जानें आजादी के बाद कितना बदला टैक्स स्लैब

Edited By jyoti choudhary,Updated: 02 Feb, 2019 05:31 PM

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आजादी के बाद से अब तक देश के करदाता एक लंबा सफर तय चुके हैं। बजट में इनकम टैक्स रेट के बारे में क्या घोषणाएं होंगी, इस पर ही सबकी निगाहें टिकी होती हैं। हालांकि जनता हर साल सरकार से बड़ी राहत की उम्मीद करती है

बिजनेस डेस्कः आजादी के बाद से अब तक देश के करदाता एक लंबा सफर तय चुके हैं। बजट में इनकम टैक्स रेट के बारे में क्या घोषणाएं होंगी, इस पर ही सबकी निगाहें टिकी होती हैं। हालांकि जनता हर साल सरकार से बड़ी राहत की उम्मीद करती है लेकिन हर बजट में कोई बड़ी घोषणा हो यह जरूरी नहीं है। कई बजट ऐसे भी रहे हैं जिनमें किसी भी बड़े बदलाव की घोषणा नहीं की गई। आखिरी बार किसी बजट में डायरेक्ट टैक्स स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव की घोषणा साल 1997 में की गई थी। उस वक्त पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे। 1997 के बजट को ड्रीम बजट भी कहा जाता है। चुनावी साल में सरकार और वित्त मंत्री पर लुभावनी घोषणाएं करने का दबाव है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं टैक्स स्लैब में हुए बड़े बदलावों के बारे में। 

1949-50: स्वतंत्र भारत में पहली बार टैक्स की दरें इसी बजट में तय की गईं। तत्कालीन वित्त मंत्री जॉन मथाई ने 10,000 रुपए तक की आमदनी पर लग रहे 1 अना के टैक्स में से एक थौथाई हिस्से की कटौती कर दी। वहीं, 10,000 रुपए से ज्यादा के दूसरे स्लैब पर लग रहे 2 आने के टैक्स को घटाकर 1.9 अना कर दिया। 

1974-75: वित्त मंत्री यशवंत राव चव्हान ने रुला देनेवाले 97.75 प्रतिशत टैक्स को घटाकर 75 प्रतिशत कर दिया। उन्होंने सभी लेवल के पर्सनल इनकम पर लग रहे टैक्स रेट्स को कम कर दिया। इस वर्ष 6,000 रुपए तक की सालाना आमदनी को टैक्स फ्री कर दिया गया। 70,000 रुपए से ज्यादा की सालाना कमाई पर 70 प्रतिशत का मार्जिनल टैक्स रेट तय किया गया। वहीं, सभी कैटिगरीज पर सरचार्ज एकसमान कर 10% कर दिया गया। इस तरह सबसे ऊपरी स्तर वाले स्लैब पर इनकम टैक्स और सरचार्ज मिलाकर कुल 77 प्रतिशत का टैक्स हो गया। साथ ही, वेल्थ टैक्स बढ़ा दिया गया। 

1985-86: विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तत्कालीन 8 इनकम टैक्स स्लैब्स घटाकर 4 कर दिए। पर्सनल इनकम पर सबसे ज्यादा मार्जिनल टैक्स रेट 61.875 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया। 18,000 रुपए सालाना से कम कमानेवालों को टैक्स से मुक्ति दे दी गई जबकि 18,001 रुपए से 25,000 रुपए तक की आमदनी पर 25% और 25,001 रुपए से 50,000 रुपए की आय पर 30% टैक्स लगाया गया। इधर, 50,001 रुपए से 1 लाख रुपए सालाना आमदनी पर 40 प्रतिशत की टैक्स दर तय की गई जबकि 1 लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी पर 50 प्रतिशत टैक्स तय किया गया। 

1992-93: वर्तमान टैक्स स्ट्रक्चर फिलहाल जैसा दिखता है, उसकी शुरुआत कहीं न कहीं इसी साल से हुई थी। मनमोहन सिंह ने टैक्स स्लैब को तीन हिस्सों में बांटा। नीचले स्लैब के लिए 30 हजार रुपए से 50 हजार रुपए तक की इनकम वालों के लिए 20 प्रतिशत, मिडिल स्लैब में 50 हजार रुपए से 1 लाख रुपए तक 30 प्रतिशत और 1 लाख रुपए से अधिक पर 40 प्रतिशत। 

1994-95: दो साल के अंतराल के बाद, मनमोहन सिंह ने टैक्स स्लैब में कुछ बदलाव किए लेकिन दरों में कोई बदलाव नहीं किया। पहली स्लैब 35 हजार रुपए से 60 हजार रुपए तक 20 प्रतिशत, दूसरी स्लैब में 60 हजार रुपए से 1.2 लाख रुपए तक 30 प्रतिशत और 1.2 लाख रुपए से अधिक पर 40 प्रतिशत। 

1997-98: भले ही वीपी सिंह और मनमोहन सिंह ने अपने बजट में टैक्स स्लैब की संख्या कम की, लेकिन 'ड्रीम बजट' पेश करने वाले पी चिदंबरम थे। उन्होंने टैक्स दरों को 15, 30 और 40 से 10, 20 और 30 प्रतिशत कर दिया। पहले स्लैब में 40 से 60 हजार रुपए इनकम वालों के लिए 10 प्रतिशत, 60 हजार से 1.5 लाख रुपए वालों के लिए 20 प्रतिशत और इससे ज्यादा वालों के लिए 30 प्रतिशत। 

2005-06: लगभग 10 सालों बाद तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ही टैक्स स्लैब्स में बदलाव किया। उन्होंने घोषणा की कि वे लोग जो 1 लाख रुपए तक सालाना कमा रहे हैं उन पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। 1 लाख से 1.5 लाख रुपए तक कमाने वालों पर 10 प्रतिशत इनकम टैक्स लगेगा और 1.5 लाख से 2.5 लाख कमाने वालों पर 20 प्रतिशत टैक्स लगाया गया। इसके अलावा 2.5 लाख रुपए से ज्यादा कमाने वालों पर 30 प्रतिशत टैक्स लगाया गया था। 

2010-11: पांच सालों के गैप के बाद प्रणव मुखर्जी ने इनकम स्लैब्स में बदलाव किया। उन्होंने ऐलान किया कि वे लोग जो सालाना 1.6 लाख रुपए तक कमा रहे हैं उन्हें कोई टैक्स नहीं देना होगा। 1.6 लाख से 5 लाख रुपए तक कमाने वालों पर 10 प्रतिशत टैक्स लगाया जाएगा। 5 लाख से 8 लाख तक कमाने वालों को 20 प्रतिशत टैक्स के स्लैब में रखा गया। 8 लाख सालाना से ज्यादा आय वालों को 30 प्रतिशत टैक्स भरना था। 

2012-13: प्रणव मुखर्जी ने जीरो टैक्स वाले स्लैब को 1.8 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया और बाकी टैक्स स्लैब्स में भी मामूली बदलाव किए। उन्होंने ऐलान किया कि 2 लाख तक कमाने वालों पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, 2 लाख से 5 लाख रुपए सालाना कमाने वालों पर 10 प्रतिशत और 5 लाख से 10 लाख की आय वालों को 20 प्रतिशत टैक्स स्लैब में रखा गया। 10 लाख से ज्यादा आय वाले लोगों को 30 प्रतिशत टैक्स देना था। 

2014-15: फाइनैंस बिल, 2015 पास होने के साथ ही वेल्थ टैक्स को 2016-17 से खत्म कर दिया गया। अरुण जेटली ने वेल्थ टैक्स को हटाकर 1 करोड़ से ज्यादा कमाने वालों पर 2 प्रतिशत का सरचार्ज लगाया। इस कारण 2016-17 के बाद से वेल्थ टैक्स रिटर्न भरना खत्म हो गया। 

2017-18: जेटली ने 2.5 लाख से 5 लाख रुपए तक कमाने वालों पर टैक्स 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया। इसके साथ ही आयकर कानून, 1961 के सेक्शन 87ए में रीबेट को 2.5 लाख से 3.5 लाख तक कमाने वालों के लिए 5 हजार से घटाकर 2.5 हजार कर दिया गया। इस कारण 3 लाख रुपए तक कमाने वालों पर आयकर लगभग खत्म हो गया और 3 लाख से 3.5 लाख कमाने वालों के लिए यह 2,500 रुपए रह गया। 
 

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