्र रूप से अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए, जिससे कि विश्वभर में हमारी संस्कृति, स यता तथा उच्च आदर्शों का परचम लहराए और हमारा राष्ट्र फिर से विश्व गुरु बनने का अवसर प्राप्त कर सके।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा

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