Harihareshwar Temple: विष्णु एवं शिव का संयोजन है हरिहरेश्वर मंदिर

Edited By Updated: 06 May, 2025 07:32 AM

harihareshwar temple

Harihareshwar Temple : तुंगभद्रा एवं हरिद्रा नदी के संगम तट पर बसा एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर 1223-1224 सी.ई 1224 ए.डी. में होयशाला राजा नरसिम्हा द्वितीय के मंत्री एवं कमांडर पल्लवा ने बनाया था। 1268 सी.ई. में इसी राजवंश के राजा नरसिम्हा तृतीय के...

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Harihareshwar Temple : तुंगभद्रा एवं हरिद्रा नदी के संगम तट पर बसा एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर 1223-1224 सी.ई 1224 ए.डी. में होयशाला राजा नरसिम्हा द्वितीय के मंत्री एवं कमांडर पल्लवा ने बनाया था। 1268 सी.ई. में इसी राजवंश के राजा नरसिम्हा तृतीय के कमांडर सोमा ने इसमें कुछ ओर संरचनाएं बनाईं। मंदिर में हिन्दू देवताओं विष्णु एवं शिव का संयोजन है। इसमें दाहिने लम्बवत आधे भाग में शिव एवं बाएं ऊर्ध्वाधर आधे हिस्से में विष्णु की छवि है।

PunjabKesari Harihareshwar Temple

एक हिन्दू किंवदंती के अनुसार, गुहासुर नामक राक्षस यहां रहता था, जिसने पूर्व में उच्चांगी दुर्ग, दक्षिण में गोविनाहालू, पश्चिम में मुदनूर और उत्तर में ऐरानी तक का क्षेत्र अपने नियंत्रण में कर लिया था। गुहासुर ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया।

वरदान के अनुसार भगवान हरि (विष्णु) या भगवान हर (शिव) के लिए उसको अकेले मारना असंभव होता। इस प्रकार गुहासुर देवताओं एवं मनुष्यों के लिए पीड़ादायक बन गया। ब्रह्मा जी के वरदान की काट तथा इससे छुटकारा पाने हेतु विष्णु एवं शिव ने मिलकर हरिहर (एक संलयन) रूप धारण किया तथा गुहासुर राक्षस को मार डाला।

इस मंदिर को बनाने में सोप स्टोन (जिसे पोट स्टोन भी कहते हैं) का इस्तेमाल किया गया। 12वीं एवं 13वीं शताब्दी के कन्नड़ शिलालेख इसमें पाए जाते हैं। इस मंदिर को हरिहरेश्वर, पुष्पाद्री, हरिशिनाचल एवं ब्रहाद्री की पहाड़ियां घेरे हुए हैं। इसका मंडप चौकोर आकृति का है। इसके खम्भे (संख्या में 58) तथा मंडप की छत में ‘कमल’ की तरह का विशेष वास्तुकला एवं सजावट है।

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मंदिर में गर्भगृह : एक अंतराल एवं नवरंग महामंडप एवं उसके बाद उत्तर दक्षिण और पश्चिम में एक प्रवेश द्वार के साथ विशाल बहु स्तम्भ वाला एक सभामंडप है। इसका प्रवेश द्वार मूल रूप से पांच मंजिलों के साथ बनाया गया था, परंतु समय के साथ इसकी सभी मंजिलें नष्ट हो गई हैं। नवरंग के दक्षिण एवं उत्तर में एक बरामदा है। मंदिर के गुम्बद/ टावर को लाल पत्थर से फिर से बनाया गया है, क्योंकि मूल सोपस्टोन पत्थर नष्ट हो गया था। हरिहरेश्वर मंदिर को दक्षिण काशी एवं गुहरण्य क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
हरिदर मंदिर में 60 से अधिक शिलालेख पाए गए हैं। इनमें से कई शिलालेख एपिग्राफिया कर्नाटक खंड ङ्गढ्ढ (एक पुस्तक जिसमें पुराने मैसूर क्षेत्र के पुरालेख शामिल है) में प्रलेखित है।

मंदिर का निर्माण होयशाला शैली में हुआ है इसकी हाल की दीवार पर खम्भे हैं, जो छत के बाहरी सिरों को सहारा देते हैं।
इस मंदिर की स्थापत्य कला एवं सुंदरता देखने एवं उसका आनंद लेने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इसके स्तम्भों और नक्काशियों को तराशा गया है और बहुत ही सटीकता से बनाया गया है, जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत एक संरक्षित स्मारक है। हरिहर के पास स्वच्छ रेतीले समुद्र तट भी दर्शनीय हैं। यह पुरातत्व विभाग की धरोहर है।

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How to reach Harihareshwar Temple कैसे पहुंचें हरिहरेश्वर मंदिर : हरिहर कर्नाटक के दावणगेरे से 14 किलो मीटर की दूरी पर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 4 (पुणे-बेंगलूर) पर बेंगलूर से 275 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इसका निकटतम हवाई अड्डा हुबली है, जो 131 किलोमीटर दूरी पर है।

हरिहर नियमित ट्रेन के माध्यम से नई दिल्ली, मुम्बई, बेंगलूर, पुणे, चेन्नई आदि अधिकांश मुख्य शहरों से जुड़ा है।    

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