Edited By ,Updated: 11 Jun, 2015 04:20 PM
हिमाचल के जिला सिरमौर की ये रेणुका झील दुनिया भर में काफी प्रसिद्घ है। आपको बता दें कि इसे राज्य की सबसे बड़ी झील होने के साथ-साथ काफी पवित्र भी माना जाता है।
सिरमौर: हिमाचल के जिला सिरमौर की ये रेणुका झील दुनिया भर में काफी प्रसिद्घ है। आपको बता दें कि इसे राज्य की सबसे बड़ी झील होने के साथ-साथ काफी पवित्र भी माना जाता है। इस झील में भगवान परशुराम की माता रेणुका का स्थाई निवास है जो सदियों से इसी झील में रह रही हैं। रेणुका वही जगह है जहां भगवान विष्णु के छठे स्वरूप परशुराम का जन्म हुआ था। कहते हैं महर्षि जमदाग्नि और उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी ने झील के साथ लगती चोटी तापे का टिब्बा में सदियों तक तपस्या की थी।
कहा जाता है कि उस समय इस झील को 'राम सरोवर' नाम से पुकारा जाता था। उस समय भगवान विष्णु ने इनकी तपस्या से खुश होकर उन्हें वचन दिया कि वह स्वयं उनके बेटे के रूप में जन्म लेंगे। बाद में ऐसा हो भी गया। लेकिन वर्षों बाद सहस्त्रबाहु नाम के एक शक्तिशाली शासक ने इस इलाके पर हमला कर दिया। कामधेनु गाय हासिल करने के लिए उसने महर्षि को भी पकड़ लिया और उससे जोर जबरदस्ती करने लगा। मगर महर्षि जमदाग्नि ने यह कहकर गाय देने से मना कर दिया कि यह गाय उन्हें भगवान विष्णु ने दी है। ऐसे में वह इस गाय को किसी और को देकर भगवान का भरोसा नहीं तोड़ सकते।
इससे क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु ने महर्षि का वध कर दिया। उसी समय उनकी पत्नी रेणुका जी साथ लगते राम सरोवर में कूद गई और हमेशा के लिए जलसमाधि ले ली। कहा जाता है कि उस समय परशुराम यहां नहीं थे। बाद में जब परशुराम को इसका पता चला तो उन्होंने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। साथ ही तपस्या से हासिल की विद्या से पिता को भी नया जीवन दे दिया। इसके बाद परशुराम ने अपनी मां से प्रार्थना की कि वह इस झील से बाहर आ जाए। लेकिन मां रेणुका ने कहा कि वह अब हमेशा के लिए इस झील में वास करेंगी।
वह परशुराम से मिलने साल में एक बार आएंगी। वहीं लोगों का कहना है कि इसके बाद से ही झील का नाम रेणुका झील पड़ गया। उसी समय से इसकी आकृति भी महिला के आकार में ढल गई। पुराणों में भी इसका जिक्र किया गया है। मान्यता है कि दशमी से एक दिन पहले मां परशुराम से मिलने आती है। इसके लिए यहां मेले में विशाल शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। दूर-दूर से लोग इस मेले में आते है। इस झील के पवित्र पानी में लाखों श्रद्घालु स्नान करते हैं। यहां पांच दिन का रेणुका मेला भी मनाया जाता है।