रात्रि व्रत का विधान क्यों है नवरात्र व्रत में?

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2015 08:11 AM

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शास्त्रों में रात्रिकाल की देवी पूजा का विशेष फल माना गया है। "रात्रौ देवीं च पूजयेत् "

शास्त्रों में रात्रिकाल की देवी पूजा का विशेष फल माना गया है।

"रात्रौ देवीं च पूजयेत् " 

क्योंकि देवी रात्रि स्वरूपा हैं शिव को दिन स्वरूप माना गया है इसीलिए इस नवरात्र व्रत में रात्रि व्रत का विधान है -

                      रात्रि रूपा यतो देवी दिवा रूपो महेश्वरः|

                      रात्रि व्रतमिदं देवी सर्व पाप प्रणाशनम् || 

यही कारण है कि प्रतिपदा से अष्टमी तक दिन तो आठ ही होते हैं फिर प्रत्येक दिन के क्रम से नव देवियों की पूजा कर पाना संभव न हो पाता। इसका यह मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि देवी की पूजा दिन में नहीं की जा सकती। भक्ति और श्रद्धापूर्वक माता की पूजा दिन और रात्रि में कभी भी की जा सकती है।

वस्तुतः शिव और शक्ति में कोई भेद नहीं है इतना अवश्य याद रखें कि नव देवियों की पूजा अवश्य की जानी चाहिए अन्यथा दिन के क्रम से पूजा करने पर प्रतिपदा से अष्टमी तक तो आठ दिन ही हो पाते हैं। इस प्रकार से आठ देवियों की पूजा तो हो जाती है नवमी सिद्धिदात्री देवी की पूजा छूट जाती है। जो उचित नहीं है इसलिए नवमी के दिन प्रातः काल माता सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद हवन कन्या पूजन आदि का शुभारंभ करना चाहिए ।

आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी

vajpayeesn@gmail.com

 

                  

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