Edited By ,Updated: 17 Feb, 2015 08:04 AM
भगवान शिव के सहस्त्र नाम में वटवृक्ष, पीपल, नीम और अनेक वनस्पतिओं को शिव स्वरुप की मान्यता दी जाती रही है।भगवान शंकर .....
भगवान शिव के सहस्त्र नाम में वटवृक्ष, पीपल, नीम और अनेक वनस्पतिओं को शिव स्वरुप की मान्यता दी जाती रही है। भगवान शंकर कलयुग में अधिकांशतः वृक्षों में ही निवास करते है।नीलकंठ ऑक्सीजन देते है और कार्बन डाईऑक्साइड स्वयं ग्रहण करते है।शंकर गंगाधर जोकि आकाश से जल शोषित करते है और वर्षा के रूप में धरती की प्यास बुझाते हैं।
शंकर चंद्रधर, संसार की ऊष्मा को शोषित करते है और शीतलता प्रदान करते है।शंकर स्वयं जटाधारी है,कई पेड़ों में भी जटा निकलते देखा जाता है। शंकर भाघम्बरधारी जोकि पेड़ों की छाल भी बाघम्बर स्वरुप है।शंकर सर्वदा समाधिष्ट रहते और उसी तरह वृक्ष हैं जो कि एक तरह से समाधिष्ट होते है और एक ही जगह स्थिर होते है।
शंकर मंदिर , अट्टालिकाओं में नहीं रहते है बल्कि निर्जन - एकांत उनका निवास स्थल होता है। पेड़ भी जंगल में शोभा पाते है।शंकर कल्याणकारी है। सबको अन्न,धन देकर उनका भंडार भारतीय है।वृक्ष भी तो मानवता के लिए वरदान स्वरुप है। तरह - तरह के फल,फूलों से मनुष्य का भरण - पोषण करते रहते है।
शंकर तो महाकाल कहे जाते है।स्थित अनुसार जलाकर भस्म कर देते है। पेड़ों की लकडियाँ भी तो ज्वलनशील होती है। शव - दाह के लिए कितना उपुक्त होती है।शंकर को फल - फूल या मेवा - मिठाई नहीं चाहिए होता है बल्कि एक लोटा जल ही उन्हे प्रसन्न कर देता है।पेड़ों के लिए पानी ही तो प्राण है।
अतः में सभी भाई - बहनों से हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ की आप नित्य एक लोटा जल वृक्षों को जरूर दे।देंगे एक लोटा जल, पाएंगे ताजे - मीठे फूल।इस कारण इस शिवरात्रि से नियमित रूप से एक लोटा जल वृक्षों को जरूर दे और भगवान शंकर को प्रसन्न करे।वृक्ष ही शिव है।
- मनमोहन गुप्ता