वास्तु गुरु कुलदीप सलूजा- राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र वास्तु के कारण विवादित था, है और हमेशा रहेगा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Jan, 2024 08:01 AM

ayodhya ram mandir vastu

सरयू नदी के किनारे बसी हिन्दुओं के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्यापुरी का उल्लेख भारत के कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। जहां एक ओर अयोध्या नगरी अनादिकाल से प्रसिद्ध है,

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Ayodhya Ram Mandir vastu: सरयू नदी के किनारे बसी हिन्दुओं के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्यापुरी का उल्लेख भारत के कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। जहां एक ओर अयोध्या नगरी अनादिकाल से प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर राम जन्मस्थली सदियों से विवादित है। 1528 में बाबरी मस्जिद बनने के बाद राम जन्मभूमि स्थल को लेकर हिन्दू और मुस्लिम के बीच कई बार हिंसक झड़प हो चुकी हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने भी विवाद सुलझाने के प्रयास किए परन्तु विवाद ने कभी समाप्त होने का नाम नहीं लिया।

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राम जन्मभूमि से सम्बन्धित उपरोक्त हिंसक झड़पों के इतिहास को देखते हुए आम जन-मानस के मन में प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि, आखिर ऐसा क्या कारण है कि, लगभग पिछले 500 सालों से इस स्थान पर अपना अधिकार पाने के लिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों के बीच हुई हिंसक झड़पों में हजारों लोग मारे जा चुके हैं।

राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के आये फैसले पर भी विवाद रहा कि यह फैसला पक्षपातपूर्ण होकर सही नहीं है। अब जब राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी, 2024 को होना तय हुआ है, तब चारों शंकराचार्यों ने इसका बहिष्कार कर इस समारोह में आने से इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि यह निर्माण आधा-अधूरा है। देश के कई धर्माचार्यों अन्य ने भी इस समारोह का बहिष्कार किया है। इसी के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दल राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का विरोध करते हुए इसे भाजपा का चुनावी एजेंडा बता रहे हैं। इस कारण कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना के उद्धव ठाकरे इत्यादि इस समारोह का बहिष्कार कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों ने निमंत्रण मिलने के बाद भी इस कार्यक्रम में जाने से इंकार कर दिया है।

दोस्तों! इन सभी विवादों का एकमात्र कारण है राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र परिसर का वास्तु विपरीत निर्माण। इस परिसर का निर्माण करते समय इसकी भव्यता के साथ-साथ निश्चित ही धार्मिक शिल्प निर्माण की मर्यादा का पालन तो किया गया है, लेकिन भारत के प्राचीन वास्तुशास्त्र के नियमों की पूर्णतः अवहेलना की गई है।

सदियों से इस जगह की भौगोलिक स्थिति के कारण इसका वास्तु खराब है। जब यहां बाबरी मस्जिद थी तब भी तथा जब यहां रामलला प्रकट हुए तब भी इसका वास्तु खराब ही था। वर्तमान में राम मंदिर तीर्थक्षेत्र का निर्माण हो रहा है तो इस निर्माण में ऐसे वास्तुदोष और अधिक प्रभावी हो गये हैं, जिसके कारण यहां विवाद शुरू हो गये हैं और यह तय है कि ज्यों-ज्यों मंदिर तीर्थक्षेत्र का निर्माण आगे बढ़ता जायेगा, त्यों-त्यों विवाद बढ़ते हुए और गंभीर हो जायेंगे। आइये राम मंदिर तीर्थ स्थल का वास्तु विश्लेषण करते हैं-

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यूं तो प्राचीन काल से ही अयोध्या नगरी को प्रसिद्धि मिली हुई है लेकिन ऐसा क्या है, जिसके कारण राम मंदिर निर्माण के साथ अयोध्या नगरी इतनी विकसित हो रही है कि यहां अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय स्तर का रेलवे स्टेशन, सैंकड़ों होटल, धर्मशालाओं के साथ-साथ 5-7 स्टार होटल तक बन गये हैं, यहां आने वाले दर्शनार्थियों के लिए हर प्रकार की आधुनिक सुख-सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। यह सब हो रहा है, इसकी वास्तु अनुकूल भौगोलिक स्थिति के कारण।

अयोध्या की उत्तर दिशा से सरयू नदी बहती हुई पूर्व दिशा की ओर घुमाव लेकर पूरे नगर को घेरती हुई पूर्व दिशा की ओर ही आगे को बढ़ गई है। जिस स्थान पर रामलला की मूर्ति रखी गई थी (जहां कभी बाबरी मस्जिद होती थी) वह स्थान अयोध्या का सबसे ऊंचा स्थान था और वहां जमीन में चारों दिशाओं में ढलान है। यह ढलान उत्तर और पूर्व दिशा की ओर सरयू नदी तक चला गया है। उत्तर एवं पूर्व दिशा में भूमि का ढलान सामान्य है, सामान्यतः ऐसा ढलान नदी के किनारे बसे सभी नगरों में पाया जाता है। परन्तु पश्चिम दिशा और नैऋत्य कोण में तीखे ढलान के कारण काफी नीचे है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार जहां उत्तर दिशा में ढलान हो और साथ में अधिक मात्रा में पानी हो तो वह स्थान निश्चित ही प्रसिद्धि प्राप्त करता है और पूर्व दिशा की ओर का ढलान और पानी धनागमन में सहायक होता है। अयोध्या के उत्तर दिशा के ढलान और उसके आगे सरयू नदी के कारण यह नगरी प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। साथ ही पश्चिम दिशा में ढलान, गड्ढे, कुआं, तालाब या किसी भी रूप में निचाई हो तो ऐसे स्थान पर रहने वालों में दूसरों की तुलना में ज्यादा धार्मिकता रहती है। नैऋत्य कोण का तीखा ढलान अमंगलकारी होकर विनाश का कारण बनता है, जोकि धार्मिकता के साथ-साथ आपसी झड़पों का कारण बनता रहा है और आगे भी रहेगा।

वर्तमान में यूट्युब पर रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के सचिव श्री चंपतराय जी द्वारा जो प्रेजेंटेशन दी गई उसके अनुसार यह तीर्थ क्षेत्र 70 एकड़ भाग में निर्मित हो रहा है। इस परिसर का ईशान कोण दबा हुआ है और पूर्व आग्नेय भाग बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है। यह महत्वपूर्ण वास्तुदोष है। मंदिर के चारों ओर दक्षिण भारत के मंदिरों की तरह सुरक्षा दीवार/परकोटा बनाया गया है, जिसकी चौड़ाई 14 फिट है, यह परकोटा डबल स्टोरी है। इसके लोवर लेवल पर ऑफिस के कमरे रहेंगे और अपर लेवल पर परिक्रमा का मार्ग बनाया है। परकोटे की चारों भुजाओं के कोने पर मंदिर बनाये गये हैं, नैऋत्य कोण में सूर्य भगवान का मंदिर, क्योंकि राम जी सूर्य वंश में पैदा हुए, वायव्य कोण पर शंकर जी का मंदिर, ईशान कोण पर मां भगवती का मंदिर तथा आग्नेय कोण पर गणेश जी का मंदिर है। दक्षिणी भुजा के दक्षिण नैऋत्य में हनुमान जी का मंदिर और उत्तर वायव्य में मां अन्नपूर्णा का मंदिर बनाया गया है। परकोटे के चारों कोनों पर जो मंदिर बनाये गये हैं, उनके कारण चारों कोनों में बढ़ाव आ रहा है। ईशान कोण उत्तर और पूर्व दोनों तरफ का बढ़ाव शुभ है। आग्नेय कोण में दक्षिण आग्नेय का बढ़ाव तो शुभ है लेकिन पूर्व आग्नेय का बढ़ाव अशुभ है, यह विवाद का कारण बनता है। नैऋत्य कोण के दक्षिण तथा पश्चिम दोनों तरफ के बढ़ाव अशुभ हैं। वायव्य कोण में पश्चिम वायव्य का बढ़ाव तो शुभ है लेकिन उत्तर वायव्य का बढ़ाव अशुभ है, यह विवाद में बूस्टर की तरह काम करेगा। राम मंदिर के परकोटे के पूर्व आग्नेय भाग पर मार्ग प्रहार आ रहा है, जोकि विवाद को और अधिक बढ़ा रहा है। ध्यान रहे सामान्यतः दक्षिण भारत के मंदिरों के परकोटे में इस तरह कोने पर मंदिर नहीं बनाये जाते हैं।

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वास्तुशास्त्र के अनुसार, यदि किसी भवन के पूर्व आग्नेय East of the South-East में किसी प्रकार का बढ़ाव हो, चाहे वह बढ़ाव आयताकार हो या तिरछा हो, या वहां भवन का मुख्यद्वार हो या उस भवन पर पूर्व आग्नेय में मार्ग प्रहार (रोड़ आकर कर टकरा रहा हो) हो या वहां किसी प्रकार का गड्ढा हो तो वहां निश्चित ही विवाद होते हैं और यदि भवन के नैऋत्य कोण में किसी भी प्रकार से नीचाई हो तो ऐसी स्थिति में यह विवाद इतने गंभीर हो जाते हैं कि वहां अनहोनी घटना होने की संभावना रहती है।

राम मंदिर परिसर के पूर्व आग्नेय में 2 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाये जायेंगे। अंडरग्राउंड रिजर्व वाटर उत्तर वायव्य कोण में बनाया जायेगा। यह सभी प्लाण्ट दिसंबर के अंत तक बनेंगे, इनके बनने के बाद विवाद की स्थितियां और गंभीर भी होंगी। तीर्थ क्षेत्र परिसर के दक्षिण में सीताकुण्ड (जानकी जलाशय) जबकि वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बनाया गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का कुंड होना वहां रहने/आने वाली महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार की परेशानियों का कारण बनेगा।

इस वास्तु-विश्लेषण से स्पष्ट है कि, राम जन्मभूमि परिसर की पश्चिम दिशा की नीचाई के कारण इस स्थान के प्रति लोगों में जुनून की हद तक धार्मिकता तो है लेकिन पूर्व आग्नेय के दोष, मार्ग प्रहार, बढ़ाव और सीवरेज ट्रीटमेंट टैंक के कारण, यहां विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं और नैऋत्य कोण के दोष के कारण यहां समय-समय पर झड़पों में अनहोनी होने की संभावना बनी रहेगी।

वास्तु परामर्श- यदि इस विवाद को पूर्ण रूप से समाप्त करना है तो सरकार को चाहिए कि वह राम जन्मभूमि परिसर के वास्तु दोषों को दूर करें, जोकि निश्चित किये भी जा सकते हैं। जैसे पूर्व आग्नेय के मार्ग प्रहार को मंदिर के मुख्य द्वार के सामने परकोटे के पूर्व मध्य में स्थानांतरित किया जाए। पश्चिम दिशा एवं नैऋत्य कोण की निचाई को मिट्टी डालकर टीले के बराबर किया जाए और राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र को कुछ हिस्सों में बांटकर सभी हिस्सों को वास्तु अनुकूल बनाया जाये। इसी के साथ जो टैंक बनाये जा रहे हैं उनके भी स्थान बदले जाये। निश्चित ही इन वास्तु अनुकूल परिवर्तनों से राम मंदिर तीर्थ स्थल को लेकर जो विवाद सदियों से चल रहा है, वह पूर्णतः समाप्त हो जायेगा।

वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

punjab kesari vastu guru kuldeep saluja

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