OTT नियमों को अंतिम रूप देने में और समय लेगा ट्राई

Edited By jyoti choudhary,Updated: 02 Oct, 2019 05:20 PM

trai will take more time to finalize ott rules

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) इंटरनेट के सहारे विविध सेवाएं देने वाली कंपनियों (ओटीटी) के लिए नियमों को अंतिम रूप देने में अतिरिक्त समय लेगा। नियमों में मुख्य तौर पर सुरक्षा और वैध रूप से दखल देने पर जोर दिया जा रहा है। ओटीटी से आशय...

नई दिल्लीः भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) इंटरनेट के सहारे विविध सेवाएं देने वाली कंपनियों (ओटीटी) के लिए नियमों को अंतिम रूप देने में अतिरिक्त समय लेगा। नियमों में मुख्य तौर पर सुरक्षा और वैध रूप से दखल देने पर जोर दिया जा रहा है। ओटीटी से आशय ‘ओवर द टॉप' सेवाओं से होता है। इसमें ऐसी कंपनियां आती हैं जो दूरसंचार नेटवर्क कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले इंटरनेट के सहारे अपनी सेवाएं देती हैं। इनमें स्काइप, वाइबर, व्हाट्सएप, हाइक, स्नैपचैट जैसी संदेश और इंटरनेट फोन सेवाएं देने वाली विभिन्न कंपनियां शामिल हैं। इसके अलावा ऑनलाइन मनोरंजन प्रदान करने वाली नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, हॉटस्टार, जी5 और आल्ट बालाजी इत्यादि भी ओटीटी का हिस्सा हैं। 

ओटीटी के लिए नियमों को अंतिम रूप देने में ट्राई को एक महीने का अतिरिक्त समय लग सकता है। ट्राई इस संबंध में ओटीटी पर अंतरराष्ट्रीय नियम-विनियम को देख रहा है। उसका विशेष ध्यान सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर है। ट्राई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ओटीटी पर नियम बनाने को लेकर नियामक ‘व्यावहारिक धारणा' अपनाने के पक्ष में है।

हालांकि ओटीटी के उपयोग से दूरसंचार सेवाप्रदाताओं को भी लाभ हुआ है क्योंकि लोगों का इंटरनेट उपभोग बढ़ा है। ऐसे में दूरसंचार कंपनियों का इनके मुफ्त सेवाएं देने का तर्क बहुत ज्यादा मान्य नहीं रह गया है। अधिकारी ने कहा कि ऐसे में ओटीटी नियमों के बारे में आर्थिक पक्ष उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। 

अधिकारी ने कहा, ‘‘अब ओटीटी नियमों में सुरक्षा बड़ा मुद्दा बन गया है। बड़ा सवाल अब यह है कि सुरक्षा चिंताओं का समाधान कैसे किया जाना है, अन्य देश सुरक्षा संबंधी चिंताओं से कैसे निपट रहे हैं, नियमों से जुड़ी समस्या अब सीमित हो चुकी है और अब यह उतनी जटिल और बड़ी नहीं है जितनी पहले थी।'' ट्राई ने पिछले साल ओटीटी कंपनियों को नियामकीय ढांचे के दायरे में लाने के लिए एक परिचर्चा पत्र पेश किया था। बाद में इनमें से कई मंच सरकार की निगरानी के दायरे में आ गए और सरकार का सूचना प्रौद्योगिकी कानूनों में भी बदलाव का प्रस्ताव है ताकि इन कंपनियों के लिए बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। 

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