Edited By ,Updated: 08 Aug, 2016 01:13 PM
एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, ‘‘गुरुदेव दुख से छुटने का कोई उपाय बताइए? शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था।
एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, ‘‘गुरुदेव दुख से छुटने का कोई उपाय बताइए? शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था। दुखों की दुनिया में जीना लेकिन उसी से मुक्ति का उपाय भी ढूंढना! बहुत मुश्किल प्रश्न था।’’
गुरु ने कहा, ‘‘एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है। उसके पहने हुए जूते लेकर आओ। फिर मैं तुम्हें दुख से छूटने का उपाय बता दूंगा।’’
शिष्य चला गया। एक घर में जाकर उसने पूछा, ‘‘भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो। अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो।’’
उसने कहा, ‘‘कमाल करते हो भाई! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूं? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूं? मैं तो बहुत दुखी इंसान हूं।’’
वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, ‘‘अब क्या कहूं भाई? सुख की तो बात ही मत करो। मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूं। ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊं। सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर में जाओ।’’
वह तीसरे घर गया, चौथे घर गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता। पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता। पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दुखी बताता।
सैंकड़ों-हजारों घरों के चक्कर लगा आया। सुखी आदमी के जूते मिलना तो दूर खुद के ही जूते घिस गए। शाम को वह गुरु के पास आया और बोला, ‘‘मैं तो घूमते-घूमते परेशान हो गया। न तो कोई सुखी मिला और न सुखी आदमी के जूते।’’
गुरु ने पूछा, ‘‘लोग क्यों दुखी हैं? उन्हें किस बात का दुख है?’’
उसने कहा, ‘‘किसी का पड़ोसी खराब है। कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है। आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुख भोग रहा है।’’
गुरु ने बताया, सूख का सूत्र है-दूसरे की ओर नहीं बल्कि अपनी ओर देखो। खुद में झांको। खुद की काबिलियत पर गौर करो। प्रतिस्पद्र्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं। जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देख कर अपने रास्ते मत बदलो। खुद को सुनो, खुद को देखो। यही सुख का सूत्र है।
शिष्य बोला, ‘‘महाराज बात तो आपकी सत्य है लेकिन यही आप मुझे सुबह भी बता सकते थे। फिर इतनी परिक्रमा क्यों करवाई?’’
गुरु ने कहा ‘‘वत्स, सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता। अगर यह बात मैं सुबह बता देता तो तुम हरगिज नहीं मानते। जब स्वयं अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए तो बात समझ में आ गई। अब ये बात तुम पूरे जीवन में नहीं भूलोगे।’’