Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Oct, 2023 07:37 AM
बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने कहा है कि किसी घर में ईसा मसीह की तस्वीर होने का यह मतलब नहीं हो जाता कि उस व्यक्ति ने ईसाई धर्म अपना लिया है।
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मुंबई (प.स.): बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने कहा है कि किसी घर में ईसा मसीह की तस्वीर होने का यह मतलब नहीं हो जाता कि उस व्यक्ति ने ईसाई धर्म अपना लिया है। न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण और न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के की खंडपीठ ने 10 अक्तूबर को 17 वर्षीय एक लड़की द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें अमरावती जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति द्वारा उसकी जाति को ‘महार के रूप में अमान्य करने के सितंबर, 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पीठ ने कहा कि सतर्कता अधिकारी (समिति के) की रिपोर्ट को शुरूआत में ही खारिज करने की जरूरत है क्योंकि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता का परिवार बौद्ध धर्म की परंपरा का पालन करता है। उसकी जाति के दावे को अमान्य करने का निर्णय तब लिया गया जब समिति के सतर्कता प्रकोष्ठ ने जांच की और पाया कि याचिकाकर्ता के पिता और दादा ने ईसाई धर्म अपना लिया था और उनके घर में ईसा मसीह की एक तस्वीर लगी हुई पाई गई थी।
समिति ने कहा था कि चूंकि उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है, इसलिए उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल किया गया है। याचिकाकर्ता लड़की ने दावा किया कि ईसा मसीह की तस्वीर उन्हें किसी ने उपहार में दी थी और उन्होंने इसे अपने घर में प्रदर्शित किया था।