कच्चे तेल की कीमतें 2021 के बाद सबसे निचले स्तर पर, भारत को मिल सकती है बड़ी राहत

Edited By Updated: 17 Dec, 2025 03:25 PM

crude oil prices have fallen to their lowest level since 2021

ग्लोबल मार्केट में मंगलवार रात कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की गई। ब्रेंट क्रूड करीब 2.8% टूटकर 58.85 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जबकि अमेरिकी बेंचमार्क WTI क्रूड 55 डॉलर प्रति बैरल से नीचे फिसल गया। फरवरी 2021 के बाद यह पहला मौका है जब WTI...

बिजनेस डेस्कः ग्लोबल मार्केट में मंगलवार रात कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की गई। ब्रेंट क्रूड करीब 2.8% टूटकर 58.85 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जबकि अमेरिकी बेंचमार्क WTI क्रूड 55 डॉलर प्रति बैरल से नीचे फिसल गया। फरवरी 2021 के बाद यह पहला मौका है जब WTI इस स्तर तक पहुंचा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह गिरावट आने वाले दिनों में तेल की कीमतों में और कमजोरी का संकेत दे रही है।

क्यों टूटीं तेल की कीमतें?

तेल में इस भारी गिरावट के पीछे दो बड़ी वजहें मानी जा रही हैं—पहली, ग्लोबल मार्केट में ओवरसप्लाई और दूसरी, रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होने की बढ़ती उम्मीदें।

तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन कटौती को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। वहीं, चीन और यूरोप में मांग कमजोर बनी हुई है, जबकि अमेरिका घरेलू उत्पादन लगातार बढ़ा रहा है। बढ़ती सप्लाई और कमजोर डिमांड के चलते कीमतों पर दबाव बढ़ गया है। इसके अलावा अमेरिका में कच्चे तेल का भंडार उम्मीद से ज्यादा रहने से भी बाजार को यह संकेत मिला है कि सप्लाई को लेकर फिलहाल कोई संकट नहीं है।

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युद्ध विराम की उम्मीदों से दबाव

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर शांति वार्ता की संभावनाओं ने भी तेल की कीमतों पर असर डाला है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, युद्ध विराम को लेकर बातचीत के संकेत मिल रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो वैश्विक सप्लाई नेटवर्क और मजबूत होगा, जिससे तेल की कीमतों में और गिरावट आ सकती है।

निवेशकों में बढ़ी बिकवाली

कीमतों में गिरावट के बाद फ्यूचर मार्केट में तेज बिकवाली देखी गई। निवेशकों को आशंका है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ सकती है, जिससे तेल की खपत और घटेगी।

भारत के लिए क्या मतलब?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देश के लिए राहत भरी हो सकती है। अगर यह ट्रेंड जारी रहता है तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की उम्मीद बढ़ सकती है, जिससे महंगाई पर भी दबाव कम होगा। हालांकि, कमजोर रुपया सस्ते तेल के फायदे को कुछ हद तक सीमित कर सकता है।

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आगे क्या अनुमान?

एनालिस्ट्स का कहना है कि अगर ब्रेंट क्रूड 58 डॉलर के नीचे बना रहता है तो कीमतें 55 डॉलर तक जा सकती हैं। वहीं WTI के लिए अगला बड़ा सपोर्ट 52 डॉलर प्रति बैरल के आसपास देखा जा रहा है।
 
 

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