रिपोर्ट में खुलासा-RBI से 55000 करोड़ रुपए और चाहती थी सरकार, मगर समिति ने किया इंकार

Edited By Seema Sharma,Updated: 29 Aug, 2019 10:33 AM

government wanted 55000 crores more from rbi

केन्द्रीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) ने जालान समिति की सिफारिशों को मंजूर करते हुए केन्द्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए देने का फैसला किया है, हालांकि समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद यह खुलासा हुआ है

नई दिल्ली: केन्द्रीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) ने जालान समिति की सिफारिशों को मंजूर करते हुए केन्द्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए देने का फैसला किया है, हालांकि समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद यह खुलासा हुआ है कि सरकार इतनी ही रकम से संतुष्ट नहीं थी। सरकार करीब 55,000 करोड़ रुपए और चाहती थी लेकिन जालान समिति ने 1.76 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रकम की सिफारिश करने से इंकार कर दिया। गौरतलब है कि जून 2018 तक रिजर्व बैंक के बहीखाते में 36.17 लाख करोड़ रुपए की रकम थी। समिति में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि ने रिजर्व बैंक के कुल फंड की 1.5 प्रतिशत और रकम देने की मांग की थी, जो करीब 54,255 करोड़ रुपए थी।

 

यह मांग ऊंचे जोखिम वाले सहनशक्ति दायरे में आती थी इसलिए बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति ने इसे मानने से इंकार कर दिया। बिमल जालान समिति का ही काम यह तय करना था कि रिजर्व बैंक अपने फंड का कितना हिस्सा सरकार को दे सकता है। रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने सोमवार को ही समिति की सिफारिशों को मंजूर कर लिया और इसके एक दिन बाद मंगलवार को समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया। समिति ने सिफारिश की है कि बहीखाते के 4.5 से 5.5 प्रतिशत तक मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता प्रावधान को सेफ रेंज माना जा सकता है, लेकिन वित्त सचिव राजीव कुमार का कहना था कि यह 3 प्रतिशत तक रखी जा सकती है। केन्द्र सरकार ने इस साल 30 जुलाई को ही राजीव कुमार को जालान समिति का सदस्य बनाया था।

 

रिजर्व बैंक का बहीखाता हो मजबूत
जालान समिति ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक का बहीखाता मजबूत होना चाहिए ताकि वह जरूरत पडऩे पर बैंकों की मदद कर सके। समिति ने यह भी सुझाव दिया कि रिजर्व बैंक को अपने अकाऊंटिंग वर्ष को बदलकर वित्त वर्ष के मुताबिक अप्रैल से मार्च तक करना चाहिए। अभी रिजर्व बैंक की अकाऊंटिंग जुलाई से जून तक के वर्ष की होती है।

 

नोटबंदी से आर.बी.आई. की बैलेंसशीट भी हुई थी प्रभावित
आर.बी.आई. की ओर से गठित एक समिति ने कहा है कि नवम्बर 2016 में हुई नोटबंदी से केंद्रीय बैंक की बैलेंसशीट भी प्रभावित हुई थी जिससे पिछले 5 साल की उसकी औसत विकास दर घटकर 8.6 प्रतिशत रह गई। आर.बी.आई. के ‘इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क’ की समीक्षा के लिए डॉ. बिमल जालान की अध्यक्षता में बनी समिति ने इसी महीने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है। समिति ने अन्य बातों के साथ रिजर्व बैंक के वित्त वर्ष को बदलकर अप्रैल-मार्च करने की भी सिफारिश की है।

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 10 साल में रिजर्व बैंक की बैलेंसशीट की औसत वार्षिक विकास दर 9.5 प्रतिशत रही है जबकि 2013-14 से 2017-18 के 5 साल के दौरान इसकी औसत विकास दर 8.6 प्रतिशत रही। समिति ने कहा है कि बैलेंसशीट की विकास दर में गिरावट का 2016-17 में की गई नोटबंदी थी। समिति ने आगे अपनी सिफारिशों में कहा है कि रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष और सरकार का वित्त वर्ष एक होना चाहिए। अभी रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष 1 जुलाई से 30 जून का होता है। इसे बदलकर 1 अप्रैल से 31 मार्च करने के लिए कहा गया है जो सरकार का वित्त वर्ष होने के साथ ही कॉर्पोरेट जगत का भी वित्त वर्ष है। उसने कहा है कि इससे रिजर्व बैंक द्वारा सरकार को दिए जाने वाले अंतरिम लाभांश को लेकर पैदा होने वाली विसंगतियां दूर की जा सकेंगी। समिति की राय है कि पारंपरिक रूप से रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष जुलाई-जून देश के कृषि मौसम को देखते हुए तय किया गया था लेकिन आधुनिक युग में अब इसकी आवश्यकता नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष एक होने से रिजर्व बैंक सरकार को दी जाने वाली अधिशेष राशि का बेहतर पूर्वानुमान लगा सकेगा।

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