उर्वरक कारोबार बेचेगा बिड़ला समूह!

Edited By ,Updated: 30 Aug, 2016 03:44 PM

aditya birla aditya birla nuvo

आदित्य बिड़ला समूह अपनी 2 कंपनियों ग्रासिम और आदित्य बिड़ला नूवो के विलय के बाद भारत और विदेशी बाजार में कम मार्जिन वाले कारोबार से बाहर निकलने की योजना बना रहा है।

मुंबईः आदित्य बिड़ला समूह अपनी 2 कंपनियों ग्रासिम और आदित्य बिड़ला नूवो के विलय के बाद भारत और विदेशी बाजार में कम मार्जिन वाले कारोबार से बाहर निकलने की योजना बना रहा है। इसके तहत समूह ने उर्वरक कारोबार को बिक्री के लिए चिहिन्‍त किया है। वित्त वर्ष 2016 में इस कारोबार की आय 2,498 करोड़ रुपए रही थी। इस कारोबार का परिचालन फिलहाल आदित्य बिड़ला नूवो की सहायक इकाई इंडो-गल्फ फर्टिलाइजर्स द्वारा किया जा रहा है।

 

बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक उर्वरक कारोबार को बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और नूवो तथा ग्रासिम का विलय होने के बाद अगले वित्त वर्ष में इसकी बिक्री पूरी हो जाएगी। इस बिक्री से विलय के बाद बनने वाली इकाई को अपनी सहायक कंपनी के मूल्यांकन का पता लगाने और नए कृषि कारोबार की खातिर रकम जुटाने में मदद मिलेगी। इस कारोबार का  मूल्यांकन करीब 5,000 करोड़ रुपए हो सकता है। हालांकि इस बारे में जब बिड़ला समूह के प्रवक्ता से संपर्क किया गया तो उन्होंने उर्वरक कारोबार की बिक्री से इनकार किया। 

 

इंडो-गल्फ फर्टिलाइजर्स भारत की आठवीं सबसे बड़ी यूरिया विनिर्माता है और वित्त वर्ष 2016 में उसे 209 करोड़ रुपए का एबिटा प्राप्त हुआ था जबकि 2015 में उसे 148 करोड़ रुपए का लाभ हुआ था। हाल ही में टाटा केमिकल्स ने भी अपने उर्वरक कारोबार को नॉर्वे की यारा केमिकल्स को 2,670 करोड़ रुपए में बेचा है। सूत्रों ने कहा कि विलय के बाद गठित इकाई कुछ अन्य कारोबार, जिनका मार्जिन कम है और जो विकास करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, उन्हें बेच सकती है।

 

इस साल अप्रैल की शुरूत में समूह की कंपनी हिंडाल्को ने अपनी ऑस्ट्रेलियाई खनन इकाई को मेटल एक्स को बेचने की घोषणा की थी। हाल ही में मीडिया में खबर आई थी कि बिड़ला घाटे में चल रहे मोर ब्रांड के रिटेल स्टोर को भी किशोर बियाणी के फ्यूचर समूह को बेच सकते हैं। उद्योग जगत के विश्लेषकों का कहना है कि बड़े कारोबारी घराने भारत में उर्वरक कारोबार से बाहर निकल रहे हैं क्योंकि यूरिया कीमतों पर सरकार का नियंत्रण है, जिससे विकास प्रभावित हो रहा है। हालांकि उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य में कमी की भरपाई सरकार द्वारा सब्सिडी के जरिए की जाती है लेकिन भारतीय कंपनियों की शिकायत रही है कि सब्सिडी का भुगतान लंबे अंतराल पर किया जाता है, जिससे कंपनियों का पैसा फंस जाता है। इसके अलावा, उर्वरक क्षेत्र में मंदी का भी रुख बना हुआ है।

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