Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jun, 2022 08:31 AM
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आषाढ़ गुप्त नवरात्र 11 जुलाई से शुरू हो गए हैं जो 18 जुलाई को सम्पन्न होंगे। गुप्त नवरात्रि में भी मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा
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Ashadha Gupt Navratri 2022- आज आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुरू हो गए हैं, जो 8 जुलाई को सम्पन्न होंगे। गुप्त नवरात्रि में भी मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। माता रानी के भक्त निराहार या फलाहार रह कर मां दुर्गा की आराधना करते हैं। घर और मंदिर में कलश स्थापना की जाती है।
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गुप्त नवरात्रि के दौरान मांस-मदिरा, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। मां स्वयं एक नारी हैं इसलिए नारी का सदैव सम्मान करना चाहिए। जो नारी का सम्मान करते हैं, मां दुर्गा उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं। इस दौरान घर पर क्लेश, द्वेष या अपमान नहीं करना चाहिए। स्वच्छता का विशेष ध्यान करना चाहिए।
Ashadha Navratri significance: नौ दिनों तक मां दुर्गा का पूजन करना
देवी सती ने महादेव को अपने दस रूपों से अवगत कराया था। ये दस महाविद्याएं हैं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्तिका, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगला मुखी, मातंगी और कमला देवी। मां दुर्गा त्रिगुण सम्पन्न हैं और इनकी तीन प्रकृति की पूजा की जाती है: महाकाली तमोगुण, महालक्ष्मी रजोगुण और महासरस्वती सतोगुण। जो शक्ति इन तीनों गुणों को एक साथ धारण करती है उन्हें ही तीनों लोक श्रद्धा पूर्वक पूजते हैं।
गुप्त नवरात्र की अवधि को सिद्धि प्राप्ति का समय माना जाता है। इसीलिए यह प्रमुख रूप से साधुओं और तांत्रिकों का नवरात्र माना जाता है। साधक चातुर्मास में होने वाली आपदा-विपदा से रक्षा के लिए मां जगदम्बा से आग्रह करते हैं। गुप्त नवरात्र में देवी मां की शक्ति पूजा के नियम-विधान कठिन होते हैं, इसीलिए यदि करें तो नियमों का पालन जरूर करें।
दुर्गा सप्तशति का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है। दुर्गा सप्तशति के पाठ में दुर्गा कवच, अर्गला स्तोत्र व कीलक का पाठ अनिवार्य अंग है। नौ स्वरूपों में पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चंद्रघटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धि दात्री का वर्णन मिलता है। चाहे सामान्य नवरात्र हों या गुप्त, देवी आराधना के पूजा, व्रत चंडी पाठ एवं कुमारी पूजन का विशेष महत्व है परन्तु इसमें भी अष्टमी तिथि की रात्रि का विशेष महत्व है। तंत्र साधक भी इसी दिन अपनी साधना पूर्ण करते हैं तथा अपने मंत्र को सिद्ध करते हैं।