नोटबंदी के निर्णय ने भारत को महामंदी से बचाया

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Sep, 2017 12:49 PM

decision making decision saved india from the great depression

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवम्बर, 2016 को विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी की घोषणा की थी।

मुम्बई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवम्बर, 2016 को विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी की घोषणा की थी। नोटबंदी के बाद जी.डी.पी. की गिरावट और विनिर्माण क्षेत्रों में मंदी के सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन वास्तविक तथ्य यह है कि नोटबंदी के निर्णय ने भारत को बड़ी मुसीबत से बचा लिया है। नोटबंदी का जो उद्देश्य था उसमें वह सफल साबित हो रहा है। इन सब सवालों के बीच सच्चाई यह है कि जी.डी.पी. गिरावट और औद्योगिक उत्पादन को लेकर जितनी भी नकारात्मक बातें की जा रही हैं वह भी अस्थायी हैं।

देश के जाने-माने अर्थशास्त्री अनिल बोकिल ने कहा कि देश में ‘कैश बब्बल’ था और अगर नोटबंदी न होती तो भारत भी अमरीका की तरह 2008 जैसी मंदी का शिकार हो सकता था। बोकिल के अनुसार नोटबंदी से पहले कम टैक्स कलैक्शन होता था जिस कारण सरकार को ज्यादा नोट छापने पड़ते थे और उसकी वजह से देश में कैश का ढेर हो गया था। हर ट्रांजैक्शंस के लिए कैश चल रहा था, जिसका अंजाम बुरा हो सकता था।

जाली नोटों से मुक्ति दिलाएगी नोटबंदी
अर्थक्रांति नाम से एक ङ्क्षथक टैंक चलाने वाले अनिल बोकिल ने कहा कि नोटबंदी जरूरी थी क्योंकि भारतीय रुपया नकली नोटों की वजह से बर्बाद हो रहा था। जो भी किया गया वह इकोनामी को बचाने के लिए किया गया। यह केवल ब्लैक मनी तक सीमित नहीं था, इसके और भी कई आयाम थे। रिजर्व बैंक के अनुसार 500 रुपए के बंद हुए हर 10 लाख नोटों में औसत 7 नोट नकली थे और 1000 रुपए के बंद हुए हर 10 लाख नोटों में औसत 19 नोट नकली थे।
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2008 में अमरीका में छाई थी मंदी
2008 में अमरीका में आई महामंदी के कारण प्रमुख व्यवसायों की विफलता, ट्रिलियन अमरीकी डालरों में अनुमानित उपभोक्ता संपत्ति में कमी, सरकारों द्वारा पर्याप्त वित्तीय प्रतिबद्धताएं और आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई थी। वर्ष 2008 की शुरुआत में जी.डी.पी. के नकारात्मक आंकड़ों ने अमरीकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी। अमरीका में होम लोन और मॉर्गेज लोन न चुका पाने वाले ग्राहकों की संख्या बढ़ती चली गई थी, जिससे लेहमैन ब्रदर्स, मेरीङलिंच बैंक ऑफ  अमरीका जैसी वित्तीय संस्थाएं तरलता के अभाव में आ गई थीं। अमरीकी सरकार के बैलआऊट पैकेज भी इस अभाव को कम नहीं कर पाए और देखते ही देखते अमरीका में 63 बैंकों में ताले लग गए थे।

इंडियन इकोनॉमी पर पड़ा था असर
अमरीकी मंदी का असर भारत सहित पूरे विश्व पर हुआ लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह असर शेयर बाजार, इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट, आऊटसोॄसग बिजनैस पर ही ज्यादा दिखाई दिया था। एक समय 21,000 के स्तर पर चल रहा सैंसेक्स मार्च 2009 तक 8000 के स्तर पर आ गया था, यानी डाऊ जोंस के गिरने से सैंसेक्स में भी 60 प्रतिशत तक की गिरावट हुई। कमोबेश यही स्थिति नोटबंदी से पहले उत्पन्न हो रही थी जिसे मोदी सरकार ने भांप लिया और समय रहते कदम उठा लिया।

1929-39 में आई थी महामंदी
 इतिहास में महामंदी या भीषण मंदी (द ग्रेट डिप्रैशन 1929-39) के नाम से जानी जाने वाली घटना एक विश्वव्यापी आॢथक मंदी की थी। यह वर्ष 1929 में शुरू हुई और 1939-40 तक जारी रही थी। विश्व के आधुनिक इतिहास की इस सबसे बड़ी मंदी ने ऐसा कहर मचाया था कि उससे उबरने में कई साल लग गए थे। इससे फासीवाद बढ़ा और द्वितीय विश्वयुद्ध की नौबत आ गई।

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