अजा एकादशी 2020: इस स्तोत्र के बिना अधूरी है श्री हरि की पूजा

Edited By Jyoti,Updated: 15 Aug, 2020 09:23 AM

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15 अगस्त यानि आज भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी का पर्व मनाया जाता है। अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम

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15 अगस्त यानि आज भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी का पर्व मनाया जाता है। अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम इससे जुड़ी लगभग जानकारी दे चुके हैं। इसी बची अब हम आपको बताने वाले हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद आपको श्री हरि से संबंधित कौन से स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। क्योंकि बहुत से लोग हैं, जो इस दिन व्रत तो रख लेते हैं मगर उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं होती कि इस दिन व्रत आदि के पूजन के बाद कौन सी आरती करनी चाहिए। क्योंकि शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि हिंदू धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा आरती के बिना पूरी नहीं मानी जाती है। ऐसे में एकादशी का व्रत करने वाले जातक के लिए बहुत अनिवार्य है कि वो इस बारे में जानें कि इस दिन श्री हरि की पूजा के बाद क्या करना चाहिए।
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मान्यता है कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है, वह इस लोक में तो सुखों को भोगता ही है, साथ ही मृत्यु के बाद एकादशी के व्रत के प्रभाव से विष्णु लोक यानि श्री बैकुंठ धाम को जाता है। वैष्णव भक्त भगवद्दर्शन की इच्छा से भी एकादशी का व्रत करते हैं। आइए जानत हैं इस दिन कौन से स्तोत्र का पाठ करना चाहिए-

श्री हरि स्तोत्रम्
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं।
नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं।।

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं।
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं।।

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलान्तर्विहारं धराभारहारं।
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं।।

जराजन्महीनं परानन्दपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनं।
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं।।
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कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं।
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं।।

समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं।
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं।।

सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं।
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं।।

रमावामभागं तलानग्रनागं, कृताधीनयागं गतारागरागं।
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं, गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं।।

फलश्रुति: इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं, पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:।
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं, जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो।।

विष्णु जी की आरती:
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥ॐ॥
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ॐ॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ॐ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंर्तयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ॐ॥
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तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ॐ॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ॐ॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे॥ॐ॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥ॐ॥
तन-मन-धन, सब कुछ है तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ॐ॥"

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