भगवान विष्णु के इन दो अवतारों में बसते हैं हिन्दू जाति के प्राण

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Mar, 2023 02:26 PM

bhagwan vishnu ke avtar

भारत ने श्री राम और श्री कृष्ण दो ऐसे दिव्य महामानव पैदा किए हैं जिनके बिना हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और रीति रिवाज अधूरे हैं। इन दोनों के कार्य इतने श्रेष्ठ, प्रजा हितकारी और समाज कल्याण के थे कि

Bhagwan vishnu ke avtar: भारत ने श्री राम और श्री कृष्ण दो ऐसे दिव्य महामानव पैदा किए हैं जिनके बिना हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और रीति रिवाज अधूरे हैं। इन दोनों के कार्य इतने श्रेष्ठ, प्रजा हितकारी और समाज कल्याण के थे कि उनको याद कर कई शीष अपने आप श्रद्धावनत हो जाते हैं। वास्तव में राम और कृष्ण मूर्तिमान धर्म थे।

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श्री राम के समय में कई राक्षसों ने बड़ा उत्पात मचा रखा था, संत-महात्माओं, ऋषि मुनियों के यज्ञों में विघ्न डालते थे। श्री राम ने राक्षसों को मारकर समाज को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई, धर्म की स्थापना की और लोगों को सुख पहुंचाया। राम ने सारे काम मर्यादा में किए, जिससे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। उन्होंने निषाद राज को गले लगाया, शबरी भीलनी के जूठे बेर खाए, अर्धसभ्य जातियों वानर, रीछ, भील आदि के साथ मैत्री की और उनको बराबरी का दर्जा दिया। राम ने अहिल्या उद्धार किया, मरणासन्न जटायु के सिर पर हाथ रखा, उन्हें सांत्वना दी और मरने पर उसका अपने हाथों से विधिपूर्वक दाह संस्कार किया। राम ने किसी के राज्य पर अधिकार नहीं किया, बाली को मारा तो उसके भाई सुग्रीव को राजा बनाया और पुत्र अंगद को युवराज। रावण को मारा तो उसके भाई विभीषण को राजा बनाया। राजा लोगों के चलन के विपरीत राम ने एक पत्नीव्रत धारण किया।

सीता वनवास के पश्चात जब अश्वमेध यज्ञ किया तो भी राम ने मंत्रियों, सभासदों आदि के कहने के बावजूद दूसरा विवाह नहीं किया और सीता जी की सोने की मूर्ति बनवाकर पत्नी के स्थान पर बैठाया।

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भारत के हर प्रदेश में अपनी भाषा में रामायण है। दक्षिण एवं एशिया के देशों जावा, थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि में भी अपनी-अपनी रामायण है तथा इन देशों में राम के अनेक मंदिर हैं जहां उनकी पूजा-अर्चना होती है और रामायण पढ़ी जाती है। तिब्बत की भी अपनी रामायण है। लंका तो राम से जुड़ ही गई है। स्थान-स्थान पर रामलीलाएं होती हैं जिसमें पूरी रामायण दिखाई जाती है। तभी तो र्चचिल ने कहा था कि अगर हिन्दुओं को समाप्त करना है तो दशहरा मनाना बंद करवा दिया जाए।

श्री कृष्ण के काल में समाज में कई बुराइयां आ गई थीं, अधर्म बढ़ गया था और कई राजा अत्याचारी हो गए थे, जो प्रजा पर अत्याचार करते थे। राक्षस स्वच्छंद घूमते थे, जिन्होंने आतंक मचा रखा था और लोगों को परेशान करते थे। श्री कृष्ण ने धर्म की स्थापना कर लोगों को निर्भय कर सुख पहुंचाया।

 
श्री कृष्ण को अपने लम्बे जीवन में बड़े संघर्ष करने पड़े परंतु उन्होंने धैर्य नहीं खोया और अपने उद्देश्य में सफल रहे, जिसको उन्होंने गीता में स्पष्ट किया है। वह कहते हैं जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं अर्थात प्रकट करता हूं, साधु, पुरुषों का उद्धार करने के लिए और दूषित कर्म करने वालों का नाश करने के लिए तथा धर्म स्थापना करने के लिए युग-युग में प्रकट होता हूं।

श्री राम की तरह श्री कृष्ण ने भी किसी के राज्य पर अधिकार नहीं किया। कंस को मारा तो स्वयं राजा नहीं बने। कंस के पिता उग्रसेन को राजा बनाया। जरासंध को मारा तो राजा उसके बेटे को ही बनाया।
 
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युधिष्ठिर के राजसूज्ञ यज्ञ में कृष्ण ने अतिथि सत्कार का काम संभाला और अतिथियों के चरण धोए। महाभारत के युद्ध में वह अर्जुन के सारथी बने। कृष्ण ने अपने गुरुकुल के साथी निर्धन सुदामा का अपने द्वारका के महल में स्वागत किया और कई दिन तक उनकी भरपूर खातिर की। इस दौरान उन्होंने उनकी गांव की झोंपड़ी को सुंदर भवन में बदलवा दिया और सारी सुख-सुविधाएं भी प्रदान करा दीं। कृष्ण जनस्वास्थ्य के प्रति सजग थे। उन्होंने गायों के महत्व को समझा और लोगों को समझाया। श्री कृष्ण को इस कारण गोपाल कहा जाता है। उन्होंने कालिय नाग को इसलिए हराया और भगाया क्योंकि वह यमुना के जल को प्रदूषित कर रहा था।

कृष्ण के जीवन से संबंधित श्रीमद् भागवत कथा शहर-शहर, गांव-गांव में होती रहती है। श्री कृष्ण के नाम में भी एक विचित्र आकर्षण है और नाम लेते ही मन में प्रसन्नता छा जाती है।

मध्य युग में राम और कृष्ण के कई उच्चकोटि के भक्त कवि हुए हैं जिन्होंने इन दोनों की भक्ति का पूरे भारत में प्रचार किया। आजकल अमेरिका में कृष्ण भक्ति का बड़ा प्रचार हो रहा है और कई अमरीकी कृष्ण के भक्त हो रहे हैं। कृष्ण की गीता विश्व भर के ज्ञानियों और विचारकों को प्रेरणा दे रही है। अनेक लोगों ने गीता के ज्ञान से जीवन को उच्च और श्रेष्ठ बना लिया है।
प्रसिद्ध आर्य समाजी विद्वान देशभक्त और क्रांतिकारी देवता स्वरूप भाई परमानंद ने कहा था अगर राम और कृष्ण न होते तो राम, कृष्ण और महाभारत का साहित्य न बनता। राम और कृष्ण के जीवन हिन्दू जाति की आत्मा हैं। हिन्दुओं के घरों से उनके दिलों से उनके इतिहास और उनकी भाषा से राम और कृष्ण का जीवन निकाल दिया जाए तो हिन्दू जाति मुर्दा हो जाएगी। उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे।
 
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