बिल्डर्स पर लटकी तलवार के सामने ढाल बने अधिकारी

Edited By Updated: 03 Oct, 2019 02:23 PM

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चंडीगढ़ के प्रशासनिक अधिकारी बिल्डर्स पर लटकी तलवार के सामने ढाल बनकर खड़े होने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालत यह है कि वन्यजीव कानून को ताक पर रखकर दर्जनभर से ज्यादा अवैध निर्माणकार्यों का मामला प्रकाश में आ चुका है लेकिन आज तक अधिकारियों...

चंडीगढ़(अश्वनी) : चंडीगढ़ के प्रशासनिक अधिकारी बिल्डर्स पर लटकी तलवार के सामने ढाल बनकर खड़े होने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालत यह है कि वन्यजीव कानून को ताक पर रखकर दर्जनभर से ज्यादा अवैध निर्माणकार्यों का मामला प्रकाश में आ चुका है लेकिन आज तक अधिकारियों ने इन योजना संचालकों से कोई जवाब-तलबी नहीं की है। 

हैरत की बात यह है कि खुद प्रशासक वी.पी.बदनौर वन्यजीव कानून के बिना हुए निर्माणकार्यों को अवैध करार दे चुके हैं। बावजूद इसके प्रशासनिक अधिकारी जानबूझकर मामले को फाइलों में उलझाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं। कहा जा रहा है कि कुछ योजनाओं को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के स्तर पर एन्वायरमैंट क्लीयरैंस दी गई थी, इसलिए मंत्रालय के स्तर पर चिट्ठी भेजकर वाइल्ड लाइफ क्लीयरैंस संबंधी दस्तावेज मांगे गए हैं। 

केंद्रीय मंत्रालय जो भी स्पष्ट करेगा, उसी मुताबिक कार्रवाई की जाएगी। इसके उलट, मई 2017 में स्टेट बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के स्तर पर मंजूर किए गोदरेज इस्टेट डिवैल्पर्स को कटघरे में खड़ा कर चुका हैं क्योंकि उसके पास वाइल्ड लाइफ क्लीयरैंस नहीं था। हालांकि बोर्ड ने इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सलाह लेने की बात भी कही थी। 

बावजूद इसके दो साल से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी गोदरेज इस्टेट डिवैल्पर्स के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की हुई है। वहीं, अब बाकी अवैध निर्माणकार्यों को भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजने की बात कहकर इन्हें कागजों में ही उलझाने का फार्मूला गढ़ा जा रहा है।

क्षेत्रीय कार्यालय योजनाओं पर उठाता रहा है सवाल :
दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय स्तर पर मंजूरशुदा इन योजनाओं के मामले में वन्यजीव कानून के उल्लंघन को लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का चंडीगढ़ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय लगातार सवाल उठाता रहा है। दरअसल, निर्माण योजनाओं को जिन कानूनों के तहत मंजूरी प्रदान की जाती है, क्षेत्रीय कार्यालय उनकी समीक्षा करता है। इसपर क पलायंस रिपोर्ट तैयार की जाती है। 

क्षेत्रीय कार्यालय ने इन योजनाओं की अमूमन कम्पलायंस रिपोर्ट में साफ तौर पर वन्यजीव कानून को लेकर सवाल खड़े किए हैं। कम्पलायंस रिपोर्ट के पहले ही पन्ने पर क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों द्वारा स्पष्ट किया गया है कि योजना का मौका-मुआयना करने के बाद एक कॉम्प्रीहैंसिव मॉनीटरिंग रिपोर्ट तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में योजना संचालक को सूचीबद्ध तरीके से नियम-शर्तों को मानने के निर्देश दिए जाते हैं। इसी कड़ी में बिल्डर्स ने जो अनुमति नहीं ली है, उस पर ऑब्जैक्शन लगाया जाता है। इसी रिपोर्ट के पहले पन्ने पर स्पष्ट है कि इस योजना को वन्यजीव कानून के तहत अनुमति लेनी अनिवार्य है।

इन योजनाओं से नहीं की जवाब-तलबी :
चंडीगढ़ में स्टेट एन्वायरमैंट इम्पैक्ट अथॉरिटी के गठन से पहले केंद्रीय स्तर पर दजर्नभर से ज्यादा निजी निर्माण योजनाओं को एन्वायरमैंट क्लीयरैंस प्रदान की गई थी। यह सभी योजनाएं वन्यजीव कानून के उल्लंघन को लेकर कटघरे में हैं। 

इनमें इंडस्ट्रीयल एरिया फेज-1 में ग्रूज बैक्रट, उप्पल मार्बल आर्क, भारती एयरटैल, सी.एस.जी. इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, डी.एल.एफ. होटल कम कन्वैंशन सैंटर, जे.डब्ल्यू.मैरियट, सैंट्रा मॉल, सिटी इम्पोरिया मॉल, होटल शैरेटन, सिविल एयरपोर्ट टर्मिनल बिल्डिंग जैसे बड़ी योजनाओं के नाम शामिल हैं।
 

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