Chaiti Chhath: चैती छठ महापर्व पर हजारों पूर्वांचल वासियों ने अस्तचलगामी सूर्य को किया अर्ध्य अर्पित

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Apr, 2024 09:39 AM

chaiti chhath

राजधानी दिल्ली में बिहार व पूर्वांचल के रहने वाले हजारों लोगों ने धूमधाम व पूरी धार्मिक निष्ठा के साथ चैती छठ पूजा मनाई। रविवार को अस्तचलगामी (डूबते सूर्य) सूर्य को 36 घंटे के उपवास के साथ छठ व्रतियों ने

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नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): राजधानी दिल्ली में बिहार व पूर्वांचल के रहने वाले हजारों लोगों ने धूमधाम व पूरी धार्मिक निष्ठा के साथ चैती छठ पूजा मनाई। रविवार को अस्तचलगामी (डूबते सूर्य) सूर्य को 36 घंटे के उपवास के साथ छठ व्रतियों ने अर्ध्य दिया। व्रती कल सोमवार को उदयगामी (उगते) सूर्य को अर्ध्य देने के उपरांत प्रारण (प्रसाद) ग्रहण कर निर्जला उपवास का समापन करेंगे। वर्ष कार्तिक मास का छठ महापर्व 5 नवम्बर 2024 से शुरू होकर 8 नवम्बर तक चलेगा। इस महापर्व को भी नवरात्रि की तरह ही साल में दो बार मनाया जाता है। 

पंचांग के अनुसार पहला छठ पूजा चैत माह में होता है और दूसरा कार्तिक महीने में मनाया जाता है। हालांकि कार्तिक माह का छठ पूजा बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के घर-घर में मनाया जाता है, लेकिन चैती छठ महापर्व को ज्यादातर वही पूर्वांचलवासी मनाते हैं, जिन्होंने मन्नत मांगी हो और मन्नत पूरा होने पर चैती छठ पूजा को मनाया जाता है। छठ पूजा अब तो देशभर में आयोजित होता है, लेकिन विशेषकर झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे हिस्सों में इसकी धूम देखने को मिलती है। छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है। 

छठ महापर्व का महत्व
मान्यता है कि छठ व्रत करने से छठी मईया और भगवान भास्कर की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। छठ पर्व संतान, सुहाग और घर-परिवार के सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य, सुख और खुशहाली के लिए किया जाता है। छठ व्रत में पारंपरिक गीतों और ठेकुआ प्रसाद का भी विशेष महत्व होता है। सभी पूजा-पाठ में छठ व्रत के नियम सबसे कठिन माने जाते हैं, इसे पूरे चार दिनों तक मनाया जाता है और व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती है या रखते हैं। पहले दिन नहाय खाय होती है, दूसरे दिन खरना होता है, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ व्रत संपन्न होता है।

इस बार चैती छठ पूजा का आरम्भ आज 12 अप्रैल से शुरू हुआ है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है। चैती छठ नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाता है। 13 अप्रैल को खरना था और 14 को लोगों ने सायंकालीन अर्घ्य अर्पित किया। 15 अप्रैल को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पर्व का समापन होगा। इसे यमुना छठ भी कहते हैं क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि इस दिन यमुना धरती पर प्रकट हुई थीं। इस कारण यमुना में स्नान करना शुभ माना जाता है। चैती छठ पर स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। मान्यता है कि चैती छठ या यमुना छठ के नियमों का पालन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

चैती छठ को कुमार व्रत भी 
चैती छठ पर्व को कुमार व्रत भी कहा जाता है। कुमार भगवान कार्तिकेय को कहते हैं। चैती छठ पर अगर भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है। साथ ही दान से सुख और आरोग्य जीवन भी मिलता है। चैती छठ व्रत पर भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।  छठ पूजा के दौरान किसी भी बर्तन या फिर पूजा सामग्री को झूठे हाथों से नहीं छूआ जाता है। छठ पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। फल-फूल आदि खंडित नहीं होने चाहिए। प्रसाद की सामग्री को हमेशा अलग स्थान पर रखा जाता है। छठ पूजा के दौरान व्रती जमीन पर आसन बिछाकर ही सोते हैं। पूजा में इस्तेमाल होने वाले सभी बर्तन नए होते हैं।

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