क्या आप जानते हैं राशि अनुसार, कौन सा शिवलिंग है आपके लिए पूजनीय?

Edited By Lata,Updated: 27 Feb, 2020 03:38 PM

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भगवान शिव के बहुत से मंदिर पूरे देश में स्थापित हैं और इन मंदिरों की मान्यताएं भी अलग-अलग होती हैं।

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भगवान शिव के बहुत से मंदिर पूरे देश में स्थापित हैं और इन मंदिरों की मान्यताएं भी अलग-अलग होती हैं। इस बात को तो सब जानते ही हैं भगवान की पूजा शिवलिंग के रूप में भी होती है। कहते हैं कि शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाने से ही व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है। इसके साथ ही अगर कोई इंसान किसी भी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का दर्शन करता है तब भी उसकी हर कामना पूर्ण हो जाती है। इसी के साथ ही आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां सबसे पहले शिवलिंग की स्थापना हुई थी। 
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भगवान शिव का प्रथम लिंग रूप में प्राकट्य कहां हु्आ था? इस विषय में शिवपुराण में बताया गया है कि अरुणाचल प्रदेश वह स्थान है जहां भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। जी हां, अरुणाचल प्रदेश में अन्नामलाई पर्वत का क्षेत्र, जोकि तमिलनाडु में स्थित है। यहां पर्वत के पास ही भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर जिसे अरुणाचलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही पर्वत पर नवंबर दिसंबर के बीच एक त्योहार मनाया जाता है जिसे कार्तिगई दीपम के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहां भक्तों की खासी भीड़ देखने को मिलती है। इसी के साथ इस दिन पर्वत के शिखर पर घी का एक अग्नि पुंज जलाया जाता है जो शिव के अग्नि स्तंभ का प्रतीक होता है।  
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अरुणाचलेश्वर मंदिर के 8 दिशाओं में 8 शिवलिंग स्थापित हैं जो अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और साथ ही इन्हें अलग-अलग राशियों से जुड़ा जाता है। जैसे कि इंद्रलिंगम का संबंध वृष राशि से, अग्नि लिंगम का संबंध सिंह राशि, यम लिंग का वृश्चिक राशि से, नैऋत्य लिंगम का संबंध मेष राशि से, वरुण लिंगम का मकर और कुंभ से, वायु लिंगम का कर्क राशि से, कुबेर लिंगम का धनु और मीन से, ईशान लिंगम का संबंध मिथुन और कन्या राशि से है। लोग अपनी राशि के अनुसार ग्रहों के दोष दूर करने के लिए इनकी पूजा करते हैं।
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पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने खेल-खेल में अपने हाथों से शिवजी की आंखें बंद कर ली थीं। उस वक्‍त पूरे ब्रह्मांड में अंधियारा हो गया था। कई वर्षों तक पूरे जगत में अंधकार ही बना रहा। उसके बाद माता पार्वती के साथ अन्‍य देवताओं ने मिलकर तपस्‍या की। तब शिवजी अग्निपुंज के रूप में अन्‍नामलाई पर्वत ही इस श्रृंखला पर प्रकट हुए, जिसे अब अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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