Edited By jyoti choudhary,Updated: 25 Oct, 2023 12:27 PM

दुनियाभर में तेल, गैस और कोयले की मांग लगातार बढ़ रही है। साल 2030 तक जीवाश्म ईंधन यानी तेल, गैस और कोयले की मांग रिकॉर्ड स्तर पर होगी। हालांकि इसके बाद डिमांड घटने लगेगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की ओर से जारी वार्षिक वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक...
बिजनेस डेस्कः दुनियाभर में तेल, गैस और कोयले की मांग लगातार बढ़ रही है। साल 2030 तक जीवाश्म ईंधन यानी तेल, गैस और कोयले की मांग रिकॉर्ड स्तर पर होगी। हालांकि इसके बाद डिमांड घटने लगेगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की ओर से जारी वार्षिक वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक में यह बात कही गई है। ऊर्जा एजेंसी ने मांग घटने के पीछे तर्क दिया कि तब तक बड़ी संख्या में इलेक्ट्रिक कारें सड़कों पर आ चुकी होंगी। इलेक्ट्रिक कारों के आने के बाद तेल की डिमांड कम होना शुरू हो जाएगी। इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था और ज्यादा धीमी गति से बढ़ रही होगी। वहीं दुनियाभर में स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जाना बढ़ेगा।
ओपेक के नजरिए से उलट
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की यह रिपोर्ट तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक के नजरिए से उलट है कि तेल के क्षेत्र में खरबों डॉलर के निवेश की जरूरत है। ओपेक ने इसी माह अपनी रिपोर्ट में साल 2030 से आगे जाकर मांग में और ज्यादा डिमांड का अनुमान लगाया था। वार्षिक वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक में IEA ने कहा है कि तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले की मांग में बढ़ोतरी इस दशक में सरकारों की मौजूदा नीतियों के आधार पर उसके परिदृश्य में दिखाई दे रही है। ऐसा पहली बार हुआ है।
बिजली की मांग बढ़ेगी
सरकारों, कंपनियों और निवेशकों को स्वच्छ ऊर्जा बदलावों में बाधा डालने के बजाय उनका समर्थन करने की जरूरत है। आईईए के मुताबिक, भारत में साल 2050 तक बिजली की मांग 9 गुना तक बढ़ जाएगी। क्योंकि एसी का इस्तेमाल काफी ज्यादा होने लगेगा। यह अफ्रीका की मौजूदा खपत से कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन दशक में भारत में दुनिया के किसी भी देश या क्षेत्र की तुलना में ऊर्जा की मांग में इजाफा सबसे ज्यादा होगा।
आईईए ने यह भी कहा कि जैसी स्थिति है, औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जीवाश्म ईंधन की मांग बहुत अधिक बनी रहेगी। एजेंसी ने एक बयान में कहा, "इससे एक साल की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के बाद न केवल जलवायु प्रभावों के बिगड़ने का खतरा है, बल्कि ऊर्जा प्रणाली की सुरक्षा भी कमजोर हो रही है।